देश के साम्प्रदायिक सौहार्द पर शायद किसी की बुरी नजर लग गयी है। ऐसा नहीं है कि हिंदू-मुस्लिमों के बीच रोपित की गयी नफरत की यह बेल अचानक से अपने यौवन पर आ गयी हो इसे इस अवस्था में पहुँचने में पूरे 165 वर्ष लगे हैं।
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन् 1857 के पूर्व भारत में किसी भी प्रकार की साम्प्रदायिक समस्या नहीं थी और ना ही साम्प्रदायिक दंगों का इतिहास है। 1857 में अँग्रेजों से मुकाबला हिंदू-मुस्लिमों ने भारतीय बनकर किया था। 1857 तक हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे की मदद करते थे हिंदू ईद मनाते थे और मुस्लिम दीपावली ।
बस यही बात अँग्रेजों को चुभ गयी और दूरदृष्टा अँग्रेजों ने भांप लिया था कि यदि हिंदू-मुस्लिमों के भाईचारे को तोड़ा नहीं गया तो यह एकता उनके लिये बड़ा खतरा बन जायेगी। अँग्रेजों ने निचले दर्जे की पराकाष्ठा को भी तोड़ते हुए पहले मुस्लिमों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काते हुए एंग्लो-मुस्लिम एकता की बात कही और बताया कि हिंदू-मुस्लिम एकता किसी भी कीमत पर संभव नहीं है।
इस षड्यंत्र में सफल ना होने पर अँग्रेज इंजीनियर कलेक्टर गुपचुप तरीके से पंडितों को बुलवाकर उन्हें रिश्वत के रूप में मोटी रकम देकर मुसलमानों के खिलाफ बुलवाते और इसी तरह गुप्त रूप से मौलवियों को बुलवाकर उनकी भी जेब गरम करके उनसे हिंदुओं के खिलाफ बयान दिलवाते। अंग्रेजों ने धीरे-धीरे भारतीयों के शरीर में साम्प्रदायिकता के जहर को साल-दर-साल दशक – दर- दशक राजनीतिक रूप से प्रवेश करवाया।
यह वही हिंदुस्तान है जहाँ के हिंदू मुस्लिम प्रेम की नजीर पूरी दुनिया में दी जाती थी। इतिहास गवाह है कि हल्दी घाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए युद्ध में मुस्लिम शासक अकबर के प्रधान सेनापति हिंदू राजा मानसिंह थे और उनके सहायक के रूप में अकबर का बेटा सलीम था।
वहीं महाराणा प्रताप के सेनापति 38 वर्षीय मुस्लिम हकीम खान सूर ने महाराणा प्रताप की ओर से लड़ते हुए अपनी शहादत दी। वीर हकीम खान के उनकी तलवार के साथ ही दफनाया गया था।
अकबर की मुगल सेना की सबसे पहली टुकड़ी के मुखिया हिंदू राजा लूणकरण थे। छत्रपति वीर शिवाजी की फौज में 12 सेनापति मुस्लिम थे। शिवाजी के 18 अंगरक्षकों में से 12 मुस्लिम थे।
शिवाजी जब निहत्थे घोड़े पर बैठकर अफजल खाँ से मिलने जा रहे थे तब | उनके विश्वसनीय गुप्तचर रूस्तमें एजमान ने ही उन्हें आगाह किया था और सुरक्षा के लिये बाघ का नाखून दिया था। मुलाकात के दौरान शिवाजी ने जब अफजल पर हमला किया तब अफजल के सचिव हिंदू कृष्णा जी भास्कर कुलकर्णी ने तलवार निकालकर अफजल को शिवाजी से बचाया।
अकबर और शिवाजी दोनों ने ही हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया था। जहाँ अकबर के दरबार में हिंदू अधिकारी उच्च पदों पर नियुक्त थे वहीं शिवाजी के मराठा हिंदू स्वराज्य में मुस्लिम सबसे विश्वसनीय दरबारी थे ।
14 जनवरी 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ायी जो अहमद शाह अब्दाली और पुणे के सदाशिव राव भाऊ के बीच हुआ था जिसमें मराठा सैनिकों का नेतृत्व मुस्लिम ने किया था। यह है हमारे भारत का इतिहास | अँग्रेजों द्वारा सन् 1857 में हिंदू-मुस्लिमों के बीच नफरत का जो पौधा रोपा गया था वह 1919 में पंजाब के अमृतसर में हुए जलियावाला बाग कांड तक प्रभाव नहीं दिखा पाया था। आज भी अमृतसर के उपायुक्त गुरप्रीत द्वारा जो 492 शहीदों की सूची सुरक्षित है जिसमें शहादत देने वाले 492 भारतीयों में 52 मुस्लिम थे।
देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने के लिये भारत के हिंदुओं- मुस्लिमों ने मिलकर अँग्रेजों के खिलाफ लड़ायी लड़ी और देश को आजाद कराया। जाते-जाते हिंदुस्तान के अंतिम वायसराय लार्ड माउंट बेटन ने 3 जून 1947 को कागजों पर ही देश के टुकड़े नहीं किये बल्कि भारत माता के शरीर को दो भागों में बांट दिया। ऐसा नहीं है कि अलग देश की माँग करने वाले मुहम्मद अली जिन्ना शुरू से हिंदुओं के विरोधी थे।
जिन्ना अपने राजनीतिक जीवन के शुरुआती वर्षों में हिंदू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे। अँग्रेजों ने एक सोची समझी साजिश के तहत उन्हें अपना मोहरा बनाने में सफलता प्राप्त की। अँग्रेज सन् 1947 में भारत छोड़कर चले गये पर हिंदू मुस्लिम के बीच नफरत की जो आग लगाकर गये वह समय-समय पर धधक जाती है ।
हाल ही में जारी एक फिल्म ने इस आग मैं घी का काम किया है। भले ही उसके निर्माता कह रहे हो कि उनकी फिल्म का इस तरह का उद्देश्य नहीं था उसका राजनीतिकरण किया गया है। पर अब इस समय आया यह बयान औचित्य ही है, जो होना था सो हो चुका।
दुनिया के किसी भी धर्म में हिंसा के लिये कोई स्थान नहीं है। आतंक, दहशतगर्दी की इजाजत किसी भी धर्म के अनुयायियों की नहीं है। 570 ईसवी में जन्म लेने वाले इस्लाम धर्म का भारत में प्रवेश 1200 ईसवीं में हुआ था।
अपराधियों की कोई जात, कोई धर्म नहीं होता और दुनिया में ऐसा कोई धर्म नहीं है जिसमें अपराधी ना हो । मल्लाह जाति की दस्यु फूलन देवी ने बेहमई में 17 निर्दोष क्षत्रियों की हत्या की थी इसका यह मतलब नहीं है कि पूरी मल्लाह जाति अपराधी हो गयी। उत्तरप्रदेश में ब्राह्मण समाज के विकास दुबे ने एक दर्जन से अधिक पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी इसका यह मतलब नहीं है कि पूरा ब्राह्मण समाज इस घटना के लिये दोषी है या हम हर ब्राह्मण या मल्लाह जाति के व्यक्ति को शंका की निगाह से देखे ।
जहाँ तक कश्मीर का सवाल है तो इस्लाम तो 1200 ईसवी में भारत आया परंतु 1147 से 1149 में ‘कल्हण’ द्वारा संस्कृत में चित ‘राजतरंगिणी’ ग्रंथ में कश्मीर के इतिहास का वर्णन है। जिसमें कश्मीर का नाम ‘कश्यपमेरू’ बताया गया है कश्यप ऋषि, ब्रह्मा के पुत्र ऋषिमरीचि के प्रपौत्र थे।
कश्यप ऋषि के नाम से ही इसका नाम कश्मीर पड़ा। पांडवों में सबसे छोटे सहदेव ने कश्मीर राज्य की स्थापना की थी उस समय कश्मीर में वैदिक धर्म ही प्रचलित था। इसके बाद 273 ईसा पूर्व कश्मीर में बौद्ध धर्म का आगमनहुआ।
14वीं शताब्दी में 1389 से 1419 तक आततायी सुल्तान सिकन्दर बुतशिकन ने कश्मीर पर राज किया और उसने वहाँ रह रहे हिंदुओं को इस्लाम धर्म अपनाने पर मजबूर किया। फिर भी हिंदुस्तान में दो रियासतें हिंदु-मुस्लिम एकता के सबसे बड़े उदाहरण बने। कश्मीर में मुस्लिमों की जनसंख्या ज्यादा होने पर राजा हिंदू ही बने गुलाब सिंह जी। इसी तरह हैदराबाद में हिंदुओं की जनसंख्या अधिक होने पर भी वहाँ के निजाम मुस्लिम थे ।
खैर मैं किसी जाति या धर्म की पैरवी नहीं कर रहा हूँ, परंतु इतने वर्षों बाद जख्म कुरेदने से हासिल कुछ नहीं होगा। बल्कि जख्म ताजे होंगे जो सिर्फ अँग्रेजों के मंसूबों को फलीभूत होने में ही मददगार होंगे।
ऐसा नहीं है कि 90 के उस दौर में सब कुछ नकारात्मक ही थी बहुत सारी सकारात्मक चीजे भी थी जो मीडिया ने प्रकाशित भी की है कि किस तरह मुस्लिम भाइयों ने हिंदुओं की उस दौर में भी मदद की है। कुछ दहशतगर्दों के कारण देश के सभी इस्लाम अनुयायियों पर अंगुली उठाना किसी भी दृष्टि से न्यायोचित नहीं है।
कश्मीर की परिस्थितियां तेजी से बदल रही है। बीते 32 वर्षों में बहुत सा पानी बह गया है। हम उम्मीद करते हैं कि केन्द्र सरकार के प्रयासों से ऋषि कश्यप की भूमि की केसर क्यारियां फिर से मुस्करायेगी।