(अर्जुन सिंह चंदेल)
सिंहस्थ के लिए कई योजनाओं में फेरबदल करना जरूरी
बाबा महाकाल के आशीर्वाद से और प्रदेश के मुख्यमंत्री के सदप्रयासों से उज्जैन की दशा बदलने के संकेत प्रारंभ हो गये हैं। उज्जैन को स्वर्ग जैसा बनाने की मुख्यमंत्री की परिकल्पना साकार होती नजर आ रही है। बीते १५ दिनों से जो नजारा उज्जैनवासी देख रहे हैं उससे वह हतप्रभ हैं। शायद महाकाल लोक की परियोजना बनाते समय विश्वकर्मा के वंशजों को भी महाकाल के आंगन में इतनी जनमैदिनी उमडऩे की संभावना नहीं दिखायी दी होगी।
महाकाल लोक तो गुलजार है ही साथ में होटल व्यवसाय, रेस्टोरेन्ट, कार टैक्सी, ऑटो रिक्शा जैसे व्यवसायों में भी बहार आ गयी है। शहर के नमकीन, मेहंदी, पूजन सामग्री, पोहा निर्माताओं के विक्रय में आशातीत इजाफा हुआ है। शहर की सारी होटलें तो खचाखच भरी हुयी हैं ही इसके साथ ही साधु-संतों, प्रवचनकारों के आश्रमों, धर्मशालाओं में भी बाहर से आने वाले धर्मालुओं को जगह नहीं मिल पा रही है। भोजनालयों में महानगरों की तर्ज पर एक से डेढ़ घंटे की प्रतीक्षा व्यवस्था नजर आने लगी है।
मीडिया में आयी खबरों पर यदि यकीन किया जाए तो बाहर से आने वाले धर्मालु अपने वाहनों के अंदर ही रात गुजार रहे हैं। शायद इस परियोजना निर्माण के समय किसी भी अधिकारी, इंजीनियर के दिमाग में यह नहीं आया होगा कि महाकाल लोक के अंदर तो श्रद्धालुओं को समाने की क्षमता है पर इतना जनसमूह किन-किन मार्गों से आयेगा? और आने वाले वाहन कहाँ पार्क होंगे? शायद यह अनुमान लगाया ही नहीं गया और यदि लगाया भी गया होगा तो यह कहना गलत ना होगा कि सारे अनुमान ध्वस्त हो गये हैं।
बीते १५ दिनों से उज्जैन के निवासी बुरी तरह रोज होने वाले जाम के कारण परेशान हैं जिम्मेदार अधिकारी नित नये प्रयोग करके व्यवस्था में सुधार लाने का प्रयास कर रहे हैं परंतु अभी तक के सारे प्रयोग असफल ही साबित हो रहे हैं। महाकाल लोक में आने वाले वाहनों के कारण इंदौर-उज्जैन का फोरलेन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है उज्जैन से इंदौर 50 किलोमीटर की दूरी तय करने में वाहन चालकों को डेढ़ से दो घंटे लग रहे है।
सामान्य दिनों में ही सारी व्यवस्थाएं दम तोड़ चुकी है तो आने वाले तीज-त्यौहार, सावन मास और आगामी 2028 के सिंहस्थ में क्या हालात होंगे इसकी कल्पना से ही उज्जैनवासियों का असहज होना स्वाभाविक है। अभी तो मेट्रो और रोपवे आना बाकी है। शायद हमें इन योजनाओं को अमली जामा पहनाने के पूर्व भविष्य के कम से कम 25 से 30 वर्षों को जहन में रखना चाहिये।
क्या किया जा सकता है?
रोपवे की जो योजना बनायी गयी है उसमें शुरुआती स्थान बस स्टैण्ड या रेलवे स्टेशन रखा गया है परंतु यह भी विचार किया जाना चाहिये कि जो यात्री रोपवे सुविधा का उपयोग करना चाहेंगे उनके वाहन कहाँ पार्क होंगे यदि इसी तरह जनमैदिनी उमड़ेगी तो देवासगेट बस स्टैण्ड और रेलवे स्टेशन के पास वाहन पार्किंग का कोई बड़ा स्थान नजर नहीं आता साथ ही सर्वाधिक वाहन इंदौर तथा देवास मार्ग से आते हैं वह भी बस स्टैण्ड या रेलवे स्टेशन आने के लिये पूरे शहर की यातायात व्यवस्था को प्रभावित करेंगे।
यदि रोपवे का प्रारंभिक स्थान इंदौर रोड स्थित शनि मंदिर (त्रिवेणी) पर रखा जा सकता है तो इंदौर तथा देवास से आने वाले वाहन वहीं रूक कर रोपवे सुविधा का लाभ ले सकेंगे। इससे कई फायदे होते एक तो उस क्षेत्र का विकास होता साथ ही पार्किंग के लिये पर्याप्त स्थान की व्यवस्था भी की जा सकती थी। शहर के अंदर वाहन ना आने के कारण नगर की यातायात व्यवस्था भी प्रभावित नहीं होगी और क्षिप्रा नदी के किनारे-किनारे रोपवे का मार्ग होने से यात्री क्षिप्रा के विहंगम दृश्य का आनंद भी ले सकेंगे। रोपवे को जयसिंहपुरा लालपुल के बीच तक लाया जा सकता है वहाँ से ई-रिक्शा से धर्मालु त्रिवेणी संग्रहालय तक लाये जा सकते हैं।
दूसरा सुझाव हरिफाटक ओवर ब्रिज के नीचे जहाँ पुराना रेलवे क्रॉसिंग था वहाँ पर अंडरपास का निर्माण करके इंदौर देवास से आने वाले वाहनों की पार्किंग गुरुवारिया हाट और मेघदूत वन पर करवा कर यात्रियों को पैदल या ई रिक्शा के माध्यम से अंडरपास होते हुए सीधे त्रिवेणी संग्रहालय पहुँचाया जा सकता है इससे करोड़ों की लागत से बने बेकार पड़े हाट बाजार का भी बेहतर उपयोग किया जा सकता है।
जंतर-मंतर के सामने से चारधाम जाने वाले मार्ग पर अंडर पास की जगह ओव्हर ब्रिज का निर्माण किया जाना चाहिये जिससे सिंहस्थ में भी इसका भरपूर लाभ लिया जा सकता है। इंदौर गेट स्थित पुराने ए केबिन के पास अंडरपास का निर्माण करके गधापुलिया पर आ रहे दबाव को कम किया जा सकता है।
अंतिम सुझाव संकेतकों के अभाव में बाहर से आने वाले श्रद्धालु बहुत अधिक परेशान परेशान होते हैं। संकेतकों की नितांत आवश्यक है। साथ ही लगभग 5 से 10 हजार चार पहिया वाहनों के पार्किंग के लिये भी स्थान तलाशा जाना अतिआवश्यक है। ताकि सिंहस्थ और आने वाले 50 वर्षों में श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को नियंत्रित किया जा सके।