उज्जैन, (राजेश रावत) अग्निपथ। 42 साल तक उज्जैन के स्कूलों और शिक्षकों को अनार-आम से लेकर राजनीति के समीकरण और उठापटक की चालों को समझाने के बाद भागवत, राम,कृष्ण की व्याख्या को समझाने लगे हैं। उज्जैन में पांडेजी के नाम से मशहूर कवि, व्यंग्यकार डॉ. स्वामीनाथ पांडे। जी हां अब वे भागवत कथा भी करने लगे हैं। प्रयाग के रहने वाले पांडेजी ने भागवत कथा सुनाने की शुरुआत भी वहीं से की है।
9 सितंबर से 15 सितंबर तक उन्होंने प्रयाग में भागवत कथा कहने की शुरूआत की। 7 दिन तक प्रयाग में रामबाबू त्रिपाठी के निवास पर भागवत कथा सुनाकर श्रद्धालुओं को धर्म और अध्यात्म की गंगा में गोते लगवाए। उनके साथ पाठ पारायण में स्वामी श्याम सुंदरदास जी महाराज चित्रकूट वाले भी मौजूद थे। पांडे जी अभी दो तीन माह पहले ही शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय से रिटायर हुए हैं।28 साल से ज्यादा समय तक पांडेजी ने स्कूलों में बच्चों को संस्कृत की शिक्षा दी। करीब 14 साल तक सरकारी बीएड कॉलेज में शिक्षकों को हिंदी और राजनीति की पढ़ाई कराई।
यानी उन्हें समझाया कि बच्चों को हिंदी और राजनीति की पाठ किस तरह से पढ़ाना है। भागवत कथा सुनाने की शुरुआत करने के विषय में पांडेजी का कहना है कि प्रयाग में पहुंचे थे। यहां अनायस ही भागवत सुनाने का मन हुआ और शुरू कर दी। ब्राह्मण परिवार के साथ ही संस्कृत शिक्षक होने की वजह से धर्म और अध्यात्म की तरफ रुझान सदैव ही रहा। इसी के चलते कविता और व्यंग्य भी खूब लिखे।
स्कूल में सख्त स्वभाव के वि यात थे
पांडेजी जाल स्कूल में शिक्षक थे। जहां गरीब और कमजोर तबके के बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाना सबसे टेढ़ी खीर 90 के दशक में माना जाता था। परन्तु स्कूल में जाते से ही पांडेजी के अनुशासन का डंका बजने लगा था। कई बार तो वे अनुशासन और स्वाभीमान के चलते स्कूल के प्राचार्य के कोप का भाजन भी बने। परन्तु बच्चों और सहपाठियों के बीच उनके काम और लगन की प्रशंसा की वजह से उनसे नाराज प्राचार्य को भी अपने फैसले वापस लेने पड़े।
अखबारों में अच्छी पैठ रही
पांडेजी 1990 से 2021 के दशक में शिक्षक के साथ ही अखबारों में भी सक्रिय रूप से लिखते और पत्रकारों की मदद करने वाले रहे। उनके पास उस दौर में अखबारों के प्रबंधन का काम भी रहा। इसी वजह से उन्हें विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान सरकार की तरफ से मीडिया की खबरों पर निगाह रखने वाली टीम में भी शामिल किया गया था। यहां भी वे अफसरों के साथ ही अखबार वालों के दोस्त के रूप में चर्चित रहे।