– अर्जुन सिंह चंदेल
संकरी सडक़ के दोनों ओर ग्रामीण परिवेश से भारत की वास्तविक और सुंदर छवि को स्पष्ट देखा जा सकता था। कुछ ही मिनटों में हमें सामने ही म.प्र. पर्यटन विकास निगम का रिसोर्ट नजर आ गया। मेरा हायर सैकेण्डरी का मित्र उज्जैन निवासी राजेन्द्र पंवार उर्फ ‘राजू’ रिसोर्ट की पार्किंग में ही खड़ा होकर हमारी प्रतीक्षा कर रहा था वह मेरा दोस्त तो है ही साथ ही इस रिसोर्ट का प्रबंधक (सर्वेसर्वा) भी।
मेजबान और मित्र होने के नाते उसने हमारी दस सदस्यीय मंडली का गर्मजोशी से स्वागत किया। मैने मेरे साथ आये सभी साथियों से परिचय कराया। दोपहर के लगभग 2 बज रहे थे आसमान में काले बादल जरूर थे पर शायद बरसने के लिये वह किसी घड़ी का इंतजार कर रहे थे। रिसोर्ट के मैनेजर साहब और हमारे यार ने बोला जाओ पहले बोटिंग का आनंद लो फिर भोजन करवाता हूँ।
भोजन का आर्डर देकर हमने बोला स्वाद दरबारों वाला चाहिये झन्नाट। रिसोर्ट के पीछे ही डेम बना हुआ है। चोखा डेम नर्मदा नदी के बैक वाटर के पास है जो कि ठंडे और साफ, स्वच्छ, निर्मल जल से भरा हुआ है। डेम के चारों ओर हरे भरे वृक्ष और हरियाली है। गगन और वसुंधरा का मनोरम दृश्य दिखायी दे रहा था सचमुच आराम से तनावमुक्त होकर कुछ शांत समय बिताने के लिये यह आदर्श स्थान है।
थोड़ा समय इंतजार के बाद हमें जिस बोट पर सवार होना था उसका नाम ‘जलपरी’ था वह आ गयी और उसके कुशल चालक थे महेन्द्र भाई जिन्हें मित्र ‘राजू’ का फोन आ चुका था कि दोस्तों को अच्छे से सैर कराना। हम सभी दोस्त जलपरी में सवार हो गये थे जो हमें अथाह जलराशि के बीच जल की सुंदरता को और करीब से देखने का आनंद महसूस कराने वाली थी।
साफ नीला पानी, आसपास हरे-भरे पेड़, अंतहीन बादलों वाला गगन, मन कर रहा था अपने पैरों को मनमोहक ठंडे जल में डालकर यहीं बैठे रहे और प्रकृति की इस अप्रतिम गोद में ही बैठकर स्वादिष्ट भोजन का आनंद लें। चालक महेन्द्र ने बताया कि चोरल डेम से सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य भी मनोरम होता है।
हम मुख्य बाँध से लगभग 1 किलोमीटर दूर गये थे तभी इंद्रदेव मेहरबान हो गये, शायद बादल हमारा ही इंतजार कर रहे थे। ऐसा लगा भगवान इंद्र भी हम पुराने दोस्तों के इस तरह एक साथ मिलने से खुश थे उन्होंने जोरदार बारिश से हमारा स्वागत किया। हॉलांकि हमारी जलपरी पर छत थी परंतु बारिश इतनी तेज और हवा के साथ थी कि वह बोट की छत हमारी कवच नहीं बन सकी।
हम सब भी मूड में आ गये थे और जलाभिषेक का आनंद लेने लगे क्योंकि बीच पानी में हमारे पास कोई विकल्प ही नहीं था। सारे साथी तर बतर हो गये किसी के नोट भीगे तो किसी का मोबाइल। बहुत मजा आया। बोट के ठहरने के स्थान से सारे पर्यटक भाग चुके थे पानी से बचने के लिये। गीले कपड़ों में ही रिसोर्ट के भूतल में स्थित कॉन्फ्रेस हाल में हमारे भोजन की व्यवस्था थी।
कुछ साथी अपने ओरिजनल स्वरूप चड्डी-बनियान में आ गये थे। अपने राम तो शरीर की गर्मी से ही कपड़ों को सुखाने में विश्वास रखते हैं। खाने के पहले सत्संग हुआ कुछ मित्रों ने गले तर किये। खाना पूरी तरह से शाकाहारी (दीवानी) था झन्नाट दाल, आलू गोभी टमाटर की सूखी सब्जी, रोटी, चावल। मजा आ गया, पर्यटन विकास निगम की सभी जगह खाना लजीज ही मिलता है, कारण खाना बनाने वाले कुक (खानसामा) बहुत प्रशिक्षित होते हैं।
चोरल का रिसोर्ट बहुत सुंदर और रमणीक जगह पर बना है, यहाँ 11 वातानुकूलित कमरे भी है यहाँ कार्यरत सारा स्टॉफ शालीन और सौम्य है सिर्फ कमी है स्विमिंग पूल की, यदि वह बन जाय तो यहाँ पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हो सकती है और इसमें चार चाँद लग सकते हैं। मित्रों ने भोजन का भरपूर आनंद लिया घड़ी की सूइयां शाम के साढ़े पाँच बजा रही थी, हमें घर भी लौटना था।
मित्र राजेन्द्र पंवार से बिदा ली नवंबर-दिसंबर में वापस लौटकर आने के वायदे के साथ। वैसे चोरल डेम जाने का उचित समय जुलाई से फरवरी है। इंदौर लौटते समय मालवा के प्रवेश द्वार जामगेट भी गये जहाँ पर्यटकों का हूजूम लगा हुआ था। फोटोग्राफी का शौक पूरा करके लौट आये इंदौर, साथियों से फिर मुलाकात का बोलकर अपने राम बस में सवार होकर उज्जैन लौट आये एक और दिन को छोटे से जीवन में ऐतिहासिक बनाकर।