परंपरा शुरू करने को महाकाल मंदिर प्रबंध समिति तैयार नहीं
उज्जैन, अग्निपथ। कोरोना के चलते महाकाले मंदिर में हरिओम के जल चढ़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। कोरोना तो समाप्ति की कगार पर है और सभी कामकाज द्रुत गति से चल रहे हैं। लेकिन अभी तक भस्मारती में शामिल श्रद्धालुओं के हरिओम चल चढ़ाने की आस पूरी नहीं हो पाई है। ऐसा क्यों किया जा रहा है। इसके पीछे भी एक सोची समझी रणनीति की बात सामने आ रही है। महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति जानबूझ कर इसको शुरू करने में विलंब कर रही है।
ज्योतिर्लिंग महाकाल में देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु तडक़े 4 बजे होने वाली भस्म आरती के दर्शन करने आते हैं। कोरोना से पूर्व आरती से पहले भक्त भगवान को हरिओम का जल चढ़ाते थे। लेकिन विगत दो वर्ष से अधिक समय से हरिओम का चल चढ़ाने की परंपरा भस्मारती में शामिल श्रद्धालुओं के लिए बंद पड़ी हुई है। इससे श्रद्धालु आहत महसूस कर रहे हैं और मंदिर के कर्मचारियों और पंडे पुजारियों से हरिओम के जल की मांग करते रहते हैं।
हरिओम का जल चढ़ाना परंपरागत है और कोटितीर्थ के जल से आरती से पूर्व भगवान महाकाल का अभिषेक किया जाता था। लेकिन इसको कोरोना के नाम पर बंद तो कर दिया गया है। लेकिन महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति इसको शुरू करने पर विचार नहीं कर रही है।
20 मिनट का था समय निर्धारित
कोरोना से पूर्व जल चढ़ाने के लिए 20 मिनट का समय निर्धारित था। लेकिन इतने कम समय में केवल 400-500 श्रद्धालु ही जल चढ़ा पाते थे। बीच में मंदिर प्रशासन ने इसके समय बढ़ाने पर भी विचार विमर्श किया था। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई थी। फिलहाल 1500 श्रद्धालुओं को भस्मारती अनुमति दी जा रही है।
4 नियमित श्रद्धालुओं को अनुमति
कोरोना का प्रभाव कम होने के बाद नियमित हरिओम जल चढ़ाने की मांग करने वाले 40 श्रद्धालुओं को बारी बारी से क्रम निर्धारित कर इसे चढ़ाने की मांग प्रशासन ने पूरी कर दी थी। प्रतिदिन दो महिलाएं और दो पुरुषों को इसकी इजाजत दी गई है। इसके लिए भी महिलाओं को प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोलना पड़ा था। बकायदा उन्होंने इसके लिए प्रेस कांफ्रेंस भी आयोजित की थी। तब प्रशासन को मजबूर होकर इन नियमित हरिओम का जल चढ़ाने वालों को अनुमति देना पड़ी।