फॉलोअप: महाकाल मंदिर के खातों से अकाउंटेंट का मोबाइल नंबर जुड़े होने की प्रशासक करेंगे जांच

संत अवधेशपुरी ने सायबर सेल से जांच की मांग की

उज्जैन, अग्निपथ। श्री महाकालेश्वर मंदिर के लेखापाल की क्यूआर कोड के नीचे अपना मोबाइल नंबर देने का मामला तूल पकडऩे लगा है। लेखापाल ने मंदिर में हो रही चर्चा के बाद अपना नंबर क्यूआर कोड स्कैनर के नीचे से तो हटा दिया है, लेकिन उसका नंबर अन्य खातों से भी जुड़े होने की जानकारी सामने आ रही है। ऐसे में गड़बड़ी की संभावना को देखते हुए उसके खाते जांच होने तक सीज किए जाएं। कलेक्टर ने मंदिर प्रशासक को मामले की जांच सौंपी है। लेकिन संतश्री अवधेशपुरी महाराज ने सायब सेल से निष्पक्ष जांच कराने की मांग की है।

महाकालेश्वर मंदिर में बुधवार को मंदिर के लेखापाल विपीन ऐरन द्वारा दानदाताओं से मंदिर के ओर से दान लेने के लिए अपने वाट्सअप स्टेटस पर मंदिर का क्यूआर कोड डाला गया। इतना ही नहीं उसके द्वारा इसके नीचे अपना मोबाइल नंबर भी डाला गया था। ऐसे में दानदाता यदि सीधे ही क्यूआर कोड स्कैनर की जगह मोबाइल नंबर से पैसे डालेगा तो वह सीधे लेखापाल के खाते में पहुंचेगा।
ऐसे में सवाल इस बात का उठता है कि वह कब से इस तरह की गतिविधियां कर मंदिर को आर्थिक नुकसान पहुंचाने का काम कर रहा है। मंदिर के अधिकारी तो गांधारी बनकर प्रभारियों के साथ कदमताल कर रहे हैं। लेकिन उनकी नाक के नीचे लेखापाल इस तरह का गतिविधि कर मंदिर का पैसा अपने खाते में डलवा रहा है। जिसकी ओर अभी तक किसी का भी ध्यान नहीं गया है।

अब प्रशासक करेंगे मामले की जांच

लेखापाल की गतिविधि संदिग्ध होने के कारण मंदिर प्रबंध समिति को जांच बैठाकर उसके सबसे पहले खाते सीज किए जाने चाहिए। वहीं उसको इस दौरान पद पर से हटाकर अन्यत्र पदस्थ करना चाहिए अन्यथा जांच प्रभावित होने की पूर्ण संभावना रहेगी। हालांकि कलेक्टर ने मामला संज्ञान मे आने के बाद मंदिर प्रशासक सुजानसिंह रावत को जांच सौंप दी है।

साधारण मामला नहींः अवधेशपुरीजी

संत डॉ. अवधेशपुरी महाराज का कहना है कि यह मामला कोई साधारण नहीं है। विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर से जुड़ा होने के कारण इस मामले की जांच सायबर सेल से करवाई जाना चाहिए। मंदिर के अधिकारियों से इसकी जांच नहीं करवाना चाहिए, अन्यथा जांच प्रभावित हो सकती है। मंदिर में दर्शन की इतनी जटिल प्रक्रिया है कि इससे भ्रष्टाचार की पूरी संभावना बनती है। श्रद्धालुओं को इन जटिल प्रक्रियाओं में फंसाकर उनका आर्थिक दोहन किया जा रहा है। जो कि ठीक नहीं है।

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