व्यवस्था के लिये ना कोई अधिकारी, ना कोई नेता, फिर भी मंदिर के चुस्त-दुरुस्त प्रबंधन को देखकर आप रह जाएंगे हैरान
उज्जैन/बदनावर। उज्जैन से 80, बदनावर से लगभग 20 किमी दूर धार जिले के कोद ग्राम से मात्र 4 किलोमीटर दूर स्थित कोटेश्वर महादेव स्थित भगवान शंकर का मंदिर आकर्षण का केन्द्र है। जमीन से लगभग 200 फुट नीचे पत्थरों के बीच स्थित शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि यह स्वयं भू शिवलिंग है। प्राकृतिक सुंदरता से आच्छादित इस स्थान पर गर्मी के दिनों को छोडक़र शेष 10 माह जल की धारा प्रवाहित होती रहती है। जो शिवलिंग के समीप कुंड का रूप धारण करती है। पेड़-पौधे प्राकृतिक रूप से इस शिवलिंग और पूरे परिसर को छाया देने का कार्य करते हैं।
लगभग 900 वर्ष पुराने इस मंदिर परिसर में स्थित एक दीवार पर इसका निर्माण विक्रम संवत 501 का बताया गया है। यहीं पर भगवान शिव की आराधना करने वाले सुकाल भारती जी की समाधि भी है। 900 वर्ष पुराना यह मंदिर वर्तमान में पुरातत्व विभाग की धरोहर है। शासकीय रिकार्ड में कोटेश्वर महादेव के नाम से 350 बीघा भूमि भी दर्ज है।
अखंड रामधुन
कोटेश्वर मंदिर तीर्थ ट्रस्ट के नवनियुक्त अध्यक्ष 74 वर्षीय कोद निवासी रामेश्वर जी पाटीदार (ढ़ोलना वाले) ने अग्निपथ को बताया कि आसपास के 40 गाँवों के निवासियों द्वारा यहाँ की व्यवस्था संभाली जाती है। 19 मई 2002 से मंदिर प्रांगण में अखंड रामधुन जारी है। प्रत्येक ग्राम से 10-15 श्रद्धालुओं का दल रोजाना यहाँ पहुँचता है और दिन के 12 बजे से अगले दिन 12 बजे तक अखंड रामधुन का जाप करता है। प्रतिदिन 40 गाँवों में से क्रम से एक ग्राम से रामधुन के लिये दल आता है जिसके आने-जाने का व्यय 1500 रुपये प्रतिदिन का भुगतान मंदिर ट्रस्ट करता है साथ ही रामधुन गाने वाले दल के भोजन की व्यवस्था भी रहती है। मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष पाटीदार जी के अनुसार मंदिर आने वाले प्रत्येक दर्शनार्थी के लिये मंदिर परिसर चाय की नि:शुल्क व्यवस्था हर समय रहती है।
प्राचीन धर्म शिला
मंदिर के अंदर ही एक प्राचीन शिला भी स्थित है जिसमें बीचों बीच बड़ा सा छेद है, ऐसी मान्यता है कि भले ही कितना ही अधर्मी और पापी इंसान क्यों ना हो यदि वह कोटेश्वर महादेव के दर्शन पश्चात इस शिला के अंदर से अपना शरीर निकाल लेगा तो उसे समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है।
चमत्कारी कुंड
मंदिर के ऊपर ही एक छोटा सा जल कुंड है उसमें सदैव पानी भरा रहता है परंतु यह जलराशि कहाँ से आती है यह दूर-दूर तक खोजने पर भी दिखायी नहीं पड़ती है। इसी कुंड में एक ओर से आती हुयी मिलती है जिसे कहा जाता है कि यह नर्मदा का जल है जो कुंड में स्थित गंगा जल से मिलता है। ऐसी भी मान्यता है कि यहाँ गंगा और माँ नर्मदा मिलकर शिव जी का जलाभिषेक करती है। जिन 40 गाँवों के लोग मिलकर इस चमत्कारी स्थान की व्यवस्था संभालते हैं उनमें से अधिकांश लोग पाटीदार समाज के संपन्न किसान हैं। ट्रस्ट में सचिव पद पर झमकलाल जी, कोषाध्यक्ष रजीत जी, भंडार प्रभारी मनोहर सिंह सिसौदिया एवं कीर्तन मंडली व्यवस्था प्रभारी श्रीलाल जी। आप भी श्रावण मास में इस अद्भुत एवं चमत्कारी मंदिर का दर्शन लाभ अवश्य लेवे।