झाबुआ, अग्निपथ। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 15 नवबंर को बिरसा मुंडा जंयती के अवसर पर प्रदेश में आदिवासीयों के लिये लागू पेसा कानून 1996 को लागू किया जा रहा है। राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मु की उपस्थिति में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान प्रदेश के शहडोल जिले से प्रदेश में आदिवासीयों के इस नये कानून पेसा को लागू करेगें।
पेसा कानून आदिवासी क्षेत्रों की ग्राम पंचायतों को उनके जल, जंगल, जमीन के अधिकार और ग्राम पंचायतों को सशक्त बनाने तथा आदिवासीयों की जमीन, जायदातों की सुरक्षा की गांरटी देता है। पूर्व सांसद स्वर्गीय दिलीप सिंह भूरिया के अगुवाई में बनी भूरिया कमेटी की अनुसंशा पर देश की लोकसभा व राज्य सभा में संविधान संशोधन विधेयक 1996 पारित किया गया था। तब से लेकर अब तक देश भर में उक्त कानून को लागू करने में देश की राज्य सरकारें आना कानी करती चली आ रही है।
जब तक दिलीप सिंह भूरिया जीवीत थे तब तक मध्य प्रदेश में इस कानून को लागू कराने का भरसक प्रयत्न करते रहे लेकिन राज्य सरकार टालमटोल करती रही। लेकिन अब प्रदेश में आदिवासीयों के वोट बैंक को साधने के लिये प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने इसे लागू करने का फैसला लिया है।
पिछले दिनों राजस्थान के मानगढ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में शिवराजसिंह ने उक्त कानून को 15 नवबंर बिरसा मुंडा जयंती से प्रदेश में लागू करने का संकल्प दोहराया और अब 15 नवबंर को द्रोपति मुर्मु की उपस्थिति में इसे लागू किया जा रहा है। प्रदेश की 89 ब्लाकों में इसे लागू किया जा रहा है, प्रदेश में 49 आदिवासी विधानसभा सीटे है वहीं इंदौर संभाग के झाबुआ, धार, आलिराजपुर, खरगौन, बडवानी, रतलाम को मिलाकर 27 आदिवासी विधानसभा सिटे है।
अर्थात भोपाल के वल्लभ भवन तक पहुचंने का रास्ता आदिवासी सिटों से होकर ही गुजरता है, पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से चूक हो गई थी। जिसके कारण झाबुआ, आलिराजपुर, धार, बडवानी, रतलाम आदि स्थानों की आदिवासी सिटों पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया था। लेकिन अब भाजपा आदिवासीयों पर डोरे डालने में लगी है, जिसके चलते पेसा कानून को लागू किया जा रहा है।
पेसा कानून को लागू करने के लिये मुख्यमंत्री स्वयं श्रेय ले रहे है, जबकि आदिवासी नेता और इस कानून के जनक स्व. सांसद दिलीप सिंह भूरिया को कही भी याद किये जाने या उनके नाम का उल्लेख करना भी भाजपा आवष्यक नहीं समझ रही है। इस बात का मलाल उनकी पूत्री और पूर्व विधायिका सुश्री निर्मला भूरिया को भी है उनका मानना है कि आदिवासीयों के नाम पर राजनिति तो बहुत होती है लेकिन श्रेय देते समय आदिवासी नेताओं को भूला दिया जाता है।
झाबुआ जिले में 261 ग्राम पंचायते और आलिराजपुर जिले में 288 ग्राम पंचायते है, लेकिन इन ग्राम पंचायतों में पेसा कानून को लेकर किस प्रकार से कार्य करना है। इसे लेकर प्रशासनिक हलकों में उदासिनता है, किसी भी जिम्मेदार अधिकारी को इसमें रूचि नही है इसे लेकर आज तक कोई दिशा निर्देश जिला प्रशासन या जिला पंचायत स्तर पर जारी नहीं किये गये है। जबकि प्रदेश में 17 नवबंर से सभी ग्राम पंचायत स्तर पर जाकर पेसा कानून की जानकारी देने की बात प्रदेश सरकार द्वारा कही जा रही है।
15 नवबंर को जनजातीय दिवस के रूप में बिरसा मुंडा की जंयती मनाई जायेगी और इस दौरान प्रशासनिक स्तर पर ब्लाक मुख्यालयों तक आयोजन किये जायेगें जिला प्रशासन द्वारा भी रैलियां निकाली जायेगी। कांग्रेस के नेता पेसा कानून को लेकर इसे भाजपा की राजनिति बता रहे है उनका मानना है कि इस संबंध में आदिवासी नेताओं को प्रदेश सरकार ने कोई जानकारी नहीं दी है और उन्हे विश्वास में भी नहीं लिया गया है। पूर्व सांसद व विधायक झाबुआ कांतिलाल भूरिया तो इस मामले में विधानसभा में चर्चा कराना चाहते है।
प्रदेश के झाबुआ, आलिराजपुर, बडवानी, धार, खरगौन, रतलाम, सीधी, सरगुजा, डिंडौरी, शहडोल,श्योपुर, छिंदवाडा आदि जिले आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र वाले है। इन पर भाजपा आने वाले विधानसभा चुनावों में अपना परचम लहराना चाहती है, इसलिये अभी से आदिवासी वोट बैंक को लुभाने के लिये मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने अपनी गिद्ध दृष्टि जमा दी है।