उज्जैन विकास प्राधिकरण में लोगों के लाखों रुपए अटके, अफसर मौन

जिन लोगों ने बोली में पैसे लगाए कब और कैसे वापस मिलेंगे, कर्मचारियों को नहीं पता

उज्जैन, अग्निपथ। उज्जैन विकास प्राधिकरण में आम आदमी के लिए कोई जगह है ही नहीं। परन्तु अब खास लोग यानी जिन लोगों ने लाखों रुपए लगाकर प्लाट या मकान खरीदे हैं वे भी परेशान हो रहे हैं। हालात यह हैं कि अफसर मौन होकर बैठ गए हैं। एक महीने से ज्यादा समय होने जाने के बाद भी अब तक अव्यवस्था का आलम बना हुआ है। प्लाट या मकान खरीदने वाले अब भी लगातार आफिस के चक्कर काटते हैं, उनकी समस्या का कोई निराकरण नहीं होने पर लोग अफसरों को कोसते हुए वापस चले जाते हैं।

उल्लेखनीय है कि उज्जैन विकास प्राधिकरण ने 300 से ज्यादा की संपत्ति की नीलामी की है। लापरवाह अफसरों की वजह से प्राधिकरण ने आनलाइन प्रक्रिया तो शुरू कर दी। परन्तु न तो अपने कर्मचारियों को उसका प्रशिक्षण दिया है और न ही कोई रिर्हल्स की थी। इस वजह से पहले ही दिन से आनलाइन प्रक्रिया परेशानी का कारण बन गई। कर्मचारियों को रात-रात भर परेशान होना पड़ा। इसके बाद भी अब तक नीलामी की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है। जबकि प्राधिकरण के गठन के मूल में आम आदमी को सस्ता मकान उपलब्ध कराना है। इस समय यूडीए कर उसके उलट रहा है। आम आदमी तो वहां पहुंच ही नहीं रहा है। जबकि जिन लोगों ने जमीन की आस में या लाभ कमाने के लिए पैसे लगाए थे, अब वे भी परेशान हो रहे हैं। बताया जाता है कि इस पूरी प्रक्रिया से सबसे ज्यादा फायदा प्राधिकरण की जमीन से लगी कालोनी और प्लाट वालों को हो गया है। वहां की जमीन की कीमत लाखों रुपए बढ़ गई है।

इस मामले में कहा जा रहा है कि प्राधिकरण ने भूमाफिया से मिलकर इस तरह की योजना बनाई कि उन्हें फायदा हो और नाम प्राधिकरण की जमीन बेचने का रहे। अब कई कालोनी वालों ने अपने रेट बढ़ा दिए हैं। इससे जो मकान बिक नहीं रहे थे उनके भी दाम बढ़ गए हैं।

दलालों की हो गई चांदी

इस आनलाइन प्रक्रिया को शुरू करने के पीछे समझदार अफसरों का तर्क था कि इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और दलालों पर शिकंजा कसेगा, परन्तु हो उल्टा रहा है।ऑनलाइन प्रक्रिया से दलालों की चांदी हो गई है। आम आदमी यूडीए के प्लाट खरीदने की हिम्मत तो वैसे ही नहीं करता था, जिन पैसे वालों ने लाटरी के चक्कर में पैसा लगाया था, वे खुद परेशान हो रहे हैं। अब दलाल कह रहे हैं कि हम जो प्लाट या जमीन आधे दाम में दे रहे थे, उसे यूडीए ने लाखों में बेच दी और कब और कैसे मिलेगी, इसका कोई अता-पता नहीं है। कई लोगों को विवादित जमीन बेच दी है, इससे निपटारा उन्हें खुद कराना पड़ेगा।

यूडीए ने 15 लाख से ज्यादा कमाए, लोग हो रहे हैं परेशान

यूडीए ने 300 से ज्यादा संपत्तियों के बेचने के लिए 500 रुपए से लेकर पांच हजार रुपए तक में फार्म बेचा है। इससे यूडीए को करीब 15 लाख से ज्यादा की इनकम हुई है। इसके अलावा आनलाइन से फार्म जमा करवाने वालों को 500 रुपए एकस्ट्रा कंप्यूटर संचालकों को देने पड़े। इससे आवेदन करने वाले हर व्यक्ति को एक हजार से 1500 रुपए तक की चपत लगी है। वह भी केवल आवेदन फार्म जमा करने पर। वहीं तारामंडल का पास का प्लाट इंदौर के एक व्यापारी ने 34 करोड़ रुपए में खरीदा है। जबकि शिप्रा विहार में एक प्लाट के लिए 40 हजार रुपए से ज्यादा प्रति वर्गमीटर की बोली जगदीश सचदेवा नामक व्यक्ति ने लगाई है। यह अब तक की सबसे ज्यादा प्रतिवर्ग मीटर में लगाई गई बोली बताई जा रही है।

गलती यूडीए के अफसरों की, लोगों से ले रहे स्पष्टीकरण

इस पूरी प्रक्रिया में बताया जाता है कि अफसरों ने लाखों के वारे न्यारे किए हैं। वहीं प्लाट और मकान खरीदने के लिए जो आवेदन जमा करवाया गया था वह भी अस्पष्ट था। यानी उसमें प्लाट या मकान की कुल कीमत में भरना थी या प्रतिवर्ग मीटर में। यह साफ नहीं था, केवल दलालों को ही इसकी जानकारी थी। इसलिए उन्होंने फार्म को सही तरीके से भरा। परन्तु ज्यादातर लोगों ने प्लाट या मकान की कुल कीमत का जिक्र किया था। इससे उनके नाम का प्लाट या मकान नहीं खुल पाया और वे नीलामी प्रक्रिया में बाहर हो गए। इस लिहाज से यह यूडीए का सबसे बड़ा घोटाला करने का प्रयास किया गया है। परन्तु लोगों के विरोध की वजह से मामला खुलने लगा तो यूडीए के अफसरों ने अपनी गलती को छुपाने का नया रास्ता निकाल लिया है। वे अब लोगों से स्पष्टीकरण पत्र भरवा रहे हैं। ताकि कोर्ट में जाने या विवाद होने पर उसे आवेदनकर्ता के खिलाफ ही इस्तेमाल किया जा सके।

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