बदनावर (अल्ताफ मंसूरी), अग्निपथ। बरसात का तीन चौथाई दौर लगभग गुजर चुका है, किंतु अब भी तालाब व डैम रीते पड़े हैें। हालांकि 2 दिन से हो रही बरसात व अनुकूल मौसम होने से बरसात की आशा बनी हुई है। आगामी पखवाड़े में यदि बरसात होती है तो यह वरदान होगा। अभी तक तो भूजल स्तर में भी बढ़ोतरी नहीं हो पाई है। तहसील क्षेत्र में अब तक 707.8 मिमी बारिश हुई है, जो गत वर्ष की तुलना में 300 मिमी कम हैं। हालांकि यह भी धार जिले में सर्वाधिक बारिश है। फिर भी क्षेत्र के 22 तालाबों में से मात्र एक ही तालाब लबाबल भर पाया है। जबकि शेष तालाबों में पूर्ण क्षमता से जल स्तर काफी कम हैै।
अब उम्मीद माह के बचे हुए दिनों पर ही टिकी है। यदि इस दौरान बारिश दगा दे जाती है, तो जलसंकट के आसार तो बनेंगे ही सिंचाई के लिए भी किसानों को पानी की कमी झेलनी पड़ेगीे। बदनावर में इस मर्तबा सामान्य से भी 50 मिमी कम (700 मिमी) बारिश हुई है। जबकि गत वर्ष इस समय तक 1017.7 मिमी बारिश हो चुकी थीे। इस बार एक दिन में 75 मिमी से अधिक बारिश कभी नहीं हुई। केवल 30 अगस्त को 60.6 मिमी यानी सवा दो इंच बारिश हुई थी, जो अगस्त में 24 घंटे में सर्वाधिक थीे। इसके अलावा तो कम मात्रा में ही बादल बरसे हैं।
21 तालाब व सात बैराज में पानी कम
क्षेत्र में 22 तालाब हैं तथा करीब सात बैराज हैं, जिनमें जलस्तर काफी कम हैं। ग्राम शेरगढ़ का ही तालाब लबालब भर पाया हैे।
बटवाडिय़ा डैम की जल भंडारण क्षमता 7.3 मिलियन घनमीटर है और अभी उसमें मात्र 0.67 मिलियन घन मीटर पानी जमा ह।ैे इसी प्रकार पाज तालाब में जल भंडारण की क्षमता 2.96 मिलियन घन मीटर है और वह भी 0.54 मिलियन घन मीटर ही भर पाया है। इस प्रकार की स्थिति अन्य तालाब और बैराज की भी बनी हुई है। पानी की कमी रहने से अंचल के कई गांवों की नल-जल योजनाओं पर असर पड़ेगाी। भूजल स्तर में वृद्धि नहीं हुई, तो कई पंचायतों मे ं जनवरी से ही पेयजल संकट उत्पन्न होने लगेगा। श्रावण मास में मध्यम बारिश से जमीन में अब तक पर्याप्त नमी है यदि भादौ में एक बार भी घंटेभर तेज बारिश हो जाती है, तो क्षे त्र के कई डैम और तालाब भर जाएंगे।
सिंचाई के मुख्य आधार हैं जलस्रोत
बदनावर क्षेत्र में कृषि का रकबा करीब 84 हजार हेक्टे यर है। इसमें अधिकांश किसानों के लिए सिंचाई के स्रोत ये तालाब और बैराज ही हैं। अधिकांश जलस्रोत पश्चिमी बदनावर क्षेत्र में स्थित हैं।
आदिवासी बहुल इस क्षेत्र की जमीन भी अपेक्षाकृत पथरीली और मुरमयुक्त है। इस कारण यहां रबी सीजन में गेहूं, चना, फूलों व सब्जियों की खेती ही अधिक होती है। जहां पूर्वी बदनावर की काली मिट्टी वाली जमीन में गे हूं की फसल दो से तीन बार की सिंचाई मे भी पर्याप्त उत्पादन दे देती है। वहीं पश्चिमी क्षेत्र मे ं कम से कम छह-सात पानी देने की आवश्यकता पड़ती हैं।
अब अंतिम दौर मे ं भी बारिश नहीं हो पाती है, तो अगली फसलों में पर्याप्त मात्रा में सिंचाई नहीं हो पाने से उत्पादन पर असर पड़ेगा और जलस्तर में वृद्धि नहीं होने से जलसंकट की स्थिति में पानी की कमी होने से लहसुन की बुवाई काफी कम हो जाएगी। गेहूं की जगह भी चने को प्राथमिकता दी जा सकती है, क्योंकि कम पानी में सिर्फ चने की फसल ही है, ठीक-ठाक उत्पादन दे देती है। हालांकि मौसम विभाग के अनुसार आगामी दिनों में ते ज व झमाझम बारिश होगीे।