मराठी नाटक में दिखा जो जीता वहीं फैमिली नंबर वन
उज्जैन, अग्निपथ। जिस घर में विवाह योग्य उम्र का लडक़ा हो या लडक़ी हो, वहीं यह विषय हमेशा चिंता का विषय होता है। शादी में देर होने या जुडऩे में देरी होने के कारण कई बार घरवालों को अपने ही करीबी रिश्तेदारों से व्यंग्यात्मक लहते में बातें सुननी पड़ती है, ऐसे हास्य व्यंग्य से सराबोर मुंबई से आये मराठी नाटक ‘फैमिली नंबर वन’ को स्वर संवाद सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था उज्जैन द्वारा रविवार 19 जून को कालिदास अकादमी के पं. सूर्यनारायण व्यास संकुल हॉल में मंचित किया गया।
नाटक के प्रारंभ में दीप प्रज्ववलन और सरस्वती माल्यार्पण अवंतिका यूनिवर्सिटी के रजिस्टार महेश पाटिल एवं कुलपति नितिन राणे ने किया। मंच पूजा अरविंद सोरटी एवं पुष्पा सोरटी ने किया। आनन्द म्हस्वेकर का स्वागत रविन्द्र और आशा अयाचित ने, अर्चना एवं माधव तिवारी का स्वागत विवेक बंसोड़ एवं अर्चना बंसोड़ ने किया। नयना आप्टे का स्वागत प्रवीण एवं ज्योत्स्ना देवलेकर ने किया। ‘एक होती आई तिला सासू व्हायची घाई’ इस मधुर गाने से शुरू हुए नाटक की कहानी हास्य पिरोते हुए आगे बढ़ती है। लडक़े की शादी में देरी के कारण सदानंद की मां सुलक्षणा बाई को भी रिश्तेदारों के ताने सुनना पड़ते हैं।
एक दिन उन्हें व्हाट्सएप पर ‘फैमिली नंबर वन’ बनने की प्रतियोगिता के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। उसमें टूर्नामेंट के विजेताओं को श्रीलंका की यात्रा करने का अवसर मिलने वाला था। लेकिन प्रतियोगिता के नियमों के अनुसार घर में बहु का होना जरूरी है। सुलक्षणा बाई का लडक़ा सदानंद कुंवारा है, सदानंद की मां सुलक्षणा बाई प्रतियोगिता वालों को जोर देकर कहती है कि प्रतियोगिता में शामिल होने की आखिरी तारीख तक सदानंद की शादी हो जाएगी।
नाटक के कथानक में हास्य सस्पेंस का रोमांच भरता है और प्रतियोगिता में शामिल होने की आखिरी तारीख शादी की भी तारीख साबित होती है। करीब दो घंटे तीस मिनिट चले इस नाटक में परिवार के मुखिया के रूप में सुलक्षणा बाई की भूमिका में नयना आप्टे ने भरपूर हास्य बिखेरा, सदानंद की भूमिका को विनय म्हसवेकर ने बहुत ही मजेदार तरीके से निभाया। श्रध्दा मोहिते ने लीना की भूमिका में सहजता से अभिनय किया।
नाटक में चौथी भूमिका सुगत उधळे द्वारा श्रध्दाके पिता चंद्रकांत पाटील के रूप में निभाई। शीर्षक गीत अभिषेक नलवाड़े ने गाया। लेखक आनंद म्हसवेकर द्वारा लिखित एवं दिग्दर्शित इस नाटक को सुखदा भावे दाबके के शीर्षक एवं पार्श्व संगीत ने नाटक को गली दी। साथ ही हार्दिक प्रजापति ने सफलतापूर्वक नेपथ्य संभाला।
विनय आनंद की प्रकाश योजना ने नाटक के दृश्य और संवाद अदायगी के साथ अच्छा तालमेल दिखाया। जिव्हाळा निर्मित नाटक फैमिली नंबर वन हास्य विनोद के साथ बीच-बीच में सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधी ज्वलंत विषयों में भी अपनी बातें रखने में सफल रहा। नाटक का संचालन रागिणी भागवत ने किया।