जिम्मेदार अधिकारियों की मेहरबानी: कई शिक्षक रोज नहीं जाते स्कूल, जांच के नाम होती सिर्फ लीपापोती

पेटलावद। शासन से प्रतिमाह हजारों रुपए वेतन प्राप्त करने वाले शिक्षक इन दिनों जबकि स्कूल जाना अनिवार्य होने के बाद भी स्कूल नहीं जा रहे हंै। कोरोना काल में लॉकडाउन कि वजह से लगभग स्कूल बन्द थे किन्तु वर्तमान समय में शिक्षकों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य हो चुका है। जिसके बाद भी जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत के कारण कई शिक्षक स्कूल नहीं जा रहे हंै।

स्कूल समय में अक्सर देखे जा सकते हैं-तहसील मुख्यालय से ग्रामीण अंचल की स्कूलों में अपडाउन करने वाले कई शिक्षकों को अक्सर पेटलावद में देखा जा सकता है। ऐसे शिक्षक लगता है शिक्षक बनकर शासन पर एहसान कर रहे हैं। यहां तक कि ऐसे कई शिक्षकों के बारे में जो अक्सर स्कूल नहीं जाते हैं कि जानकारी बताया जाता है कि जिम्मेदार अधिकारियों को भी है किन्तु सेवा चाकरी के कारण इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

एक शिक्षक महाशय का स्कूल नहीं जाने का मामला पिछले कुछ दिनों पूर्व प्रकाश में आया था लेकिन शिक्षक की तो अधिकारियों से सेटिंग इतनी तगड़ी है कि मामले में अभी तक कुछ भी होता दिखाई नहीं दे रहा है। इस संबंध में ग्रामीणों और बच्चों ने बताया था कि महीने में एक दो-दिन ही शिक्षक स्कूल आते हैं।

रजिस्टर में खानापूर्ति

एक शिक्षक ने अपना नाम जाहिर नहीं करने कि शर्त पर बताया कि तहसील मुख्याल से दूर ग्रामीण क्षेत्र के स्कूल में पदस्थ शिक्षकों में से कई शिक्षक और ऐसे स्कूल जहां दो या तीन शिक्षक पदस्थ हैं। उन्होंने स्कूल जाने के अपने दिन तय कर रखे हंै कि कौन किस दिन स्कूल जाएगा तथा छुट्टी का आवेदन बिना तारीख वाला पहले से तैयार रखते हैं ताकि कोई अधिकारी भ्रमण पर आ जाए तो छुट्टी का आवेदन काम आ जाता है अन्यथा छुट्टी के आवेदन की कोई जरूरत नहीं होती है और जब भी शिक्षक या मैडम जी स्कूल जाते हैं तो शिक्षक उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर कर खानापूर्ति कर देते हंै। आखिर कब तक ऐसा ही चलता रहेगा। जनप्रतिनिधि भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।

मेहरबानी से फर्जीवाड़ा

शासन द्वारा तो शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों कि मेहरबानी के कारण पूरी तरह से फर्जीवाड़ा हो रहा है। यदि किसी के द्वारा शिकायत भी की जाती है तो जांच के नाम सिर्फ लीपापोती की जाती है।

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