अशांत दुनिया तुम्हें पुकार रही है, वापस आ जाओ जीजस

कायनात में निवास कर रहे 760 करोड़ लोगों में सर्वाधिक संख्या वाले ईसाई समुदाय के 230 करोड़ लोगों को जो कि दुनिया की कुल आबादी का 32 प्रतिशत है और दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है। भारत की 138 करोड़ की जनसंख्या में ईसाई धर्म को मानने वाले 2.78 करोड़ भारतीयों को जो कि देश की आबादी का 2.3 प्रतिशत है उन्हें प्रभु यीशु के जन्म दिन की बहुत-बहुत बधाई।

दुनिया के 240 देशों में यू.एस. द्वारा मान्यता प्राप्त 193 देशों में से 100 से अधिक देशों में क्रिसमस का पर्व बड़े उल्लास से मनाया जाता है। इंग्लैंड, ग्रीस, अर्मेनिया, अर्जेटीना सहित 15 देशों में तो ईसाई धर्म राज्य धर्म है। क्रिसमस शब्द का जन्म क्राईस्टेस माइसे अथवा क्राइस्टस मास शब्द से हुआ है। ऐसा अनुमान है कि पहला क्रिसमस रोम में 336 ईस्वी में मनाया गया था।

जीजस के जन्म की पौराणिक कथा अनुसार ईश्वर ने मैरी नामक एक कुँआरी लडक़ी के पास गै्रबियल नामक देवदूत को भेजा। गै्रबियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी तथा बच्चे का नाम जीजस रखा जायेगा। देवदूत बढ़ई जोसफ के पास भी गया और बताया कि मैरी एक बच्चे को जन्म देगी। गै्रबियल ने जोसफ को सलाह दी कि वह मैरी की देखभाल करे। शादी के लिये अपना नाम पंजीकृत कराने के लिये मैरी और जोसफ बेथलेहेम जाने के लिये रास्ते में थे। उन्होंने एक गौशाला में शरण ली जहाँ मैरी ने 25 दिसंबर की आधी रात को जीजस को जन्म दिया।

इस प्रकार ईश्वर के पुत्र जीजस को जन्म हुआ। जीजस की 33 वर्ष की अल्प आयु जीवन यात्रा बहुत रहस्यमयी है। बताया जाता है कि 12 वर्ष की आयु में येरूशलम गये थे वहाँ उन्होंने मात्र दो दिन धार्मिक विद्वानों से चर्चा की और फिर गायब हो गये। उम्र 13 से 30 वर्षों के दौरान वह कहाँ रहे यह आज भी रहस्य है। कुछ लोगों का मत है कि इस दौरान वह भारत के कश्मीर में रहे और साधना की। कश्मीर के श्रीनगर में आज भी एक मकान को उनकी साधना स्थली बताया जाता है। जीजस 30 वर्ष की आयु में येरूशलम लौटे और यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा ली। विरोधियों ने षड्यंत्र रचकर 33 वर्षों की उम्र में उन्हें सूली पर लटकवा दिया।

25 दिसंबर को प्रभु यीशु का जन्म दिन क्रिसमस के रूप में मनाते हैं। क्रिसमस पर बच्चों को सांता क्लॉज का भी इंतजार रहता है जो कि रात्रि में आकर गुपचुप बच्चों को मिठाई, गिफ्ट देकर जाते हैं। वास्तव में 340 ईस्वी में रोम में संत निकोलस नामक संत हुए थे जिनके माता-पिता की मृत्यु पश्चात उनकी शिक्षा मॉनेस्ट्री में हुई। संत निकोलस को जीजस में अटूट श्रद्धा थी। 17 वर्ष की आयु में वह पादरी बन गये थे।

वह रात को चुपचाप निकलकर गरीब बच्चों को सिरहाने गिफ्ट रखकर आते थे, उनकी मृत्यु पश्चात उनके अनुयायियों ने इस परंपरा को जीवित रखा और यही संत निकोलस अमेरिकी बच्चों के लिये सांता क्लॉज बन गये। वैसे इतिहास बताता है कि 25 दिसंबर रोमन जाति के एक त्यौहार का दिन था जिसमें रोमनवासी सूर्य देवता की आराधना करते थे यह मानकर कि सूर्य देवता का जन्म 25 दिसंबर को ही हुआ है।

सूर्य उपासना रोमन सम्राटों का राजकीय धर्म हुआ करता था। बाद में जब ईसाई धर्म का प्रचार बढ़ा तो कुछ लोग ईसा मसीह को सूर्य का अवतार मानने लगे और उनका भी पूजन करने लगे। काफी जद्दोजहद और लंबी बहस के बाद चौथी शताब्दी में रोमन चर्च तथा सरकार ने संयुक्त रूप से 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिन घोषित कर दिया, परंतु ईसा की जन्मभूमि यरूशलम ने इसे पाँचवी शताब्दी में मान्यता दी। 1836 में अमेरिका द्वारा क्रिसमस को मान्यता मिलने के बाद 25 दिसंबर को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया इससे विश्व के अन्य देश भी मनाने लगे।

संसार में इस समय जारी कोरोना संकट के कारण वर्ष 2020 संपूर्ण मानव जाति के लिये अशुभ और अमंगलकारी साबित हुआ है। बाढ़, तूफान, भूकंप, कोरोना जैसे प्राकृतिक आपदाओं ने हजारों जिंदगियां निगल ली। दुनिया त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही है। ऐसे में हम उम्मीद करते हैं कि यह क्रिसमस मानव जाति के लिये शुभ और मंगलकारी साबित हो। आने वाला नया वर्ष 2021 में सब मंगल ही मंगल हो, वैसे भी ईसा मसीह को शांति का राजकुमार कहा जाता है, अत: उम्मीद की जानी चाहिये कि क्रिसमस शांति का संदेशवाहक साबित हो और मानव के कल्याणार्थ धरती पर पुन: जन्म ले।

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