हे मेरे देश के अन्नदाताओं जय-जय कार हो तुम्हारी।
तुम अपने परिश्रम में चाहे सर्दी हो या बरसात कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते हो। भारत के अन्नदाताओं तुम 138 करोड़ की विशाल जनसंख्या वाले अपने ही देश को अनाज की आपूर्ति तो कर ही रहे हो साथ ही दुनिया की खाद्य सुरक्षा उठाने का साहस भी दिखा रहे हो।
आँकड़े बताते हैं कि दुनिया कि 7 अरब 90 करोड़ की आबादी (संयुक्त राष्ट्र संघ के वल्र्डोमीटर द्वारा अप्रैल 2022 के नवीनतम आँकड़ों अनुसार) में जनसंख्या की दृष्टि से भारत का प्रतिशत 17.84 प्रतिशत है और दुनिया भर के मवेशियों की जनसंख्या के मान से कुल मवेशियों की संख्या के 15 प्रतिशत मवेशी भारत में है।
वहीं दूसरी ओर हम आबादी में तो 17.84 प्रतिशत है किंतु दुनिया के पास जितनी भूमि है उसकी 2.4 प्रतिशत भूमि ही भारत के पास है। यदि पानी की बात करें तो दुनिया भर के कुल जल का 4 प्रतिशत जल ही भारत में है इसके बावजूद भी मेरे हिंदुस्तान के 350 से अधिक शोध संस्थान, 75 कृषि विश्वविद्यालय, भारतीय कृषि परिषद (आई.सी.ए.आर.) के 20 हजार से अधिक वैज्ञानिकों की फौज की बदौलत हम प्रति वर्ष नये कीर्तिमान रच रहे हैं।
बीते आठ वर्षों में अर्थात 2014 से 2022 तक में हमने खाद्यान्न उत्पादन में 30 प्रतिशत और उद्यानिकी में 16 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करवायी है। कृषि उत्पादन के लिहाज से अमेरिका, चीन, ब्राजील हमसे ऊपर है। चीन की तुलना में हमारी कृषि पैदावर आधी है। फिर भी कड़े परिश्रम के बल पर हमने प्रगति की है वर्ष 2014-2015 में हमारे देश का खाद्यान्न उत्पादन 25.15 करोड़ टन था जो वर्ष 2021-2022 में बढक़र 31.50 करोड़ टन हो गया है। बागवानी में जहाँ 2014-2015 में हमने 28.34 करोड़ टन सब्जियां पैदा की वहीं 2021-2022 में यह आँकड़ा बढक़र 33.10 करोड़ टन हो गया।
दलहन उत्पादन जहाँ 2015-2016 में 1.63 करोड़ टन हुआ करता था वह अब 2021-2022 में 2.7 करोड़ टन का आँकड़ा छू रहा है। तिलहन का उत्पादन भी 2.53 करोड़ टन से बढक़र 3.71 करोड़ टन हो गया है। हमारे देश के अन्नदाता का सारा परिश्रम विशालकाय जनसंख्या की भूख मिटाने में खर्च हो जाता शायद इतनी जनसंख्या ना होती तो हम दुनिया के सबसे बड़े नियतिक होते।
इसे भारतीय किसान के भाग्य की विडम्बना ही कहा जाना उचित होगा कि कृषि उत्पादन में दुनिया की चौथी महाशक्ति होने के बावजूद भारत का किसान खुशहाल नहीं है। क्या कारण है कि कभी किसान की फसल कौड़ी के दाम बिक जाती है और कभी-कभी अप्रत्याशित ऊँचे दामों पर अनेक अवसर ऐसे भी आते हैं किसान को उसकी सब्जियों के दाम न मिल पाने के कारण उसे खेत में ही छोड़ देना पड़ता है।
शायद संसार में भारत ही ऐसा देश है और व्यापार में अकेला कृषि ऐसा क्षेत्र है जहाँ उत्पादन किसान करता है और उसका मूल्य व्यापारी तय करता है बाक व्यवसायों में निर्माता ही उसका मूल्य तय करता है। अनेक अवसर ऐसे भी आते हैं किसान से ज्यादा मुनाफा व्यापारी कमा लेता है।
मेरे देश का अन्नदाता कैसे खुशहाल हो?
सरकार को उसकी उपज के बारे में कुछ ऐसी नीति बनानी चाहिये कि किसान द्वारा उत्पादित आलू ना तो 2 रुपये किलो बिके और ना ही 20 रुपये किलो। वह सामान्यत 10-15 रुपये किलो ही बिकना चाहिये। इसी तरह लहसुन, प्याज, टमाटर एवं अन्य सब्जियों के भी हाल है कभी कौड़ी के दाम तो कभी आदमी की पहुँच के बाहर यदि इनमें संतुलन कायम किया जा सके तो किसान की माली हालत भी सुधरेगी और जनता पर भी अप्रत्याशित महंगाई का हमला नहीं होगा। कृषि विशेषज्ञों की राय लेकर इस पर दूरगामी रणनीति बनाना समय की दरकार है। जय जवान-जय किसान