नहीं रोक सकते बेकसूरों की मौत, तो बंद कर दो ईश्वर के दरवाजे

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Arjun ke baan 010122

1 जनवरी 2022 की अलसुबह जम्मू-कश्मीर के त्रिकूट पहाड़ी पर स्थित माँ वैष्णो देवी के मंदिर में हुयी भगदड़ में 13 श्रद्धालुओं की मौत ने पूरे देश को गमगीन कर दिया। हिंदु धर्मावलंबियों की आस्था का तिरुमाला वेंकटेश्वर के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा केन्द्र माँ वैष्णो देवी का मंदिर है जिसे वैष्णवी, माता रानी, माँ अम्बे, त्रिकूटा, शेरावाली, ज्योतिवाली, पहाड़ीवाली के नाम से भी जाना जाता है। लगभग 700 साल पुराना यह मंदिर त्रिकूट पहाड़ी पर 5200 फीट ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर में स्थित त्रिकूटा, अम्बे और वैष्णव देवी की मूर्तियां हैं।

हिंदु शास्त्रों की मान्यतानुसार माता पार्वती, सरस्वती एवं लक्ष्मी जी की संयुक्त ऊर्जा से माता वैष्णवी का निर्माण हुआ था। दर्शनाथियों को लगभग 12-13 किलोमीटर की चढ़ायी पश्चात माता वैष्णो देवी के दर्शनों का लाभ प्राप्त होता है। 98 फीट लम्बी गुफा में से होकर श्रद्धालुओं को दर्शनों के लिये जाना होता है। सारी दुनिया में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ ईश्वर जिसे हम परमसत्ता भी कह सकते हैं उनके प्रति इतनी दीवानगी है।

अनादि काल से मंदिर भारतीयों की आस्था के केन्द्र बिंदु बने हुए हैं। भारत में सबसे पहले मंदिर का निर्माण 400 ईसवी पूर्व में हुआ था। बिहार के भगुआ जिला केन्द्र के दक्षिण-पश्चिम में 650 फीट की ऊँचाई वाली कैमूर की पहाड़ी पर माता मुंडेश्वरी और महामंडलेश्वर महादेव के मंदिर का निर्माण किया गया था जो 1800 सौ साल पहले भारत का पहला मंदिर था। अत: मंदिर सदैव से हमें ऊर्जा देवे वाले केन्द्र के रूप में माने गये हैं।

वैष्णो देवी मंदिर का प्रबंधन संभाल रहा श्राइन बोर्ड इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिये जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। हादसे के कारण अलग-अलग गिनाये जा रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि दो गुटों में विवाद के बाद भगदड़ मची, कुछ का कहना है कि पीछे से आये धक्के कारण यह हादसा हुआ है, कुछ प्रत्यक्षदर्शियों का कथन है कि सुरक्षाबलों ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिये लाठियां भाजी इससे भगदड़ मची। और कुछ लोगों का कहना है कि सुरक्षाकर्मी किसी अतिविशिष्ठ व्यक्ति को दर्शनों को लिये ले जा रहे थे और मार्ग सुगम बनाने के लिये उन्होंने लाठी का प्रयोग किया जिससे भगदड़ मची।

खैर, सही तथ्य तो जाँच के बाद ही सामने आयेगा परंतु जब नववर्ष पर 24 घंटे माता रानी का मंदिर दर्शनों के लिये 24 घंटे खुला रहता है इतनी भारी संख्या में श्रद्धालु कटरा पहुँच चुके थे तो उन्हें कटरा बेस कैम्प पर ही क्यों नहीं रोका गया? त्रिकुट हिल्स की क्षमता 70-80 हजार दर्शनाथियों की नहीं है तो फिर क्यों जाने दिया गया? क्या इतनी भारी भीड़ को सिर्फ माता रानी के भरोसे ही छोड़ दिया गया।

आधुनिक युग में भीड़ को नियंत्रित करने के ढेरों उपाय है सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से मंदिर परिसर के चप्पे-चप्पे पर नजर एक कमरे में बैठकर रखी जा सकती है तो फिर श्राइन बोर्ड के कर्ता-धर्ता अफीम खाकर सो रहे थे क्या?

ऐसे ही अकर्मण्य लापरवाह अधिकारियों के कारण देश ने बीते वर्षों में 8 मंदिरों में हुए हादसों में हजारों जाने गवायी है।

  • 26 जनवरी 2005 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के वयी नामक स्थान में मंडेर देवी के मंदिर में हुयी भगदड़ में 350 लोगों की जान गयी, 200 घायल हुए,
  • 3 अगस्त 2008 को हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में मची भगदड़ में 150 लोगों ने जान गवायी।
  • 30 सितंबर 2008 को जोधपुर के चामुंडा माता मंदिर में हुयी भगदड़ में 200 लोग मरे।
  • 4 मार्च 2011 को उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ के रामजानकी मंदिर में हुए भगदड़ में 67 लोग मरे, 15 घायल हुए।
  • 15 जनवरी 2011 को दक्षिण भारत के सबरीमाता मंदिर में हुयी भगदड़ में 104 श्रद्धालुओं ने जान गवायी, 50 घायल हुए।
  •  14 अक्टूबर 2013 को मध्यप्रदेश के दतिया स्थित रतनगढ़ माता मंदिर में पुल पर मची भगदड़ में 91 लोगों ने प्राण गंवाये।
  • तमिलनाडु के तजावुर में हुई भगदड़ में २०० और केरल के पुतिंगलकोलम में भगदड़ में 111 लोग जान गंवा चुके हैं।

इतने हादसों के बाद भी हमने कुछ सबक नहीं लिया है। हमने तो शोक संवेदना व्यक्त कर अपने कत्र्तव्यों की इतिश्री कर ली हे। परंतु उन परिवारों के दिल से पूछों जिनके घर के चिराग इस हादसे में बुझ गये। वह कैसे इस मनहूस 1 जनवरी को भूल सकते हैं।

श्राइन बोर्ड के अकर्मण्य अधिकारियों और जवाबदारों का यह बयान है कि अनुमान से ज्यादा भीड़ आने के कारण हादसा हुआ जो कि जले पर नमक छिडक़ने जैसा है। मंदिर है और आस्था है तो श्रद्धालु तो आयेंगे। उनकी व्यवस्था करना प्रशासन का काम है और यदि प्रशासन प्रबंध और सुरक्षा में असमर्थ है तो मंदिर के दरवाजे बंद कर देना चाहिये। मेरा ऐसा मत है कि इन 13 मौतों के लिये जिसकी भी जिम्मेदारी तय हो उस पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया जाकर दंड दिलाये जाने के प्रयास किये जाने चाहिए।

– अर्जुनसिंह चंदेल

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