वसूली…
अपने उम्मीद जी, पिछली दफा परिवहन दलाली कांड को सही तरीके से नहीं रोक पाये थे। नये-नये आये थे और दलाली कांड में ऊपर से नीचे तक मिलीभगत थी। केवल उन्होंने राशि निकासी पर रोक लगाई थी। जो कि वक्त के साथ धीरे-धीरे निकल गई। पूरी 72 पेटी। किसी का कुछ नहीं बिगड़ा था। मगर इस बार ऐसा नहीं होगा। डीजल कांड की खबर उनको चुप रहेंगे से पता चल गई। अपने उम्मीद जी ने जांच करवा ली। जांच में साबित हो गया। घोटाला हुआ है। जांच परिवहन विभाग को सौंप दी गई। अब वसूली भी होगी और निलंबन भी। जिसके लिए उम्मीद जी को साधुवाद देते हुए, हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
अवकाश…
अपने मंद-मुस्कान जी 7 दिन के अवकाश पर जा रहे हंै। उनकी जगह पर अब शिवाजी भवन के नये प्रभारी मुखिया, दमदमा के पंचायत विभाग के मुखिया होंगे। मगर शिवाजी भवन के गलियारों में एक चर्चा है। यह यह है कि…क्या अपने मंद-मुस्कान जी की अब वापसी होगी या फिर वापसी के पहले ही राजधानी से आर्डर निकल जायेगा। अंदरखाने की खबर है कि मंद-मुस्कान जी का नाम लिस्ट में शामिल है। जिसके चलते उनको कोई जिला मिल सकता है। देखना यह है कि मुस्कान जी की वापसी होती है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
ड्रामा…
शीर्षक पढक़र हमारे पाठक समझ गये होंगे। हम किसी नौटंकी की बात करने वाले हैं। घटना योग दिवस की है। जिसकी चर्चा खबरचियों में सुनाई दे रही है। इस दिन लोकशक्ति पर योग हुआ था। अपने वजनदारजी समय पर आ गये। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने कवरेज भी कर लिया। करीब 30 मिनट बाद अपने विकास पुरुष भी आ गये। मीडिया ने उनसे आग्रह किया। योग करके दिखायें। विकास पुरुष तैयार हो गये। तभी वजनदार जी ने व्यंग्य कर दिया। उन्होंने तंज करते हुए कहा कि…कीजिए ड्रामा। यह सुनकर विकास पुरुष को आक्रोश आ गया। उन्होंने पूछ लिया कि…क्या बोला? वजनदार जी ने वापस अपने शब्द दोहरा दिये। बात आगे बढ़ती…मगर मीडिया की मौजूदगी के चलते खत्म हो गई। अब दोनों माननीय चुप हैं। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
जलवा…
अपने पंजाप्रेमी कामरेड का जलवा आज कल कम हो गया है। ऐसा हम नहीं, बल्कि खुद पंजाप्रेमी बोल रहे हंंै। जिसके पीछे पंजाप्रेमी मुख्यालय में घटी घटना है। जिसमें पूर्व मंत्री व एक माननीय शामिल होने आये थे। बैठक का संचालन करने के लिए अपने कामरेड ने माईक उठाया ही था। वह कुछ बोलते…उसके पहले ही पूर्व मंत्री ने उनसे माईक छीन लिया और सूची में जेब में रख ली। यह घटना देखकर पंजाप्रेमी हतप्रभ थे और अपने कामरेड भी चुप ही रहे। जबकि कामरेड की आदत है कि…अगर कोई उनके साथ ऐसा करता तो वह सामने वाले की लू उतार देते। बहरहाल इस घटना को लेकर अब सभी चुप हैं। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
लताड़…
अपने मंगलनाथ वाले बाबा एक बार फिर खुद के श्रीमंत के गुस्से का शिकार हो गये। जैसे पहले आगर जिले में हुए थे। तब भी मास्क को लेकर फटकार लगी थी और अब राजधानी में लग गई। इस बार लताड़ थोड़ी कडक़ थी। तभी तो उनके श्रीमंत ने बोल दिया कि…हंसने वाली बात नहीं है। कितनी बार समझाया। मास्क लगाकर रखो। इधर बाबा के पुराने पंजाप्रेमी साथी बोल रहे हैं कि…बाबा फोटो के चक्कर में मास्क हटा देते हैं। अब असली वजह क्या है। यह तो मंगलनाथ वाले बाबा जाने या उनके पुराने पंजाप्रेमी दोस्त। मगर वीडियो वायरल के बाद…कमलप्रेमी खुश हैं और अपने बाबा चुप हैं। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हंै।
इतिहास…
अपने उम्मीद जी को इतिहास बनाने में शायद ज्यादा मजा आता है। वह ऐसे काम करते हैं। जो कोई भी करने से पहले 10 बार सोचता है। लेकिन उम्मीद जी को तो, जो कोई नहीं करे-वह हम करे, की आदत है। तभी तो दलालो की रीड़ तोड़ दी। एक साथ-एक झटके में 729 आवेदन अस्वीकृत करके। यह सभी बंदूक लायसेंस के आवेदन थे। जो कि दलालों के माध्यम से ही कोठी तक पहुंचते हंै। अच्छी खासी कमाई होती है। इन आवेदनों से। आज तक किसी ने भी ऐसा कदम नहीं उठाया था। जैसा उम्मीद जी ने उठा लिया। दलालों में हडक़ंप मच गया है और उम्मीद जी इतिहास बनाकर खुश है। बस एक निवेदन के साथ कि…राजस्व न्यायालयों में भी खूब दलाल सक्रिय है। इन पर भी नजरे इनायत करें। वरना कोठी के गलियारों में तो यही सुनाई दे रहा है कि…रिश्वत की हसीना के कदम जिसमें ना पहुंचे/शायद यहां ऐसा कोई दफ्तर नहीं होगा। मगर हमको तो अपनी आदत के अनुसार बस चुप रहना है।
काटी…
बिजली वाले इन दिनों वसूली के लिए अलर्ट हैं। सूची बनाकर घर-घर पहुंच रहे हैं। इसी चक्कर में अपनी पंजाप्रेमी बुआजी के घर पहुंच गये। कुछ भी नहीं देखा और बिजली पोल से कट मार दिया। बुआजी के घर की बिजली जाते ही हंगामा मचना ही था। तत्काल ऊपर तक बात पहुंच गई। बिल भरने का आश्वासन मिल गया। तो तत्काल जोड़ दी गई। ऐसा पंजाप्रेमी बोल रहे हंै। अब बात सच है या झूठ…फैसला हमारे पाठक खुद कर लें। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
307…
शीर्षक पढक़र यह अंदाजा नहीं लगायें कि हम प्राणघातक हमले वाली धारा की बात कर रहे हैं। कतई नहीं-बिलकुल नहीं। हम जिस 307 की बात कर रहे हंै। उसका उपयोग शिवाजी भवन के झोनों में ज्यादा होता है। भूमि विकास अधिनियम की धारा है। जिसका उपयोग नगर निवेश ही करता है। इन दिनों इस धारा का उपयोग ज्यादा हो रहा है। सरकारी फायदे से ज्यादा, अपने निजी फायदे के लिए।
307 में नोटिस मिलते ही भवन मालिक घबराता है। तत्काल ही शरणम-गच्छामि हो जाता है। 1-2 पेटी में सौदा पट जाता है। जिसका मंद-मुस्कान जी को तो पता ही नहीं चलता है। लेकिन शिवाजी भवन के गलियारों में 307 की चर्चा खूब है। जिसमें हम क्या कर सकते हैं। जब कुछ कर नहीं सकते हंै, तो अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
भ्रष्टाचार …
एक बार फिर बात शिवाजी भवन की है। जहां पदस्थ एक अधिकारी का चेम्बर इन दिनों भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि अधिकारी के खिलाफ आई शिकायतें बोल रही हैं। जो अपने मंद-मुस्कान जी से लेकर राजधानी तक पहुंची है। शुरुआत में तो अपने मंद-मुस्कान जी ने स्थानीय स्तर पर हुई शिकायतों पर ध्यान ही नहीं दिया। मगर जब राजधानी से पत्र आया तो उन्होंने आखिर जांच बैठा दी।
अब सवाल यह है कि किस अधिकारी के खिलाफ जांच होने वाली है। तो हम बता दे कि जिसके खिलाफ जांच होने वाली है, वह पक्के फुलपेंटधारी अधिकारी है। उनको आराधना भवन का भी प्राश्रय है। जब नये-नये आये थे। तो आराधना भवन को ही उन्होंने अपने रहने का ठिकाना बनाया था।
खुलकर डिमांड करते हैं। मांग पूरी नहीं होने पर फाइले अटका देते हैं। नतीजा 1 दर्जन शिकायतें हो गई हैं। अब जाकर जांच शुरू होगी। देखना यह है कि डिमांड करने वाले फुलपेंटधारी इस जांच से कैसे बचते हैं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।