हम चुप रहेंगे 4 जनवरी 2021

अच्छा लगेगा …

माइक और जनता सामने हो। तो कोई भी नेता अपना मौका नहीं छोड़ता। वह भी तब, जब नेता से उद्बोधन का आग्रह किया हो। मगर अपने वजनदार जी सह्रदय है। तभी तो उन्होंने यह अवसर पिस्तौल कांड के नायक को दे दिया। मौका था पट्टा वितरण का। उन्हेल में कार्यक्रम था। मंच पर बदबूवाले शहर के अपने ताऊजी भी मौजूद थे। एक ज्ञापन का वाचन करना था। पिस्तौल कांड के नायक ने अपने वजनदार जी से आग्रह कर लिया। वजनदार जी भी मान गये। माइक पर पहुंच गये। तभी अपने ताऊजी ने नाराजगी दिखाई। पिस्तौल कांड के नायक को इशारा करते हुए कहा कि…तुम क्यों नहीं पढ़ते। ताऊजी का इशारा और बात वजनदार जी ने देख ली। उन्होंने यह बोलते हुए माइक, पिस्तौल कांड के नायक को थमा दिया कि…पढ़ो…साहब को अच्छा लगेंगा। यह बात माइक पर बोली। जो सभी ने सुन ली और जनता के चेहरे पर हंसी आ गई। घटना के बाद जनता ने वजनदार जी की सह्रदयता की तारीफ करी और चुप हो गई। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

गलती क्या ?

बेगमबाग की घटना में 2 वर्दीधारी निपट गये। कप्तान ने दोनों को बैठा दिया। उनके इस कदम के बाद वर्दी में सुगबुगाहट है। आखिर…दोनों वर्दीधारियों की गलती क्या थी। महाकाल क्षेत्र के मुखिया घटना के समय रैली में ड्यूटी कर रहे थे। जबकि नानाखेड़ा वाले का इस घटना से दूर-दूर का नाता नहीं है। मगर फिर भी कप्तान ने सजा योग्य माना। लेकिन किस गलती की सजा दी? यह किसी को पता नहीं है। तभी तो वर्दीवाले एक-दूसरे से पूछ रहे है। मगर जवाब किसी को नहीं मिल रहा है। बस…सवाल पूछकर चुप हो जाते है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

786…

यह नम्बर एक वर्ग के लिए शुभांक माना जाता है। मगर कमलप्रेमी संगठन के एक कद्दावर नेता को भी यह शुभांक पसंद है। संभाग के प्रभारी है। लेकिन उनकी गाड़ी पर यह शुभांक देखकर कमलप्रेमियों में खूब चर्चा है। जितने मुंह-उतनी बाते सुनने को मिल रही है। वाहन किराये का है। मगर कमलप्रेमियों को यह बात कौन समझाये। शुभांक तो सभी के लिए शुभ होता है। इसमें वर्ग-भेद करना ठीक नहीं है। लेकिन कमलप्रेमियों की कट्टर सोच और पथराव की घटना ने इस शुभांक पर ही सवाल उठाना शुरू कर दिये है। अब देखना यह है कि संभाग प्रभारी इस शुभांक को लेकर क्या कदम उठाते हैं। तक तब हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

सलाहकार…

अपने पंजाप्रेमी इन दिनों उस सलाहकार की खोज कर रहे हैं। जो कि अपने बिरयानी नेताजी के खासमखास बन बैठे है। बिरयानी नेताजी ने संगठन में कसावट लाने की जिम्मेदारी अपने सलाहकार को दी है। यही वजह है कि शपथ पत्र- वार्ड में पर्यवेक्षक-30 कार्यकर्ता नये बनाना-दावेदारों का सम्मेलन कराना आदि योजनाएं मूर्तरूप ले रही है। इधर पंजाप्रेमी परेशान है। आखिर कौन सलाहकार है। जिसके पास अपने बिरयानी नेताजी चुपचाप मिलने जाते है। पंजाप्रेमी सरगर्मी से उस सलाहकार की खोज कर रहे है। देखना यह है कि पंजाप्रेमियों की खोज कब पूरी होती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

पत्र…

अपने लेटरबाज जी का पत्र लिखने का दायरा अब बढ़ गया है। अभी तक तो कोठी के गलियारों में ही उनके लेटर आते थे। मगर अब राजधानी तक हटाने की सिफारिश वाले लेटर लेकर खुद जा रहे हैं। बदबूवाले शहर के एक नपाधिकारी को हाल ही में हटाया गया है। इसका सिफारिशी लेटर, अपने लेटरबाज जी लेकर गये थे। सीहोर के वर्ग में जहां मामा जी से मुलाकात करते वक्त पत्र थमा दिया। अपने ताऊजी ने इस पत्र पर टेका लगा दिया। नतीजा अधिकारी का तबादला हो गया। ऐसी चर्चा कमलप्रेमियों के बीच सुनाई दे रही है। इसके साथ ही लेटरबाज के लेटर से डरने की सलाह भी दी जा रही है। लेटरबाज का यह डर अधिकारी वर्ग में फैल चुका है। मगर फिलहाल सभी चुप है। तो हम भी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

निपटा दिया…

चुनाव सिर पर हो? ऐसे में कोई भी नेता खरा सच बोलने से बचता है। मगर, पंजाप्रेमी होटलवाले भैय्या की बात ही कुछ और है। उन्होंने पंजाप्रेमियों के सम्मेलन में खरा-खरा बोला। वार्ड 1 से 54 तक का सच पंजापे्रमियों के सामने उजागर कर दिया। इतने पर ही उन्होंने अपनी जुबान को लगाम नहीं दी। बिरयानी नेताजी को भी लपेटा और दोनों पर्यवेक्षकों को भी। पर्यवेक्षकों को साफ बोल दिया कि यहां मौजूद सभी को पता है कि टिकिट वितरण में आपकी कोई नहीं सुनता है। फिर यह दिखावा क्यों। होटलवाले भैय्या की खरी-खरी सुनकर पर्यवेक्षक भी चुप रह गये। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

तारीफ…

कोठी के गलियारों में बहुत कम ऐसे अवसर आते हैं। जब कर्मचारी, अपने अधिकारी की तारीफ करें। तारीफ भी दिल से करें। इसमें कोई बनावटीपन नहीं हो। इन दिनों कोठी के गलियारों में 2 अधिकारियों की तारीफ में कर्मचारी कसीदे पढ़ रहे हैं। सालो बाद ऐसा देखने को मिल रहा है। पहले अधिकारी अपने सूरज जी हैं। जिन्होंने नये साल पर सभी कर्मचारियों को कचौरी-जलेबी का नाश्ता कराया। चाय-काफी भी पिलवाई। लेकिन भीड़ एकत्रित ना हो, इसका ध्यान रखा। सबकी टेबल पर ही नाश्ता भिजवाया। ऐसा कभी भी पिछले कई सालों से कोठी के गलियारों में नहीं देखा गया। वह भी अपने निजी खर्च पर नाश्ता करवाया। अब बात अपने उम्मीद जी की। जिन्होंने अपने मातहत कर्मचारियों को खुली छूट दी है। आफिस आकर कभी भी-बगैर स्लीप के मिल सकते हो। नये साल में भी उनकी तरफ से संदेशा गया। जिसको मिलना हो…आकर मिल सकता है। नतीजा सभी कर्मचारी खुश है। दिल से तारीफ कर रहे है। तो हम भी दोनों के इस सकारात्मक कदम की तारीफ करते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हंै।

चर्चा…

अपने नरों में इंद्र इन दिनों फिल्ड के हीरो बने हुए हैं। हर उस जगह नजर आते हैं। जहां पर भी विवाद-उपद्रव की स्थिति बनती है। अपना काम पूरी निष्ठा से करते हैं। खुश रहते हैं। मगर उनकी खुशी, परेशानी में तब बदलती है। जब किसी फाइल पर चर्चा शब्द लिखकर आ जाता है। तब उनका मिजाज और चेहरा देखने लायक होता है। कोठी के गलियारों में तो यही सुगबुगाहट सुनाई दे रही है। जिसमें हम कुछ नहीं कर सकते है। जब कुछ कर नहीं सकते, तो फिर अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

-प्रशांत अंजाना

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