अंगे्रजों की दासता से मुक्ति के बाद जिस भारत का सपना हमारे पूर्वजों ने देखा था क्या हम उस दिशा में कुछ फासला तय कर पाये हैं या नहीं? इन 74 वर्षों में हमने क्या खोया और क्या पाया है यह भी देखना होगा। सन 47 में आजादी के समय हम 33 करोड़ हुआ करते थे जो आज 74 वर्षों बाद बढक़र 138 करोड़ हो गये हैं जो कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। बीते वर्ष में हमारी पीढ़ी ने कोरोना जैसी विभीषिका देखी जिसमें लाखों लोग मौत की नींद सो गये हमने 47 में सोने का मूल्य प्रति दस ग्राम 88.62 रुपये देखा वही सोना आज 48 हजार 45 रुपये का प्रति दस ग्राम मिल रहा है।
आजादी के वक्त 1 अमेरिकी डालर का मूल्य 1 रुपये के बराबर होता था जो आज 74 वर्षों बाद 74.25 भारतीय रुपये है। राज्यसभा की 216 सीटें हुआ करती थी जो अब 245 है इसी तरह लोकसभा की 489 सीेटें आज 545 हो गयी है, राज्यों की संख्या 12 से बढक़र 28 हो गयी है। सन 1947 में देश में विश्व विद्यालयों की संख्या 25 थी वह अब 800 से अधिक पहुंच गयी।
सबसे महत्वपूर्ण बात आजादी के समय पेट्रोल का मूल्य 27 पैसे प्रति लीटर हुआ करता था जो अब 112 रुपये प्रति लीटर है हां पर इतना जरूर है कि उस समय आम आदमी की औसत कमाई प्रतिमाह 23 रुपये हुआ करती थी जो 74 वर्षों बाद आज बढक़र 11000/- रुपये प्रतिमाह तक पहुंच गयी है। सायकल की कीमत 20/-रुपये, चावल 12 पैसे प्रतिकिलो, दूध 12 पैसे प्रतिलीटर, आलू 25 पैसे प्रति किलो और शक्कर 40 पैसे प्रति किलो हुआ करती थी। दिल्ली से मुंबई हवाई जहाज से 140 रुपये में और ट्रेन की फस्र्ट क्लास श्रेणी से जाने पर 123 रुपये का खर्च आता था।
यह सच है कि बीते 74 वर्षों बाद हमारे जीवन स्तर और रहन सहन में अप्रत्याशित बदलाव आया है। हमने बहुत कुछ पाया है संचार क्रांति के इस आधुनिक युग में हमने दुनिया सचमुच मु_ी में कर ली है, हवा पानी की तरह हमारे जीवन में मोबाइल इस तरह चुपचाप से प्रवेश कर गया है कि उसके बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है, प्राणवायु की तरह अनिवार्य हो चुके मोबाइल देवता में विराजमान गूगल ने हमारे ज्ञान के भंडार को असीमित कर दिया है, बटन दबाते ही अलाउद्दीन के चिराग की तरह क्या हुकुम मेरे आका की तर्ज पर ब्रह्माण्ड की जानकारी कुछ पलों में प्राप्त की जा सकती है।
हमने आजादी के बाद अच्छा खाना, अच्छा रहना और अच्छा पहनना प्राप्त किया पर इन सबको पाते पाते बीते 74 वर्षों में हमने बहुत कुछ खोया भी है जिसकी फेहरिस्त पाने की सूची से कहीं ज्यादा लंबी है। हमने अपनी मानसिक शांति, अपना चरित्र, अपनी नैतिकता, अपने राष्ट्रप्रेम, सामाजिक संबंधों, पारिवारिक रिश्तों की मिठास, अपने आत्मसंतोष को खोया है।
भौतिक संसाधनों को पाने के बावजूद भी आज देश का हर आदमी तनाव की जिन्दगी जी रहा है। किसी को अर्थ, किसी को सामाजिक, किसी को पारिवारिक कारणों से तनाव है। उधार लेकर घी पीने की मनोवृत्ति ने हमारे दिलो-दिमाग को जकड़ रखा है हर व्यक्ति अपने समकक्ष आदमी से भौतिक साधनों में प्रतिस्पर्धा कर रहा है। जिसकी वजह से कर्जे में डूब रहा है। सामाजिक जीवन में आये विकारों की वजह से पारिवारिक जीवन में भी उसे सुख नहीं है। देश में बढ़ते आत्महत्याओं के आंकड़े शायद मेरे कथन की पुष्टि के लिये पर्याप्त है।
संचार के नये-नये साधन हमारे ज्ञान में वृद्धि के साथ जीवन पर नकारात्मक प्रभाव भी छोड़ रहे हैं, बच्चे निर्धारित उम्र से पहले ही जवान हो रहे है जो इस उम्र में उन्हें नहीं जानना चाहिए वह सब भी वह जान रहे हैं। जिससे समाज पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। बीते 74 सालों की उपलब्धि को कम शब्दों में बयां करे तो ‘‘भौतिक सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण तनावमुक्त मानव जीवन’’ हमारे नैतिक मूल्यों में 74 वर्षों में जबरदस्त गिरावट आयी है।
शोषितों-पीडि़तों की और आम आदमी की व्यथा को दूर करने का जिम्मा जिन राजनेताओं पर था वह सब गिरते नैतिक मूल्यों का शिकार हो गये हैं, माफ कीजिये आज देश के किसी भी राजनैतिक दल का ऐसा कोई नेता नहीं है जिसकी कही बात का पूरा देश अनुसरण कर सके, इसी भारत की मिट्टी ने लालबहादुर शास्त्री जैसे लाल को भी पैदा किया था जिसकी एक आवाज पर पूरे देश के लोगों ने सप्ताह में एक दिन का भोजन छोड़ दिया था।
प्रजातंत्र के मंदिर हमारी लोकसभा और विधानसभा के भवन नेताओं के कुकृत्य और अमर्यादित आचरणों के मूक साक्षी है। राजनीति ने अपना धर्म और लक्ष्य बदल लिया है यही हाल शासकीय सेवकों का भी बीते 74 वर्षों में देश भक्ति व सेवा तो न जाने कहां विलुप्त हो गयी है। चारों ओर, बिना रिश्वत, भ्रष्टाचार नहीं उद्धार का नारा बुलंद है। नेता हो, अधिकारी हो या इन पर नजर रखने वाली मीडिया इन सभी ने नैतिक पतन के कारण अपना लक्ष्य बदला है। जो भारत के वर्तमान और भविष्य के लिये चिंताजनक है।