नजर ना लगाओ अमन-पसंद मेरे शहर की शांत फिजा को

हमारा देश विविध धर्मों का देश है जिसने पूरे संसार को विविधता में एकता का संदेश दिया है और दुनिया के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। भारत में विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग निवास करते हैं और होली, दीपावली, ईद भाईचारे के साथ मनाते हैं। 138 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में जहाँ 79.8 प्रतिशत लगभग 112 करोड़ की हिंदू आबादी है। 14.23 प्रतिशत लगभग 19 करोड़ मुस्लिम, .70 प्रतिशत बौद्ध लगभग 1 करोड़, 2.3 ईसाई यानि लगभग 3 करोड़ निवास करते हैं। संसार में सबसे ज्यादा पारसी और बहाई समाज भी यही रहता है। जहाँ हिंदू धर्म 5000 वर्ष पुराना है, ईसाई धर्म 2000 वर्ष पुराना, ईस्लाम 1300 वर्ष पुराना और सिख धर्म 500 वर्ष पुराना है।

ईस्लाम धर्म की प्रगति (1206-1526) दिल्ली सल्तनत तथा मुगल साम्राज्य के दौरान हुई। इतिहास गवाह है देश की आजादी के पहले वर्षों से भारत के हिंदु-मुस्लिम भाई-भाई जैसे साथ रहे हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मुगलों के खिलाफ लड़ाई लडऩे वाले और औरंगजेब के साथ दो-दो हाथ करने वाले छत्रपति महाराज शिवाजी के 18 अंगरक्षकों में से 12 अंगरक्षक मुस्लिम थे। शिवाजी के सबसे विश्वस्त जासूस रूस्तमे एजमान एक मुस्लिम थे। मुस्लिम शासक अकबर के प्रधान सेनापति राजा मानसिंह थे वहीं दूसरी ओर राणा-प्रताप के सेनापति हकीम खान नूर थे। हल्दी घाटी के ऐतिहासिक युद्ध में अकबर की ओर से राजा मानसिंह और महाराणा प्रताप की ओर से हकीम खान नूर ने यह लड़ाई लड़ी थी। शिवाजी से मुलाकात के दौरान अफजल खाँ ने हमले का प्रयास किया तब शिवाजी ने विष लगे नाखून से हमला कर अफजल खाँ को घायल कर दिया तब अफजल खाँ को बचाने वाले कृष्णा जी भास्कर कुलकर्णी हिंदू थे। यह मैं नहीं कह रहा हूँ इतिहास बता रहा है।

आज भी अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर के कार्यालय में 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में हुए जलियावाला बाग कांड में जनरल डायर के निर्देश पर हुई अंधाधुंध फायरिंग में मारे गये 484 निरपराध लोगों की सूची टंगी हुई है और मैं बड़े फक्र के साथ कहता हूँ कि उन 484 शहीदों की सूची में 73 मुस्लिम भी थे और मरने वाले 73 मुस्लिमों में से किसी एक की भी पीठ पर गोली नहीं लगी थी सभी ने सीनों पर गोली खाई थी। देश की आजादी की लड़ाई लडऩे वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के विश्वास पात्रों में बांदा स्टेट के नवाब अली बहादुर (द्वितीय) थे उनका और लक्ष्मीबाई का रिश्ता भाई-बहन का था। वह लक्ष्मीबाई के मुंहबोले भाई थे। अंग्रेजों के साथ हुई आखिरी लड़ाई में उनका यह मुस्लिम भाई उनके साथ ही था और इतना ही नहीं लक्ष्मीबाई का अंतिम संस्कार भी इसी भाई ने किया था।

झाँसी की रानी के तोपची भी एक मुस्लिम थे जिनके हाथ तोप में गोले डालते-डालते गल गये थे। भारत की आजादी की लड़ाई भी हिंदु-मुस्लिम ने मिलकर लड़ी। क्रांतिकारी अशफाक उल्लाह खाँ जैसे कई नाम हैं। परंतु अँग्रेजों ने भारत को आजाद तो कर दिया पर जाते-जाते फूट परस्ती की ऐसी विष बेल का रोपण कर दिया जिसका दंश देश आज तक झेल रहा है। आजादी के बाद हुए विभाजन की टीस हर भारतीय के मन में है, जिसमें हुई हिंसा के कारण 5 लाख लोग मारे गये थे और 1 करोड़ 20 लाख लोग इधर से उधर हुए थे। आजादी के बाद हमारी गंगा-जमुनी तहजीब को आग लग गई।

देश में थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद हिंदु-मुस्लिमों के बीच साम्प्रदायिक झड़पे, दंगे होने लगे जिनमें मुख्य रूप से 1969 का गुजरात दंगा, 1980 का मुरादाबाद दंगा, 1984 का भिवंडी दंगा, 1989 का भागलपुर दंगा, 1990 का हैदराबाद दंगा, 1991 का कर्नाटक दंगा, 1992-93 का मुंबई दंगा, 2002 का गुजरात दंगा, 2006 का बडोदरा दंगा और 2013 का मुजफ्फनगर दंगा प्रमुख है जिसमें सैकड़ों बेगुनाहों के रक्त से यमराज ने अपनी प्यास बुझाई थी।

अब बात करना चाहूँगा वैदिक काल में अवंतिका के नाम से प्रसिद्ध और ब्राह्मण ग्रंथों और उपनिषदों में वर्णित मेरे उज्जैन की। महाभारत और 18 पुराणों में उल्लेखित इस शहर में भी हिंदु-मुस्लिमों की आबादी वर्षों से साथ रह रही है। साम्प्रदायिक सौहार्द्र की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी कि यहीं पर सांकडिय़ा-सुल्तान और पीर मत्स्येन्द्र नाथ जैसे उपासना स्थल है जहाँ दोनों धर्मों के अनुयायी जाते हैं। मौलाना मौज की दरगाह पर अजमेर शरीफ की दरगाह की तरह काफी संख्या में हिंदू धर्मावलंबी जियारत करने जाते हैं। यह वही उज्जैन है जहाँ महाकाल की सवारी का स्वागत मुस्लिम और ईद-मिलादुन्नबी के जुलूस का स्वागत हिंदू धर्माविलंबी करते हैं।

कल इस शांत शहर के बेगमबाग क्षेत्र में से जुलूस निकाल रहे उत्साहित नवयुवकों की नारेबाजी के कारण अपना संयम खो चुके मुस्लिम महिला-पुरुषों ने छतों पर जमा पत्थरों से नवयुवकों पर हमला बोल दिया। जिससे उनमें से कुछ लडक़ों को गंभीर चोटें आई है। प्रशासन ने सजगता का परिचय देते हुए स्थिति को नियंत्रण में कर लिया। कभी इस तरह आकस्मिक हुए विवाद में किसी एक पक्ष की गलती नहीं होती।

दोनों पक्षों की गलती ने ही इस शांत शहर की फिजां में जहर घोलने का काम किया है। परंतु इसमें एक तीसरे पक्ष की भी गलती को नजरअंदाज करना बेईमानी होगा। जब पुलिस-प्रशासन को पता था कि जुलूस का एक हिस्सा संवेदनशील क्षेत्र से गुजरेगा तो फिर माकूल पुलिस बल क्यों नहीं लगाया गया, वह ड्रोन कैमरे कहाँ गये? जो गाहे-बगाहे उड़ते रहते हैं, स्मार्ट सिटी कार्यालय के कंट्रोल रूम से पूरे शहर पर नजर रखने वाले कैमरों के क्या शटर बंद थे? जिनके कारण असामाजिक तत्वों को मौका मिल गया।

प्रशासन का अपनी गलती छिपाने के लिये की गई कार्रवाई भी अनेक प्रश्न चिन्ह छोड़ गई है। क्या अब यह मान लिया जाए कि भविष्य में जिस भी घर से पत्थर फेंका जायेगा चाहे वह हिंदू का हो या मुस्लिम का उसे जमींदोज किया जायेगा। आरोपी यास्मीन के मकान की तरह इसे आज की पुलिस कार्रवाई को नजीर माना जाए। यदि कार्यवाही करनी है तो निगम को पूरे अमले और संसाधनों जैसे जेसीबी, पोकलेन के साथ तैनात क्यों नहीं किया गया? मात्र दो-चार हथोड़े की मदद से मकान तोड़ा जायेगा।

प्रशासन की इसी लापरवाही से आक्रोश को पनपने का समय मिला जिसके कारण इतनी भीड़ जमा हो गई। मुस्लिमों का आज का आक्रोश अपने अंदर प्रशासन द्वारा की गई अनेक कार्रवाइयों से असहमति के साथ था। तकिया मस्जिद के बाहर का अवैध निर्माण, गुंडा, अपराधियों की सूची में मुस्लिमों के मकान तोड़े जाने पर अंदर ही अंदर असंतोष की ज्वाला धधक रही थी और गुस्सा आज फूटा।

आज की विषम परिस्थिति में जिलाधीश आशीष सिंह, पुलिस कप्तान सत्येन्द्र कुमार तथा अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी नरेन्द्र सूर्यवंशी ने जिस सूझबूझ और विवेक से काम लिया वह काबिले तारीफ है। परंतु प्रशासन को सतर्क रहना होगा क्योंकि आग के नीचे राख में चिंगारियां अभी भी दिखाई दे रही हैं। प्रशासन को चाहिये कि शहर काजी और प्रभावित क्षेत्र के लोगों के साथ बैठक कर उन्हें संतुष्ट करने का प्रयास करें और यदि कहीं कोई चूक हुई है तो खेद व्यक्त करे।

साम्प्रदायिक सौहाद्र्र हर देश, राज्य, नगर के लिये जरूरी है। शांति सद्भाव हो तो ही क्षेत्र का विकास संभव है।

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