• अर्जुन सिंह चंदेल
जिंदगी चाहे एक दिन की
हो या चाहे चार दिन की
उसे ऐसे जियो…
जैसे कि जिंदगी तुम्हें नहीं मिली
जिंदगी को तुम मिले हो
हाथ-पैर सीधे करने के बाद सभी लोग हॉल में पहुँच गये दोपहर भोज के लिये। साथी संदीप गुप्ता जी की पसंद का केटर्स था इसलिये उसके साथ संदीप जी की भी प्रतिष्ठाा दाँव पर थी। केटरिंग के कार्य में महारथ हासिल कर चुके भाई नेहरू के लिये भी यह कार्यक्रम चुनौतीपूर्ण था। वह इसलिये कि भारत के विभिन्न प्रांतों से आये थे जीडीएस के लोग उन सबको खुश करना था।
दोपहर भोज में दाल-चावल, आलू बैंगन, टमाटर, बूँदी रायता, आलू परवल की सूखी सब्जी, लौकी के हलवे के साथ कढ़ी-पकोड़ा और एक आदिवासी फल ‘टिलोरी’ था जिसे काट कर तला जाता है और खाया जाता है। भोजन की पहली ही परीक्षा में नेहरू उस्ताद पास हो चुके थे। भोजन की मुख्य विशेषता नेहरू जी के घर का बना हुआ घी था जो अत्यन्त स्वादिष्ट था और जिसने भोजन के स्वाद में चार चाँद लगा दिये।
भोजन के दौरान ही बातचीत के माध्यम से अजनबी अब दोस्त बनने लग गये थे। दूरियां नजदीकियों में बदल रही थी। संक्षिप्त आपसी परिचय हो रहा था औपचारिक परिचय का कार्यक्रम शाम को था।
‘घुमक्कड़ी दिल से’ ग्रुप के सभी साथी दल की टी शर्ट में थे केप भी थी और गले में परिचर-पत्र भी। भोजन के बाद शाम 4 बजे हम सभी साथी बस में सवार होकर निकल पड़े ‘मैनपाट’ में ‘सूयस्ति’ के मनोहारी दृश्य के लिये प्रसिद्ध जगह ‘पेरपटिया’ के लिये। मौसम बहुत हसीन था छोटे रास्तों से होती हुई लगभग 45 मिनट के सफर बाद हमारी मंजिल आयी परपटिया चूँकि आसमान में बादलों का डेरा था इसलिये सूर्य देवता के दर्शन नहीं हो पा रहे थे पर वह जगह बहुत खूबसूरत और आँखों तथा मन को सकून देने वाला था मोबाइलों के कैमरे हरकत में आ गये इन हसीन दृश्यों को अपने चलायमान फोन में कैद करने लिये।
दल में महिला सदस्य भी थी उन्होंने महिलाओं का समूह बनाकर जमकर फोटो खींचे। दल के वरिष्ठ साथी बाबेले जी ताल-बेहर की मावे की गुंजिया सबको दिलायी। गजब का स्वाद था एक खाने के बाद मन में लालच आया और खाने का परंतु ‘मधुमेह’ के प्रेमी होने के भय से दिल को समझाकर संतोष कर लिया।
इसी बीच सूर्य देवता के दर्शन हुए बादल साफ हो गये सबके चेहरे खिल उठे इस उम्मीद में कि अब तो सूर्यास्त का मनोहारी दूश्य देखने को मिलेगा लगभग 15 मिनट बाद मौसम में फिर परिवर्तन हुआ और बादलों ने अपना डेरा फिर जमा लिया और सूर्य देवता को अपने आगोश में ढक्कर हम सबको निराश कर दिया। समय हो चला था उम्मीदें दम तोड़ चुकी थी भारी मन लेकर हम सब चल पड़े अगले पड़ाव मछली पाईंट की ओर जो कि उसी क्षेत्र में था।
बारिश का मौसम होने के कारण अंधेरा आने का संकेत दे रहा था। जमीन से लगभग 100 मीटर नीचे पानी गिरने की कल-कल सुनायी दे रही थी सभी लोग असामान्य सीढिय़ों से होते हुए नीचे उतरे बहुत ही सुंदर दृश्य था हरियाली से अच्छादित जगह पर झरना बह रहा था पानी की ध्वनि कानों को अच्छी लग रही थी। सभी साथियों ने खूब सारे फोटो खींचे देखते ही देखते अंधेरा रंग जमाने लगा अब ज्यादा देर तक वहाँ रूकना ठीक नहीं था सभी लोग आकर बस में बैठ गये और बस चल पड़ी शैला रिसोर्ट की ओर करीबन 7 बजे हम लोग पहुँच गये।
जाते ही नेहरू उस्ताद फिर हाजिर थे नाश्ते की टेबल के साथ। वाह नाश्ते में देहाती बड़ा (बोरी डॉड स्टाइल), कॉजी बड़ा जैसा पानी वाला भजिया, लकड़ा की चटनी (बॉस की जड़ो से बनी) के साथ चाय कॉफी की व्यवस्था थी नाश्ते के बाद सभी अपने रूमों में चले गये वापस लौटकर सांस्कृतिक कार्यक्रम में आने के लिये जिसमें हम सभी का आपस में परिचय होना था।
शेष कल…