18 साल में तीन बार जारी किए निर्देश, अधिकारी अब भी आदेश के इंतजार में
उज्जैन, ललित जैन। पुलिस विभाग में जांच अधिकारियों की कमी को देखते हुए प्रदेश शासन ने 18 साल पहले वरिष्ठ आरक्षकों को विवेचक बनाने का नियम बनाया था। दो बार आदेश भी जारी किए। बावजूद प्रदेश के किसी भी जिले में यह नियम लागू नहीं हो पाया। खास बात यह है कि अधिकांश जिलो में जिम्मेदार अधिकारी अब भी इस संबंध में मुख्यालय के आदेश का इंतजार कर रहे है।
बढ़ते अपराध व विवेचकों की कमी को देखते हुए 22 मार्च 2002 को विधि विभाग ने नियमों का हवाला देते हुए समयबद्ध वेतनमान प्राप्त आरक्षकों को वरिष्ठ आरक्षक घोषित कर विवेचना के अधिकार सौंपने के आदेश दिए थे। इसी संबंध पुलिस मुख्यालय ने 17 अप्रैल 2012 व 6 दिसंबर 2017 को भी परिपत्र जारी किया। बावजूद प्रदेश के अधिकतर जिलों में इसका अब तक पालन नहीं हो सका। यही वजह है कि अपराध में तो वृद्धि हो रही है, लेकिन जांच अधिकारियों की कमी के कारण प्रत्येक थानों में दर्जनों अपराधों की फाइल जांच के इंतजार में धूल खाती नजर आती है।
यह दिए थे आदेश
मप्र शासन विधि एवं विधायी कार्य विभाग ने पत्र क्रमांक 17 (ई) 5/2004/111921-ब (द) ने मप्र शासन दंड प्रकिया संहिता 1973 सं (2) की धारा 157 की उपधारा (1) का उल्लेख करते हुए 22 मार्च 2002 को आदेश दिए थे कि ऐसे समस्त वरिष्ठ आरक्षकों को जो समयबद्ध वेतनमान प्राप्त हैं, उन्हें उक्त धारा के प्रायोजनों के लिए पुलिस अधिकारी घोषित किया जाता है। निर्देशित किया गया था कि समस्त वरिष्ठ आरक्षकों को विवेचना के अधिकार सौंपे जाएं। यह भी आदेश दिए थे नियम को तत्काल कढ़ाई से पालन करवाए।
यह है नुकसान
पूरे प्रदेश में पुलिस बल की कमी है। ऐसे में जांच अधिकारी अप्रर्याप्त होना तय है, जबकि अब अपराधी अत्याधुनिक तरीकों से वारदातें करने लगे हैं। ऐसे में प्रत्येक थानों में दर्जनों प्रकरण लंबित रहते हैं। कानून व्यवस्था के कारण अधिकारी सूक्ष्मता से केसों की जांच नहीं कर पाते, लेकिन अफसरों के दबाव में खानापूर्ति कर देते हैं। नतीजा अपराधियों को कोर्ट में फायदा मिलता है और उसके हौंसले बढ़ जाते है।
मुख्यालय ने बनाई सूची
सूत्रों का कहना है कि इस नियम के लागू करने के लिए पुलिस मुख्यालय ने प्रयास शुरू कर दिए हैं। इसके लिए प्रदेश के करीब 12 हजार समयबद्ध वेतनमान प्राप्त पुलिसकर्मियों की सूची बनाई गई है। यह नियम उज्जैन जिले में कब लागू होगा कहा नहीं जा सकता, लेकिन सूत्रों का कहना है करीब एक
पखवाड़े पूर्व इंदौर आईजी ने इस संबंध में पहल शुरू की है।
यह हो सकता है फायदा
- वरिष्ठ आरक्षकों को मामूली धारा के केस सौंपने से अधिकारियों पर दबाव कम होगा।
- वरिष्ठ आरक्षकों को योग्यता सिद्ध करने का अवसर मिलेगा।
- वरिष्ठ आरक्षक जिम्मेदार बनेंगे तो आरक्षकों पर अंकुश रहेगा।
- अधिकारी कानून व्यवस्था बेहतर बनाने में समय दे सकेंगे।
- गंभीर अपराधों में सूक्ष्मता से जांच से सजा का ग्राफ बढ़ेगा।
- अपराधियों पर सख्त कार्रवाई से अपराध के ग्राफ में गिरावट आएगी।
इनका कहना
जिले में आवश्यकतानुसार विवेचक हैं, वरिष्ठ आरक्षकों के संबंध में नए आदेश नहीं आए हैं। मुख्यालय के आदेशानुसार कार्य करेंगे।
– सत्येंद्र कुमार शुक्ला, एसपी