कोई प्रवेश तो कोई छात्रवृत्ति का फॉर्म भरने आया
झाबुआ। उत्कृष्ट स्कूल में फार्म भरने आई छात्राओं को स्कूल खुलने की जानकारी नहीं थी। क्राइसिस मैनेजमेंट की बैठक एक दिन पहले हुई जिसमें लेना था स्कूल खोलने को लेकर निर्णय, सोमवार से शुरू हुई 12वीं की कक्षाएं। 50 प्रतिशत क्षमता के साथ 26 जुलाई से 11 वीं और 12 वीं की कक्षाएं लगाने के निर्देश शासन ने दिए थे। इसके लिए आदिवासी विकास विभाग और जिला शिक्षा केंद्र ने तैयारियां की। स्कूलों में साफ-सफाई, सेनिटाइजेशन आदि की व्यवस्था कर दी गई। लेकिन पहले दिन सोमवार को निजी और शासकीय स्कूलों में बच्चे ही नहीं आए। कारण यह था कि शासन के आदेश के बाद आपदा प्रबंधन समिति की बैठक में अंतिम निर्णय लिया जाना था कि स्कूल खोलना या नहीं। यह बैठक एक दिन पहले रविवार शाम को हुई और इसके बाद पालकों तक ये सूचना ही नहीं पहुंची कि सोमवार से स्कूल खुलेंगे।
निजी स्कूल के संचालकों ने भी कहा कि बैठक देर से होने के कारण हम पालकों तक सूचना नहीं भेज सके। निजी स्कूल संचालकों ने सोमवार को पालकों तक स्कूल खुलने के संबंध में सूचना भेजी। अब पालकों से सहमति पत्र लेकर कक्षाएं लगाई जाएंगी। पहले दिन जो बच्चे स्कूल पहुंचे वो या तो छात्रवृति के फार्म भरने आए थे या एडमिशन कराने। उत्कृष्ट स्कूल में 11 वीं की कुछ छात्राओं ने कहा कि हमें जानकारी ही नहीं थी कि आज से स्कूल शुरू हो गए हैं। हम तो यहां छात्रवृत्ति के फॉर्म भरने आए है।
पालकों की सहमति से बुलायेंगे
स्कूल संचालक ओम शर्मा ने बताया वैसे ऑनलाइन क्लास चल रही हैं। अब पालकों की सहमति के बाद बच्चों को स्कूल में बैठायेंगे। स्कूल में निश्चित दूरी पर बैठाने की व्यवस्था की है। स्कूल के सभी कक्षों को सेनिटाइज किया जा चुका है, एक बार फिर से सेनिटाइज करेंगे। बच्चों को मास्क अनिवार्य होकर सेनिटाइजर का उपयोग करना होगा। स्कूल में भी इसके लिए हैंड सैनिटाइजर की व्यवस्था की है और स्टाफ को भी टीकाकरण हो गया है। स्कूल खुलने की सूचनाएं भी पालकों तक पहुंचा दी गई है।
स्कूल बंद रहने से काम करने चले गए बच्चे
तकरीबन 1 साल से स्कूल बंद है। ऐसे में शासकीय स्कूल में पढऩे वाले कई बच्चे गुजरात में काम करने चले गए हैं। अब स्कूल से उन्हें फोन जाने पर वो अंटेंड नहीं करते। अंटेंड करते है तो स्कूल आने का हां कहकर नहीं आते। ऐसे में स्कूल वाले भी परेशान है कि बच्चों को बुलाएं कैसे। गुजरात में बच्चों को काम मिल जाता है और कुछ रुपयों की लालच में बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। आदिवासी बाहुल्य जिला होने से पालक भी शिक्षा के प्रति जागरुक नहीं हैं।
मीडिया को देखा तो फॉर्म भरने आए बच्चों को बना दिया 11 वीं का छात्र
हाई स्कूल रातीतलाई में देखा तो यहां प्राचार्य वीरेंद्र सिंह सिसौदिया ने छात्रवृत्ति के फॉर्म भरने और एडमिशन कराने आए बच्चों को 11 वीं की कक्षाओं में बैठा दिया। कुछ देर बाद बच्चे वहां से उठकर वापस अपने कामों में लग गए और कक्षा फिर खाली हो गई। प्राचार्य ने कहा कि 11 वीं, 12 वीं के बच्चों को फोन लगा-लगाकर स्कूल बुला रहे हैं। लेकिन बच्चे आ नहीं आ रहे। दो साल में पूरा सिस्टम बिगड़ चुका है। हम पढ़ाना चाहते है लेकिन बच्चे पढऩा नहीं चाहते।
बच्चे कम आए, सूचना तो दी थी
पालकों से सहमति लेकर बच्चों को आना है। पहले दिन बच्चे कम आए। बैठक देरी से की गई ऐसी कोई बात नहीं है। सोशल मीडिया पर सूचना पहुंचा दी थी। ग्रुप में एंड्राइड मोबाइल वाले बच्चे जुड़़े हैं। स्कूल खुलने की सूचना सभी को मिली है। इस संबंध में प्राचार्य बेहतर बता पायेंगे। -जीपी ओझा, जिला शिक्षा अधिकारी