अभिनव रंगमंडल का 40वां स्थापना दिवस: ग़ज़लों ने समा बांधा

उज्जैन । अभिनव रंगमंडल द्वारा अपनी स्थापना के 40  वें वर्ष के उपलक्ष में प्रति माह होने वाले कार्यक्रमों की श्रंखला में, इस माह शाम-ए- ग़ज़ल का कार्यक्रम आयोजित किया । मध्य प्रदेश सामाजिक शोध संस्थान के सहयोग से आयोजित, इस कार्यक्रम का आरंभ उर्दू के साहित्यकार मरहूम महमूद ज़की द्वारा रचित उज्जैन का तराना ” कितनी जवां कितनी हंसी”  को गायक सुरेश कुमार एवं गायिका दूर्वा श्रीवास्तव ने अपनी मधुर आवाज से श्रोताओं को अपनी और आकर्षित किया ।

आगे इन दोनों के स्वर में  “ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, मगर छीन लो मुझसे मेरी जवानी” ग़ज़ल ने  श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इसी तरह “कच्ची दीवार हूं, ठोकर ना लगाना मुझको ” “नींद आती है तो” “इतना टूटा हूं कि छूने से बिखर जाऊंगा” “आज जाने की ज़िद ना करो” “वक्त तो लगता है” आदि ग़ज़लों ने महफिल को चार चांद लगा दिये।

लेकिन सुरेश कुमार द्वारा गाई हुई ग़ज़ल “कच्ची दीवार हूं ठोकर ना लगाना मुझको” और दूर्वा श्रीवास्तव द्वारा गाई हुई गजल “ये खनक ते हुए सागर नहीं देखे जाते” इन दोनों ग़ज़लों ने महफिल को एकदम परवान पर चढ़ा दिया । सतीश श्रीवास की ढोलक, विवेक धवन के तबले और  परमानंद द्वारा सिंथेसाइजर हारमोनियम के भराव ने समा बांध दिया ।

कार्यक्रम के आरंभ में अभिनव रंगमंडल के संस्थापक अध्यक्ष शरद शर्मा ने रंगमंडल की गतिविधियों पर संचालन करते हुए विस्तार से प्रकाश डाला । वरिष्ठ नेता मनोहर बैरागी , म.प्र. सामाजिक शोध संस्थान के निदेशक, यतींद्र सिंह, बैंक ऑफ इंडिया के उप आंचलिक  प्रबंधक  विनय कुमार सिंह,समाजसेवी रमेश साबु  और भोपाल से पधारे पीके श्रीवास्तव ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया आभार व्यक्त संस्था की कलाकार डा. पांखुरी वक्त जोशी ने किया ।

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