सोमवार को राजाधिराज महाकालेश्वर की द्वितीय सवारी में भोले के भक्तों की जनमैदिनी ने प्रशासनिक व्यवस्थाओं एवं संभावनाओं को धता बताते हुए सारे रिकार्ड तोड़ दिये। भोले भंडारी के भक्तों ने कल आने वाले उज्जैन की तस्वीर बयां कर दी जिसके कारण अधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखायी देना स्वाभाविक है।
ऐसी संभावना है कि महाकाल कोरिडोर निर्माण पूर्ण होने के बाद उज्जैन आने वाले श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों की संख्या में 50 से 75 प्रतिशत का इजाफा होगा और हो सकता है कि देश के विभिन्न स्थानों के द्वादश ज्योतिर्लिंग में उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर सबसे गौरवशाली और वैभवशाली होने का स्थान प्राप्त करे।
महाकाल की नगरी के जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों से अनुरोध है कि वह भीड़ नियंत्रण, पार्किंग की व्यवस्था, मंदिर पहुँच मार्ग की सुगमता आदि मुद्दों पर बैठकर विचार-विमर्श करें और एक बेहतर समाधान निकालें।
पिछली दो सवारियों का अनुभव बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं एवं स्थानीय निवासियों का सुखद नहीं रहा। अपने आराध्य की झलक पाने के लिये सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर उज्जैन पहुँचे धर्मालु निराश ही हुए।
व्यवस्था में लगे पुलिसकर्मियों ने बाहर से आने वाली गाड़ियों को फुटबाल बना दिया, कोई भी जवाबदार यह बताने को तैयार नहीं था कि वाहन पार्क कहाँ करना है। पुलिसकर्मियों का सिर्फ एक ही जवाब होता था गाड़ी यहाँ से आगे नहीं जायेगी आप कहीं भी ले जाये ।
हैरान, परेशान श्रद्धालु व्यवस्थाओं को कोसने के अलावा कुछ नहीं कर पाये। प्रशासन द्वारा रास्तों, गलियों को बंद करने के कारण स्थानीय निवासी भी परेशान ही हुए।
प्रशासन को चाहिये कि आगामी श्रावण मास की सवारियों एवं शाही सवारी के दिनों इंजीनियरिंग कालेज की खाली पड़ी भूमि पर पार्किंग का विकल्प तलाश करे और वहाँ से ई-रिक्शा द्वारा महाकाल भक्तों को मंदिर तक पहुँचाया जाये।
दूसरा सुझाव यह है कि महाकाल मंदिर जाने वाले मार्गों में से कुछ को चिन्हित करके एकांगी मार्ग घोषित किया जाए। मन्नत गार्डन की रिक्त भूमि पर बहुस्तरीय पार्किंग का निर्माण किया जाए।
यदि स्मार्ट सिटी कंपनी वहाँ बाग-बगीचे लगाने का स्वप्न देख रही है तो यह अनुचित है, क्योंकि एक तो संधारण का अति कठिन कार्य, साथ ही सुरक्षा कारणों में कमी के कारण वहाँ आपराधिक एवं अनैतिक कार्यों को रोक पाना प्रशासन के लिये टेढ़ी खीर ही साबित होगा।
जूता स्टैंड की व्यवस्था भी परेशानी दायक
जैसा कि मीडिया ने बताया कि भक्तों के जूते-चप्पल भी एक बहुत बड़ी समस्या बनकर सामने आयी, भक्त जहाँ से प्रवेश करता है उसे मंदिर के बाहर निकलने पर अपने जूते-चप्पल वापस लेने के लिये पुनः प्रवेश द्वारा पर ही जाना पड़ता है।
मंदिर समिति को चाहिये कि भक्तों के जूते-चप्पल उन्हें निर्गम द्वार पर ही मिल जाए ऐसी योजना का निर्माण हो। स्थानीय प्रशासन और मंदिर समिति की भी मजबूरी है कि निर्माण कार्यों के चलते विकल्प काफी कम है, परंतु फिर भी सीमित साधनों में बेहतर सुविधाओं के लिये मशक्कत किया जाना जरूरी है।
यह तभी संभव है जब प्रशासन के विभिन्न अंग एक साथ बैठकर योजना बनाकर उसे मूर्तरूप दें। जिम्मेदार अधिकारी योजना बनाते समय आगामी 20 वर्षों में श्रद्धालुओं की संख्या में होने वाली बढ़ोत्तरी को ध्यान में रखकर ही योजना बनायें तो बेहतर होगा।
बीती सवारियों में हवी अव्यवस्थाओं से अनुभव लिया जाना चाहिये यह तो महाकालेश्वर की कृपा रही कि इतनी जनमैदिनी के बाद भी कोई हादसा नहीं हुआ नहीं तो अधिकारियों के साथ उज्जैनवासियों के माथे पर भी कलंक का टीका लग जाता।