उज्जैन जिला पंचायत पर भाजपा का कब्जा, कांग्रेस से छीना अध्यक्ष पद

उज्जैन जिला पंचायत

तीन बागी सदस्यों के भी वोट मिले

उज्जैन, अग्निपथ। उज्जैन जिला पंचायत में शुक्रवार को हुए चुनाव में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों पद भाजपा के खाते में आ गए हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर कमला कुंवर और उपाध्यक्ष के पद पर शिवानी कुंवर ने चुनाव जीता है। चुनाव के दौरान कई बार भाजपा-कांग्रेस के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं में हंगामेदार स्थिति बनी। पुलिस को यहां लाठियां भी फटकारना पड़ी।

उज्जैन जिला पंचायत के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद का चुनाव शुक्रवार को जिला पंचायत भवन दमदमा में हुआ। भाजपा ने कमला कुंवर अंतरसिंह बरडिय़ा को जिला पंचायत अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया था। कांग्रेस ने हेमलता सिंह को जिला पंचायत अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया था। भाजपा की कमला कुंवर अध्यक्ष पद के लिए विजय घोषित हुई है, उन्हें 21 में से कुल 14 सदस्यों के वोट मिले।

कमला कुंवर अध्यक्ष

उज्जैन जिला पंचायत शुक्रवार सुबह 10.30 बजे से चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के बाद 10. 45 बजे नाम निर्देशन जमा किए गए। दोपहर 1 से 1. 45 बजे तक का समय मतदान के लिए रखा गया था। चुनाव संपन्न होने के बाद जिला निर्वाचन अधिारी सह कलेक्टर आशीष सिंह ने परिणामों की घोषणा की। बीजेपी की कमला कुंवर को 21 में से 14 वोट मिलने के बाद विजयी घोषित कर दिया गया। कुल वोट में से 5 प्रॉक्सी वोट डालें गए। कांग्रेस प्रत्याशी हेमलता कुंवर को 7 वोट मिले हैं।

उपाध्यक्ष के चुनाव में कम हुआ एक वोट, शिवानी कुंवर उपाध्यक्ष

उपाध्यक्ष पद के लिए भाजपा ने शिवानी कुंवर को और कांग्रेस ने सुरेश चौधरी को उम्मीदवार बनाया था। इसमें भाजपा की शिवानी कुंवर ने 13 सदस्यों के वोट हांसिल कर विजयी प्राप्त की। कांग्रेस के सुरेश चौधरी को 8 वोट मिले हैं। अध्यक्ष पद के मुकाबले उपाध्यक्ष पद के चुनाव में भाजपाई खेमे का एक वोट कम हो गया था।

पुलिस को चलाना पड़े डंडे

जिला पंचायत भवन के बाहर और अंदर शुक्रवार सुबह से ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। कोठी रोड पर जिला पंचायत के प्रवेश मार्ग पर सुबह हंगामे की स्थिति बनी। भीतर प्रवेश करने को लेकर कांग्रेस और बीजेपी के कार्यकर्ता पुलिस अधिकारियों से भिड़ गए। पुलिस ने हल्का बल प्रयोग कर भीड़ को तितर-बितर किया।

तीन महिलाओं का कब्जा

जिला पंचायत के तीन शीर्ष पदों पर अब महिलाओं का कब्जा है। अध्यक्ष कमलाकुंवर और उपाध्यक्ष शिवानी कुवंर के साथ ही जिला पंचायत सीईओ के पद पर आईएएस अंकिता धाकरे मौजूद है। ये तीन महिलाएं ही जिले की 6 जनपद, 1148 गांव और 609 ग्राम पंचायतों में रहने वाली लगभग 12 लाख आबादी के भविष्य और जिले के विकास से संबंधित फैसला करेंगी।

उपाध्यक्ष पद की शर्त पर मिले 3 वोट

भाजपा के पास उज्जैन जिला पंचायत में 21 में से 11 निर्वाचित सदस्य थे। एक-दो निर्वाचित सदस्य भी इधर-उधर खसक जाते तो पार्टी को पिछली बार की तरह शर्मिंदगी उठाना पड़ती। पार्टी नेताओं ने इस मामले में जोखिम मोल नहीं लिया। भाजपा से ही बागी होकर चुनाव जीते तीन सदस्यों को भी अपने साथ शामिल कर वोट संख्या 14 की। महिदपुर क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव जीते श्याम सिंह, प्रतापसिंह आर्य और घट्टिया से विजयी शिवानी कुंवर को भी भाजपाई खेमे में शामिल किया गया। ये तीनों ही आपस में रिश्तेदार है। शिवानी कुंवर को उपाध्यक्ष बनाने की शर्त पर भाजपा के लिए तीन अतिरिक्त वोट का इंतजाम हो सका था।

उच्चशिक्षा मंत्री ने जमकर निकाली भड़ास

बुधवार को उज्जैन जनपद में अध्यक्ष-उपाध्यक्ष पद के चुनाव में बहुमत के बावजूद हार का मुंह देख चुकी भाजपा नेताओं के चेहरे लटक गए थे। शुक्रवार को सभी में फिर से जोश आ गया। उच्चशिक्षा मंत्री डा. मोहन यादव तो बेहद उत्साहित थे। उन्होंने तो कपड़े फट गए..हाय-हाय.. जैसे नारे तक लगवाए।

जनपद चुनाव के खिलाफ कोर्ट जाएगी भाजपा

उज्जैन जनपद में भाजपाई खेमे के सदस्यों को मतदान से वंचित कर दिए जाने और इसके बाद भाजपा प्रत्याशी के हार से जुड़े मुद्दे को पार्टी कोर्ट ले जा रही है। भाजपा जिला अध्यक्ष बहादुरसिंह बोरमुंडला ने बताया कि उज्जैन जनपद में चुनाव प्रक्रिया दोषपूर्ण थी। भाजपा के पास 13 सदस्य थे लेकिन इन्हें वोट ही डालने दिया गया। पार्टी कोर्ट में चुनाव निरस्त कराने की अपील करेगी।

विधायक-सांसद के कद से भी बड़ी है जिला पंचायत

दो हफ्तों की राजनीतिक खींचतान के बाद आखिरकार आज ये तिलिस्म भी बाहर आ गया कि किस जिले में किस पार्टी की जिला सरकार बनी? लेकिन सभी के मन में ये सवाल जरूर कौंध रहा होगा कि जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए इतनी सिर फुटव्वल क्यों मची?

इस कुर्सी पर कब्जे की सबसे बड़ी वजह है इसका बजट। लाखों गांवों की सडक़, स्कूल, पानी का बजट इसी कुर्सी से होकर जाता है। गांवों में वर्चस्व का सिम्बल भी यही है। विधायक और सांसदों से ज्यादा बजट तो जिला पंचायतों का है। किस गांव में सडक़ें बनना है, कहां पंचायत भवन बनना है, कहां आंगनवाड़ी और कहां तालाब.. ये सब गांव की सरकार के मुखिया यानी जिला पंचायत से ही तय होता है।

बजट होता है तो रुतबा भी होता है। फिर राजनीतिक मंच पर नुमाया होने का शौक भी पूरा होता रहता है। आए दिन भूमिपूजन, लोकार्पण में मालाएं पहनने और भाषण देने का शगल भी पूरा होता है। यदि किसी गांव में कोई काम करवाना हो तो इसके लिए ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित करके जिला पंचायत को भेजा जाता है। यहां जिला पंचायत की बैठक में उसे स्वीकृत करने या न करने का निर्णय होता है।

यदि किसी पंचायत में 1 करोड़ रुपए के कार्य होने हैं तो उसका निर्णय जिला पंचायत में होता है। जाहिर है, इसमें पंचायत के सदस्यों व अध्यक्ष का प्रभाव भी होता है और निजी स्वार्थ भी। जिला पंचायत अध्यक्ष अपनी सुविधा के हिसाब से कार्यों को मंजूरी दिलाते हैं। अपने हिस्से का श्रेय भी लेते हैं और सुविधा भी।

सांसद को 5 करोड़ साल और जिला पंचायत को तीन गुना अधिक बजट

क्षेत्र के विकास के लिए सांसद को हर साल 5 करोड़ रुपए और विधायक को 1.85 करोड़ रुपए दिए जाते हैं। इस हिसाब से देखें तो सांसद को 5 साल में 25 करोड़ रुपए ही मिलते हैं। जबकि जिला पंचायत में इससे 3 गुनी ज्यादा राशि मिलती है। सीधे तौर पर कहें तो जिले में गांव सरकार का बजट विधायक और सांसदों से ज्यादा होता है।

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