पंजाब में नगरीय निकायों के चुनाव परिणाम अप्रत्याशित ना होकर अपेक्षित ही माने जाने चाहिये। देश भर में कृषि बिलों के विरोध में जारी किसान आंदोलन और उसमें भी पंजाब का किसान जब इस आंदोलन की अगुवाई कर रहा हो तो इस बीच हुए चुनावों का यह परिणाम आना तय ही दिखायी दे रहा था।
हाँ इतना जरूर हुआ है कि जिस आंदोलन को सरकार कुछ किसानों का और बिचौलियों का बता रही थी वह सफेद झूठ निकला। निकायों के चुनाव परिणामों ने यह बता दिया है कि मोदी सरकार के इन कृषि कानूनों को किसानों सहित वीरों की धरती पंजाब की पूरी जनता ने नकार कर यह संदेश दे दिया है कि यह चिंगारी पूरे देश में ज्वाला का भी रूप ले सकती है।
14 फरवरी को 117 स्थानीय निकाय के चुनावों में 109 नगर पालिका परिषद और नगर पंचायत के 1815 वार्डों, 8 नगर निगमों के 350 वार्डों के लिये 70 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था। 2165 सीटों के लिये कुल 9222 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमायी थी। बिल्ली के भाग्य से छींका फूटने वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए काँग्रेस ने नगर पालिका के 1815 वार्डों में से 1199 पर और नगर निगम के 350 वार्डों में से 281 सीटों पर अपनी जीत का परचम फहरा दिया। कभी सत्ता में रही शिरोमणी अकाली दल को 289-33, आम आदमी पार्टी को 57.09 तथा भाजपा को मात्र 38-20 सीटों पर ही विजय प्राप्त हो सकी।
काँग्रेस ने बठिंडा, होशियारपुर, कपूरथला, आबोहा पठान कोठ, बटाला नगर निगमों में अपना कब्जा जमा लिया है आठ नगर निगमों में से 7 पर काँग्रेस और आठवें नगर निगम में सबसे बड़े दल पर रहने का परिणाम प्राप्त किया। भाजपा के हाथ से गुरुदास, पठानकोठ, मालवा, दो आबा क्षेत्र निकल गये। 2015 की तुलना में यह चुनाव परिणाम भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणी अकाली दल के लिये नुकसानदेह साबित हुए। आगामी वर्ष 2022 की शुरुआत में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनावों के मद्देनजर स्थानीय निकाय के चुनाव परिणाम भाजपा के लिये खतरे की घंटी साबित हो गये हैं। भाजपा को परेशान और काँग्रेस को सुकून देने वाले इन परिणामों की हवा बता रही है कि पूरा पंजाब इस समय गुस्से में है।
आने वाले दिनों में अन्य राज्यों में होने जा रहे विधानसभा और स्थानीय चुनावों में इन परिणामों का असर पडऩा तय है।
कुल 2175 वार्डों के चुनाव में काँग्रेस के 2037, शिरोमणी अकाली दल के 1569, आम आदमी पार्टी के 1606, भाजपा के 1003 और 2832 निर्दलियों ने अपना भाग्य आजमाया था। पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश के किसान इन परिणामों को श्राप बता रहे हैं। चुनाव परिणामों से निश्चित तौर से कृषि कानूनों के विरुद्ध किसानों के चल रहे आंदोलन को ऊर्जा मिलेगी साथ ही देश के अन्य प्रदेशों में इसके विस्तार की संभावना बढ़ेगी।