उज्जैन, अग्निपथ। उज्जैन जिला एवं सत्र न्यायालय ने एक जघन्य हत्याकांड में शुक्रवार को एक व्यक्ति को अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में मृत्युदंड की सजा सुनाई है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश कुमार गुप्ता ने यह फैसला सुनाते हुए आरोपी अब्दुल वाहिद लाला को समाज के लिए बेहद खतरनाक करार दिया।
कैसे-क्यों की पत्नी की हत्या
यह घटना करीब एक साल पहले 25 मार्च 2024 को नागझिरी थाना क्षेत्र के आदर्श नगर में हुई थी। आरोपी अब्दुल वाहिद लाला (पिता अब्दुल शकुर पठान) ने अपनी पत्नी रानी उर्फ संजीदा बी की देशी पिस्तौल से तीन गोलियां मारकर हत्या कर दी थी। बताया जा रहा है कि आरोपी को अपनी पत्नी के चरित्र पर शक था।
हत्या से ठीक पहले, वाहिद ने अपने बेटे फरहान को अपनी बहनों के साथ नानी के घर एटलस चौराहा भेज दिया था। फरहान अभी दौलतगंज तक ही पहुंचा था कि उसकी चाची मीना ने उसे फोन पर घटना की जानकारी दी। फरहान तुरंत वापस आदर्श नगर लौटा और देखा कि उसकी मां संजीदा बी जमीन पर बेसुध पड़ी हैं। वह तुरंत उन्हें लेकर जिला अस्पताल पहुंचा, जहाँ डॉक्टरों ने संजीदा बी को मृत घोषित कर दिया। इसके बाद फरहान ने ही अपने पिता वाहिद के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराया था। पुलिस ने मामला दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था।
क्यों माना गया ‘दुर्लभतम अपराध’?
अपर लोक अभियोजक राजेंद्र खांडेगर ने बताया कि कोर्ट ने इस हत्याकांड को जघन्य हत्याकांड की श्रेणी में रखा। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि यह उच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित उन पांच सिद्धांतों के अंतर्गत आता है, जिनमें अपराध को ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ माना जा सकता है।
इनमें वह स्थिति भी शामिल है जब कोई व्यक्ति ऐसे व्यक्ति की हत्या करता है जिस पर उसका प्रभाव हो, या जिसके आपराधिक रिकॉर्ड में पहले हत्या जैसे अपराध शामिल हों, अथवा अपराध के गवाहों को जान से मारने की धमकी दी गई हो।
इन सभी पहलुओं पर विचार करते हुए, कोर्ट ने वाहिद द्वारा अपनी पत्नी की हत्या को दुर्लभतम अपराध की श्रेणी में माना।
पहले भी कर चुका है दो हत्याएं
आरोपी वाहिद लाला का आपराधिक इतिहास बेहद संगीन है। पत्नी की हत्या का दोषी वाहिद खान पहले भी दो हत्याएं कर चुका है। उसने पहली हत्या 1995 में तराना क्षेत्र में की थी और दूसरी हत्या 2009 में खाराकुआ थाना क्षेत्र में अंजाम दी थी। उसके इस पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड को भी कोर्ट ने गंभीरता से लिया।
किन धाराओं में हुई सजा?
जिला एवं सत्र न्यायालय ने वाहिद लाला को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत मृत्युदंड और 4 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। इसके अलावा, 27 आर्म्स एक्ट के तहत उसे पांच साल कैद और 1 हजार रुपये का जुर्माना भी सुनाया गया है। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट लिखा है कि दोषी को तब तक फांसी के फंदे पर लटकाया जाए, जब तक उसके प्राण नहीं निकल जाते।
उज्जैन कोर्ट में 9 साल बाद फांसी की सजा
उज्जैन कोर्ट में 9 साल बाद हत्या के मामले में मृत्युदंड जैसी सजा सुनाई गई है। इससे पहले, उज्जैन कोर्ट में न्यायाधीश एस.के. सराय ने “चड्डी बनियान गिरोह” के एक सदस्य को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी। हालांकि, उस मामले में आरोपी को उच्च न्यायालय से राहत मिल गई थी। दो दशक पहले भी, पाण्डेय परिवार के एक सदस्य को अपने परिवार की जघन्य हत्या के लिए मौत की सजा दी गई थी।
आगे क्या? कब तक हो सकती है सजा?
जिला एवं सत्र न्यायालय से मृत्युदंड की सजा मिलने के बाद, पत्नी की हत्या का दोषी वाहिद खान का वकील एक तय समय-सीमा के भीतर उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। यदि वहां से भी उसे राहत नहीं मिलती और सजा बरकरार रहती है, तो वह उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकता है। यदि उच्चतम न्यायालय से भी मृत्युदंड को यथावत रखा जाता है, तो अंतिम निर्णय के लिए मामला राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है। यदि राष्ट्रपति से भी राहत नहीं मिलती, तो इसके बाद दोषी वाहिद को फांसी पर लटकाया जा सकता है।