अपने लजीज मुगलई भोजन और निजामी तहजीब के लिये दुनिया भर में मशहूर हैदराबाद चटोरे स्वाद प्रेमियों के लिये किसी जन्नत से कम नहीं है। यहाँ की लजीज बिरयानी, पाये की खुशबू दूर-दूर से पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेती है। महारानी एलिजाबेथ के मुकुट में जड़ा कोहिनूर हीरा यहाँ की गोलकुंडा की हीरों की खदान से ही निकला था।
दक्कन के पठार पर मूसा नदी के तट पर 82 लाख की आबादी वाला हैदराबाद भारत का चौथा सबसे अधिक आबादी वाला शहर है। भारत के राज्य तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद का प्राचीन नाम भाग्यनगर था। सूचना प्रौद्योगिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी का केन्द्र होने के साथ भारत के सर्वाधिक विकसित नगरों में से यह एक है। इसे निजाम तथा मोतियों का भी शहर कहा जाता है।
मायानगरी मुम्बई से 750, बैंगलोर से 574, चैन्नई से 700 किलोमीटर दूर स्थित यह नगर गोलकुंडा का किला, चारमीनार, बिड़ला मंदिर, सालारजंग संग्रहालय, हुसैन सागर झील के लिये भी जाना जाता है। सन् 1591 में कुतुबशाही वंश में पाँचवें मुहम्मद कुली कुतुबशाह ने इस नगर को बसाया था। हैदराबाद के भारत में विलय की कहानी भी इतिहास की एक बड़ी घटना है। भारत में 1947 के समय 562 रजवाड़े थे। तीन रियासतें कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद को छोडक़र सभी रियासतों का विलय भारत में हो गया था।
विचित्र बात यह थी हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति का इससे अच्छा उदाहरण कोई और हो ही नहीं सकता कि हैदराबाद रियासत की 80 प्रतिशत आबादी हिंदू थी और वहाँ के निजाम (राजा) मुस्लिम थे। इसी तरह कश्मीर में मुस्लिम आबादी का बाहुल्य होने के बावजूद वहाँ के राजा हरिसिंह हिंदू थे। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद होने के बाद हैदराबाद के निजाम भारत में विलय के विरुद्ध थे और वह पाकिस्तान में विलय चाहते था या फिर गोवा में पुर्तगालियों से संधि चाहते थे।
भारत से युद्ध के लिये उन्होंने हथियार खरीदने के लिये अपने आदमियों को यूरोप भी भेजा था जो दो हवाई जहाजों के माध्यम से हैदराबाद लाये जाने वाले थे परंतु ऐनवक्त पर भारत सरकार को पता लगने पर हवाई जहाजों की उड़ानों पर ही प्रतिबंध लगाकर निजाम के मंसूबों को विफल कर दिया गया।
उस समय की हैदराबाद रियासत का क्षेत्रफल 82698 वर्ग मील था जो कि इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के कुल क्षेत्रफल से भी अधिक था। प्रधानमंत्री नेहरू के विरोध के बावजूद तात्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ पटेल ने 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना को हैदराबाद में उतार दिया चूँकि हैदराबाद में उस समय 17 पोलो मैदान हुआ करते थे इसलिये इस सैन्य कार्यवाही को नाम दिया गया। आपरेशन ‘पोलो’ 5 दिनों तक चली लड़ाई में हैदराबाद की ओर से लडऩे वाले 1373 रजाकारों, हैदराबाद राज्य के 807 सैनिकों की और 66 भारतीय सैनिकों की मौत हुई और हमारे 97 जवान घायल हुए। लड़ाई में पराजित हैदराबाद के निजाम ने 17 सितंबर 1948 को अधिमित्रता पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये और हैदराबाद रियासत भारत का अंग बन गई।
अब बात करते हैं हैदराबाद महानगर पालिका की। जिसमें 150 पार्षदों के लिये हाल ही में हुए चुनाव में 74.67 लाख मतदाता थे। सालाना साढ़े 5 हजार करोड़ के बजट वाली महानगर पालिका के चुनाव इस बार भारतीय जनता पार्टी ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर लड़ा था। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सहित मोदी मंत्रिमंडल के अनेक मंत्री वहाँ डटे रहे।
वर्ष 2016 में 150 पार्षद पद के लिये हुए चुनावों में सत्तारूढ़ तेलंगाना (टीआरएस) को 99 सीटें, आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) औबेसी की पार्टी को 44 सीटों पर, भारतीय जनता पार्टी को मात्र 3 सीटों पर और काँग्रेस को 2 सीटों पर सफलता मिली थी।
119 सदस्यों वाली तेलंगाना विधानसभा में वर्तमान में भाजपा के 2 विधायक और 17 लोकसभा सीटों में से 4 सांसद भाजपा के हैं। आगामी 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों के रिहर्सल हेतु पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंककर इन चुनावों को दिलचस्प बना दिया था। परंतु परिणामों में टीआरएस की सीटें कम होने के बावजूद वह शीर्ष पर बनी हुई है। भारतीय जनता पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन कर अपना पिछला प्रदर्शन सुधारा है। कार्यकर्ता प्रफुल्लित और उत्साहित है। तीसरे नंबर पर ओवैसी की पार्टी है।