यात्रा वृत्तांत-2: रामलला के दर्शन करते ही सारे कष्ट और तकलीफें हो गयी छू मंतर

अर्जुन सिंह चंदेल

(कल से आगे)

हमारी टीम चल दी रामलला के मंदिर ऑटो रिक्शा के माध्यम से, पर आप ऐसी गलती ना कीजियेगा वहाँ नगर पालिका की ओर से मात्र 10 रुपये में मंदिर जाने हेतु वातानुकूलित इलेक्ट्रिक बसें चलायी जाती है जो बहुत आरामदायक है। घाट के पास लता मंगेशकर चौराहे से ही थोड़ी-थोड़ी देर में उपलब्ध है।

जैसे-तैसे ई-रिक्शा में कष्टदायक यात्रा करते हुए मंदिर परिसर से थोड़ी दूर तक पहुँच गये लेकिन रिक्शे वाले ने वहीं उतार दिया बोला अब रिक्शा आगे नहीं जा पायेगा। वहाँ से मंदिर पहुँचने का पैदल मार्ग धूलभरा और गंदगी से सराबोर है। इतनी धूल उड़ रही थी कि सरयू में स्नान करना ना करना बराबर हो गया। सुविधा घर के अभाव में ग्रामीण क्षेत्र से बहुतायत में आने वाले श्रद्धालु महिला-पुरुष, मार्ग के नजदीक ही लघुशंका कर रहे थे। वहाँ भी ई-रिक्शा वालों का सडक़ों पर वैसा ही आतंक है जैसा उज्जैन में। सडक़ की क्षमता से कई गुना ई-रिक्शा आ जाने से सडक़ों ने दम तोड़ दिया है।

जैसे-तैसे मंदिर परिसर में प्रवेश किया तो चारों तरफ निर्माण कार्य चलता नजर आया धूल के गुबार से पूरा मंदिर क्षेत्र आच्छादित है। मशीनें काम कर रही हैं, मजदूर लगे हुए हैं, ऐसा लगा कि चुनाव नजदीक होने के कारण समय पूर्व ही मंदिर का प्रसव करा दिया गया है। मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होने में अभी कम से कम दो से तीन वर्ष लगेंगे।

रामलला के दर्शनों को आये दुनिया भर के श्रद्धालु अभी तो परेशान ही हो रहे हैं। चिलचिलाती धूप में नंगे पैर चलने से पैरों में छाले तक पड़ रहे हैं, कल्पना कीजिये बच्चों की क्या हालत होती होगी। खैर राम-राम करते-करते पहुँच ही गये उस विशाल कक्ष में जहाँ रामलला विराजित थे। उस विशालकाय कक्ष में एक ही विशाल पंखा था जो खचाखच भरे कक्ष में सभी धर्मालुओं को राहत देने के लिये नाकाफी था।

परंतु प्रभु श्री राम के मनमोहक मूर्ति के दर्शन होते ही ऐसा लगा मानो प्रभु ने हमारे सारे कष्ट और तकलीफें हर ली हो। अपने राम तो अपलक उनकी मनभावन छवि को ही निहारते रहे और भूल गये कि कुछ याचना भी करनी चाहिये। खैर हमेशा की तरह हम ईश्वर के समक्ष जाकर कुछ नहीं मांग सके, क्योंकि ईश्वर ने बिना मांगे ही इतना दे दिया है कि और मांगना उचित भी नहीं है।

प्रभु श्री राम के दर्शन मात्र से ही जीवन धन्य सा महसूस होने लगा। मंदिर निर्माण से पुरातन अयोध्या नगरी में रोजगार के नये अवसरों का सृजन हुआ है। प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से हजारों लोगों को रोजगार मिला है। बदहाल उत्तरप्रदेश के अयोध्या के आसपास के क्षेत्रों के सैकड़ों नवजवानों को दाल-रोटी का आसरा मिला है। भविष्य में मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हो जाने पर देश के पर्यटन स्थलों में अयोध्या कोहिनूर हीरे की तरह चमकेगी।

नेपाल की ओर

अयोध्या में दर्शन पश्चात हमारी टीम निकल पड़ी नेपाल की ओर। रोमांच चरम पर था, मन कुलाचे मार रहा था। अयोध्या से बस्ती, बंसी होते हुए नौतनवा बार्डर से हमें नेपाल में प्रवेश करना था। 171 किलोमीटर की दूरी 3 घंटे 31 मिनट में तय होना थी। रास्ते में आंवले और आम के पेड़ बहुतायत में मिले। अयोध्या और बस्ती के बीच ऑवले से निर्मित उत्पादों की सैकड़ों दुकानें थी। जहाँ पर मुरब्बा, अचार, कैंडी के अलावा और भी बहुत सारी चीजें बिक रही थी जो बाबा रामदेव के उत्पादों के मुकाबले काफी कम थी। शाम को 5 बजे हम पहुँच गये नौतनवा बार्डर।

(शेष अगले अंक में)

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