गत सप्ताह इंदौर में हुई शर्मा दंपत्ति की हत्या अपने पीछे अनेक अनुत्तरित प्रश्न समाज के सामने छोड़ गयी है जिनका उत्तर तलाशना हम सबकी नैतिक जवाबदारी है। माता-पिता की हत्या की साजिश रचने वाली मात्र 15 वर्ष की बेटी ने समाज में मध्यमवर्गीय परिवारों के हालातों की तस्वीर उजागर कर दी है।
जिस माँ ने उसे नौ माह तक अपनी कोख में रखकर जन्म दिया, दुग्धपान कराकर पोषित और पल्लवित किया, जिस पिता ने उसे इस संसार में लाने का कार्य किया, लालन-पोषण का कार्य किया उन्हीं माँ-बाप को बेटी ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर मौत के घाट उतरवा दिया। रौंगटे खड़े करने वाली इस घटना की कल्पना मात्र से रूह काँप जाती है।
धनाभाव में जी रहे या झुग्गी झोपड़े में रह रहे किसी परिवार में यह घटना घटित होती तो समझ में आता कि अशिक्षा, कुसंस्कारों या परिवेश के कारण यह सब घटित हुआ होगा परंतु एक ऐसे परिवार में यह सब घटित हुआ है जहाँ मृतक पिता शासकीय सेवा में होकर सशस्त्र बटालियन में पदस्थ थे। माँ भी शिक्षित होकर शिक्षिका का कार्य करती थी। ऐसी क्या परिस्थितियाँ निर्मित हुई होगी कि अध्ययनरत एक नाबालिग पुत्री ने अपने ही माता-पिता की हत्या करवा दी।
शायद इस घोर कलियुग में इस तरह की घटनाओं में वृद्धि होना ही है जहाँ रिश्तों-नातों की कोई अहमियत रह नहीं गई है। आये दिन भाई द्वारा भाई की हत्या, पति द्वारा पत्नी की हत्या, प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या जैसे शीर्षक समाचार अखबारों में नजर आते हैं। मात्र कलियुग के कारण इस तरह की घटनाओं का होना मानकर विज्ञान के इस युग में चुप नहीं बैठा जा सकता है समाज को इन अप्रत्याशित घटनाओं के पीछे छिपे मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारणों को तलाशना होगा और उनका समाधान निकालने के प्रयास करने होंगे तभी इस प्रकार की घटनाओं को रोका जा सकेगा।
हम दो हमारे दो के इस नारे ने भले ही हमारी आबादी पर नियंत्रण में कारगर भूमिका निभाई हो परंतु ‘हम’ दो ‘हमारे’ दो के ‘हम’ शब्द ने हमारे संयुक्त परिवारों के विघटन में आग में घी की तरह काम किया। हमारे संयुक्त परिवार टूट-टूट कर ‘माइक्रो न्यूक्लियर’ परिवारों में बदल गये जहाँ पति-पत्नी और बच्चे रह गये। दादा-दादी, ताऊ-ताई, काका-काकी सब दूर होने चले गये। हमें जरूरत से ज्यादा आजादी की चाहत संयुक्त परिवार को तोडक़र दूर ले आई जहाँ हमारी भी संतानों पर संयुक्त परिवारों की तरह कोई अंकुश और नियंत्रण नहीं रहा ना दादा-दादी का डर और ना ही काका-ताऊ का डर।
बेलगाम हो रही सोश्यल मीडिया ने उन्हे किसी और ही दुनिया का वाशिंदा बना दिया। इंदौर में हुई शर्मा दंपत्ति हत्याकांड के पीछे भी कुछ ऐसे ही कारण नजर आते हैं। आरोपी बेटी के मृत पिता शराब के आदी थे, सशस्त्र बल में तैनाती के कारण मानसिक तनाव में रहना स्वाभाविक-सी बात है। चूँकि चालक के पद पर पदस्थ थे इस कारण ड्यूटी का भी कोई निश्चित समय ना होना तय सा है।
वर्दी का रौब मनुष्य के स्वाभाविक व्यक्तित्व को विकृत करके एक आडम्बर रहित कृत्रिम व्यक्तित्व को निर्मित कर देता है जिसमें वर्दी वाले इंसान में यह रौब आ जाता है कि वह समाज में सामान्य लोगों से हटकर कुछ खास है। शायद मृतक शर्मा जी भी कृत्रिम व्यक्तित्व का उपयोग परिवार में भी करने लगे थे अपनी पुत्री को उसके प्रेमी के साथ देखकर आग बबूला होकर पुत्री व उसके प्रेमी के साथ थर्ड डिग्री का प्रयोग तो किया ही होगा साथ ही उसे शासकीय जीप में डालकर घर तक लाये।
शराब की लत के आदी और नौकरी के दबाव के कारण वह परिवार के साथ भी वैसा व्यवहार नहीं कर पाये जो उन्हें करना चाहिये था। पत्नी से भी आये दिन इन्हीं कारणों से होने वाले विवादों ने भी बच्ची के मन पर विपरीत असर डाला होगा। श्रीमती शर्मा के बारे में भी पड़ोसियों का कहना था कि वह छत पर लंबे समय तक मोबाइल पर बात करती रहती थी यहाँ तक कि स्कूल जाते समय भी उनके कानों से मोबाइल नहीं हटता था।
पिता का असामान्य व्यवहार, माँ-बाप का आपसी विवाद, पति-पत्नी में सामंजस्य न होने के कारण उसे जिस उम्र में माता-पिता का प्यार मिलना था वह उस सुख से वंचित रही। ऐसी परिस्थितियों में उसे एक युवक मिला जिससे उसे अपनापन भी मिला और अकेलापन भी दूर हुआ। अपनी बातें वह युवक के साथ साझा करने लगी और उसे हर समस्या का समाधान अपने प्रेमी में नजर आने लगा।
इन्हीं हालातों में उसका मानसिक डिस्आर्डर हो गया जिसके कारण अच्छा-बुरा सोचने-समझने की और परिणामों के आंकलन में उसकी संवेदनशीलता शून्य हो गई और उसने इस घृणित षड्यंत्र को प्रेमी के साथ मिलकर अंजाम दिया जिसने मानवीय और पवित्र रिश्तों पर कलंक लगाकर तार-तार कर दिया।
यह घटना भी पूरे समाज के लिये चिंतन का विषय भी है। पुरुषों को चाहिये कि घर के बाहर काम के दबाव को वह घर पर ना लाये ताकि परिवारों के साथ सामंजस्य बैठ सके, टीनएजर्स को बच्चों के मित्र समझकर उनसे सारी बातें शेयर करें, परिवार को पर्याप्त समय दें और अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करते समय वास्तविक व्यक्तित्व के साथ जिये।
महिलाओं को भी चाहिये कि मोबाइल का सीमित उपयोग कर अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय दें, उनकी ‘हमराज’ बनें, सोश्यल मीडिया से बहुत अधिक नजदीकी न रखें। यदि ऐसा ना हो सका तो इस तरह की घटनाओं में वृद्धि होना रोकना मुश्किल होगा।