एक अनहोनी आशंका के साये में 5 दिवसीय दीपोत्सव का प्रारंभ आज से हो रहा है। शायद यह पहला अवसर होगा जब प्रभा (ज्योति) पर तिमिर (अंधकार) भारी रहेगा। बुझे हुए मन से 138 करोड़ भारतीय, हिंदू धर्म के अनुयायियों के साथ इस ऊर्जा के प्रतीक पर्व को मनाते हैं। बीते दो वर्षों में दुनिया के साथ भारतीयों ने भी त्रासदी देखी है, शायद ही ऐसा कोई परिवार होगा जिसनें अपनों को नहीं खोया होगा? हर भारतवासी कोरोना के दंश से प्रभावित हुआ है।
मीडिया में आई खबरें कि देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है, वास्तविकता में कतई विश्वास करने लायक नहीं है। बाजार की गायब हुई रौनक खुद अपनी बदहाली बयां कर रही है। त्यौहार पर गुलजार रहने वाले बाजार सूने पड़े हैं। यदि मैं अपने शहर की बात करूं तो दीपावली के 72 घंटे पूर्व आप अभी भी मालीपुरे या फ्रीगंज के मुख्य मार्ग पर चौपहिया वाहन से तफरी का आनंद ले सकते हैं, जहाँ पर आप इन दिनों दो पहिया वाहन भी नहीं ले जा सकते थे।
त्यौहारों पर छोटा-मोटा व्यापार करके अपनी जीविका चलाने वाले छोटे दुकानदारों की आँॅखें ग्राहकों की प्रतीक्षा में पथरा रही है। यही स्थिति बड़े शोरूमों की भी है। खरीदारों के अलावा सबकुछ मौजूद है। एक अजीब-सा सन्नाटा पसरा हुआ है बाजारों में, छोटे दुकानदारों के बुझे हुए चेहरे उनके अंतर्मन में छाये तिमिर को दिखा रहे हैं।
विगत दो वर्षों से कोरोना की विभिषिका झेलने के साथ ही आम भारतीय महंगाई की मार से भी हलाकान है। गैस पेट्रोल, डीजल, खाद्य तेल के साथ ही अन्य वस्तुओं के बढ़े मूल्यों ने उसका जीवन मुश्किल में डाल दिया है। आय सीमित होने के साथ खर्चों में बेतहाशा वृद्धि ने उसका बजट बिगाड़ दिया है। प्रजातंत्र की दुहाई है कि इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में वह सिर्फ मूक प्राणी बनकर इन सबको सहन कर रहा है।
देश में व्याप्त अव्यवस्था के खिलाफ कोई बोलने, सुनने वाला वाला नहीं है, ना ही विपक्ष ना ही कोई राजनैतिक दल और ना ही कोई संगठन। देश का आम नागरिक महंगाई से मुकाबला करने के लिए उसी तरह छोड़ दिया गया है जिस तरह किसी भूखे शेर के सामने निरीह प्राणी को छोड़ दिया जाता है। खाद्य सामग्री के साथ ही लोहा, सीमेंट, कपड़े एवं अन्य वस्तुओं के मूल्यों मे भी आग लगी हुई है। लग ही नहीं रहा है कि वस्तुओं के मूल्य नियंत्रण के लिए सरकार नाम की कोई चीज होती है?
138 करोड़ भारतीयों में से लगभग 80 प्रतिशत भारतीयों के साथ दवाईयों का खर्च लगा हुआ है। मधुमेह, रक्तचाप, अवसाद, हायपर टेंशन तो आम बात है। मेडिकल दवाईयों के मूल्यों में भी अनाप-शनाप बढ़ोत्तरी हुई है, कुल मिलाकर आदमी का अपने आपको जीवित रखना ही वर्तमान की सबसे बड़ी चुनौती है। बढ़ती आत्महत्याओं के आंकड़े मेरे कथन की पुष्टि के लिए पर्याप्त हैं।
दीपक का औचित्य तभी सार्थक होता है जब उसमें जोत हो जो अग्रि के माध्यम से प्रज्जवलित होकर तमस को मिटाने का कार्य करे, यदि ऐसा नहीं होता है तो छाया हुआ तमस (अंधकार) दीपक के अस्तित्व को भी लील जाता है। शायद इस बार की दीपावली के दीपकों की जोत बिना तेल के ही तिमिर से मुकाबला करने जा रही है। अत: यह कहा जा सकता है, इस बार दीप्ति पर तिमिर भारी है। बुझे अंतर्मन से दीपोत्सव की शुभकामनाएं।