कोर्ट में धोखाधड़ी के साक्ष्य नहीं रख पाई पुलिस, देवासगेट पर ढोल बजे
उज्जैन, अग्निपथ। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग(पीएचई) में लगभग 18 साल पहले हुए रसीद कट्?टा गबन कांड के सभी 8 आरोपियों को न्यायालय ने दोषमुक्त कर दिया है। आरोपियों के खिलाफ धोखाधड़ी की 2 अलग-अलग एफआईआर दर्ज करने वाली पुलिस न्यायालय में धोखाधड़ी के साक्ष्य ही ठीक से प्रस्तुत नहीं कर पाई।
रसीद कट्टा कांड में निचले स्तर के 8 कर्मचारियों को तो आरोपी बनाया गया था लेकिन उनके वरिष्ठ अधिकारियों की क्या जवाबदेही बनती थी, यह तक कोर्ट में स्पष्ट नहीं किया गया। कोर्ट का फैसला आने के बाद सोमवार की शाम पीएचई के देवासगेट स्थित मुख्यालय पर बरी हुए कर्मचारियों ने खूब ढोल बजवाए।
सोमवार को अष्टम अपर सत्र न्यायाधीश श्री संतोष कुमार के न्यायालय में विचाराधीन प्रकरण में रसीद कट्टा गबन कांड के आरोपी पीएचई के तत्कालीन सब डिविजन मुख्य लिपिक सतीश माथुर, एकाउंटेंट दिनेश शाह, कैशियर अनिल इंदौरीकर, केशियर सूर्यकांत थोरात, केशियर शेलेंद्र सिंह ठाकुर, केशियर प्रमेंद्र प्रसाद, केशियर विजय और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी विक्रम सिंह कुंभकार को दोषमुक्त कर दिया है। इनमें से सतीश माथुर, दिनेश शाह, अनिल इंदौरीकर और सूर्यकांत थोरात को सेवानिवृत्त हो चुके है। तीन कर्मचारी शेलेंद्र सिंह ठाकुर, प्रमेंद्र प्रसाद और विजय एफआईआर के बाद से ही निलंबित चल रहे थे। दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी विक्रम सिंह कुंभकार बर्खास्त हो चुके थे।
जो आरोपी थे वो बच निकले
पीएचई के रसीद कट्टा गबन कांड के आरोपी शेलेंद्र सिंह ठाकुर, प्रमेंद्र प्रसाद की तरफ से कोर्ट में केस लडऩे वाले एड्वोकेट राजेश ऐलानी के मुताबिक पुलिस की जांच पर्याप्त नहीं थी। वे कोर्ट में अपराध सिद्ध ही नहीं कर सके। एड्वोकेट ऐलानी ने बताया कि तब हुई जांच में ऐसे लोगों को आरोपी बना लिया गया था जो दफ्तर में पानी पिलाते थे, फाइलें इधर से उधर ले जाते थे। नियमानुसार जब भी पीएचई का दल कहीं वसूली के लिए जाता है तो उपयंत्री या सहायक यंत्री दल के प्रभारी होते है।
पुलिस की जांच में ऐसे किसी प्रभारी को आरोपी बनाया ही नहीं गया था, सभी निचले स्तर के कर्मचारी आरोपी बना दिए गए थे जबकि जिनकी जवाबदेही होना चाहिए थी उन्हें बख्श दिया गया था। इसका सीधा मतलब यह है कि गबन करने वाले वास्तविक आरोपी बचा लिए गए थे।
एक नजर रसीद कट्टा कांड पर
- पीएचई में साल 2003-04 में जलकर वसूली के लिए अलग-अलग केशियर को रसीद कट्टे आवंटित किए गए थे।
- विभाग के कुछ केशियर ने रसीद कट्?टे आवंटित कराए, इनसे जलकर की वसूली भी की लेकिन रसीद कट्?टे और वसूली गई रकम वापस विभाग में जमा नहीं कराई।
- 2006 में केशियर शेलेंद्र सिंह ठाकुर और प्रमेंद्र प्रसाद के खिलाफ इस प्रकरण में जांच शुरू की गई। शुरूआती जांच के बाद इन दोनों के खिलाफ देवासगेट थाने में गबन की एफआईआर दर्ज करवाई गई।
- विस्तृत विभागीय जांच में विभाग के ही 6 ओर लोग गबन में शामिल पाए गए थे, इनके खिलाफ फिर से दूसरी एफआईआर देवासगेट थाने में दर्ज हुई थी।
- तब पूरी जांच में यह बात सामने आई थी कि सभी कर्मचारियों ने मिलकर विभाग के साथ लगभग 9 लाख 50 हजार रूपए की धोखाधड़ी की है।
- दोनों ही एफआईआर में चालान एक साथ कोर्ट में पेश हुआ और ट्रायल भी एक साथ ही चला। दोनों मामलों में फैसला भी एक साथ ही आया है।