पहले जनप्रतिनिधि, पुलिस और अन्य शासकीय विभागों के अधिकारी फोन पर दबाव बनाकर करवाते थे अनुमति
उज्जैन, अग्निपथ। श्री महाकालेश्वर मंदिर में कलेक्टर और प्रशासक के प्रयासों से व्यवस्थाओं में धीरे-धीरे पारदर्शिता आती जा रही है। अब प्रोटोकाल भस्मारती टोकन सिस्टम से शुरू कर दी गई है। ऐसे में चुने हुए प्रतिनिधि प्रोटोकाल लेने वालों के नाम डालकर भस्मारती करवा रहे हैं। यह व्यवस्था लागू हो जाने के बाद भस्मारती व्यवस्था से जुड़े कर्मचारियों ने भी राहत की सांस ली है।
प्रोटोकाल भस्मारती अनुमति बनाने में मंदिर के कर्मचारियों को सबसे अधिक परेशानी आ रही थी। प्रोटोकाल भस्मारती प्रभारी अभिषेक भार्गव के पास जनप्रतिनिधि, शासकीय विभागों के अधिकारियों, प्रशासनिक व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों के भस्मारती अनुमति बनाने के फोन आ रहे थे। जिसके चलते सभी को ना करना मुसीबत का सबब बन रहा था।
ऐसे में विगत चार दिन पहले टोकन सिस्टम व्यवस्था प्रोटोकाल भस्मारती अनुमति बनवाने में लागू कर दी गई। इस व्यवस्था के लागू हो जाने से चुने गए प्रतिनिधि अनुमति करवाने के लिए नाम प्रोटोकाल भस्मारती प्रभारी अभिषेक भार्गव को सेंड करेंगे। इसके बाद इसको भस्मारती ग्रुप पर डालकर टोकन नंबर जारी कर दिया जाएगा।
अधिकारी भी जुड़े हैं ग्रुप से
भस्मारती टोकन जारी करने के गु्रप से कलेक्टर से लेकर अन्य प्रशासनिक अधिकारी और मंदिर के अधिकारी भी जुड़े हैं। ऐसा होने से भस्मारती अनुमति कौन बनवा रहा है और किसके मार्फत अनुमति हो रही है। इसकी जानकारी सभी के पास रहेगी। इससे प्रोटोकाल भस्मारती में पारदर्शिता रहेगी और कर्मचारियों पर अनावश्यक लोग दबाव नहीं बना पाएंगे। जिससे दलाली पर भी काफी हद तक अंकुश लग पाएगा।
रोटेशन ड्यूटी फेल: शीघ्र टिकट काउंटर में जमें हैं वर्षों से
मंदिर में रोटेशन ड्यूटी ठीक तरह से लागू नहीं की गई है। जिसके चलते एक ही जगह पर कई कर्मचारी वर्षों से टिके हुए हैं। प्रशासनिक कार्यालय में बैठे प्रभारी का वरदहस्त होने के कारण इन कर्मचारियों को अभयदान मिला हुआ है। केवल कुछ ही कर्मचारी हैं, जिनको रोटेशन ड्यूटी का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
4 नंबर गेट पर स्थित 250 रुपए शीघ्र दर्शन टिकट काउंटर पर नियुक्त कर्मचारी विनोद जोशी और गोपाल नामदेव और महाकाल प्रवचन हॉल के मुख्य गेट पर स्थित टिकट काउंटर कर्मचारी राजेन्द्र कौशल और उमेश जोशी को ही देखा जाए तो यह 6 से 8 साल से यही काम देख रहे हैं। हालांकि गोपाल नामदेव को बीच बीच में इधर से उधर कर दिया जाता है, लेकिन बाद में वापस इसी काम में ड्यूटी लगा दी जाती है।