वर्षों से जारी सूदखोरी का व्यापार कोरोना काल के बाद जानलेवा बन गया है। लॉकडाउन में चौपट हुए धंधे-व्यापार के कारण कंगाल हुए कई कर्जदार सूदखोरों की धमकियों से तंग आकर जान गवां चुके हैं। कई बड़े मामले सामने आने के बाद प्रशासन ने इसे मुहिम के रूप में शुरू कर राहत देने की कोशिश की थी।
कुछ समय तो वसूली का दौर थमा लेकिन अब एकबार फिर सूदखोर पठानी वसूली के लिए बेखौफ हो कर सडक़ पर उतर आए हैं। इस बार विकास प्राधिकरण के कर्मचारी ने अपनी जान दे दी। शहर में बढ़ती सूदखोरी के लिए कहीं न कहीं बैंके भी दोषी हैं।
कोरोना काल के बाद सरकार ने राहत के नाम पर ऐसा पैकेज पेश किया जिसमें आम आदमी के हाथ धैला भी नहीं लगा। सारे राहत पैकेज उद्योगों और बड़े व्यापारियों को केंद्र में रखकर प्लॉन किए गए। निचले व्यापारी यानी सडक़ पर व्यापार करने वाले स्ट्रीट वेंडर के लिए दस हजार रुपए के लोन की योजना सरकार ने बनाई तो बैंकों ने उसमें भी डंडी मारी और पात्र लोगों की जगह सेटिंगबाजों के जरिए लोन बांटे गए। हाल ही में कलेक्टर ने इस कारण एक बैंक को सील भी किया था। प्रशासन को राहत का सिलसिला जारी रखना जरूरी है नहीं तो और जानें जा सकती हैं।