अर्जुन सिंह चंदेल
वाह रे भोलेनाथ! सावन की पहली जोरदार बारिश के बाद मेरे स्मार्ट शहर की हुयी दुर्दशा की व्यथा पर तुझसे बात करने का मन हो गया। प्रभु, सुना है किसी शहर को स्मार्ट कहने के लिये उस शहर में भीड़भाड़ कम होना चाहिये, वायु प्रदूषण कम, नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित होना चाहिये, आपसी संवाद और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने जैसे कार्यों की पूर्णता होना चाहिये।
और हाँ यह स्मार्ट सिटीज मिशन भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक-निजी भागीदारी का उपयोग करके शहरों के लोगों के जीवन स्तर बेहतर बनाने के लिये एक पहल है। 25 जून 2015 को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने इसकी शुरुआत की थी। केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय के अधीन प्रत्येक राज्य में एक विशेष प्रयोजन वाहन (एस.पी.वी.) बनाया गया है, जिसका नेतृत्व मुख्य कार्यपालन अधिकारी करते हैं।
स्मार्ट सिटी मिशन को सफल बनाने के लिये 7 लाख 20 हजार करोड़ रुपये दिये गये हैं (जो हर भारतवासी के गाढ़े खून-पसीने की कमायी है)। पाँच चरणों में देश भर के 100 शहरों का चयन किया गया था। हे भोले भंडारी तेरी कृपा दृष्टि से मेरी उज्जैयिनी का भी इन 100 शहरों में चयन हो गया। अवंतिकावासी धन्य हो गये फूले नहीं समाये। 2 नवंबर 2016 को उज्जैन स्मार्ट सिटी लिमिटेड रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनीज ग्वालियर में पंजीकृत भी हो गयी। नागरिकों के सपनों को पंख लग गये कि अब ‘हमारा उज्जैन स्मार्ट’ हो जायेगा।
अब हम जानते हैं कि स्मार्ट सिटी में होता क्या-क्या है? पर्याप्त जलापूर्ति, सुनिश्चित विद्युत आपूर्ति, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सहित सफाई, सार्वजनिक परिवहन, गरीबों के लिये किफायती आवास, आईटी कनेक्टिविटी और डिजिटलाइजेशन, ई-गवर्नेस और नागरिक भागीदारी, सुस्थिर पर्यावरण, स्वास्थ्य और शिक्षा।
प्रभु! होना तो यह सब था परंतु एक होशियार और भले अधिकारी ने स्मार्ट सिटी मिशन में एम.आर. आई.डी.ए. (महाकाल रूद्रसागर, एकीकृत, विकास कार्य) जिसे ‘मृदा’ नाम दे दिया उसे शामिल करवा लिया। बस फिर क्या था उज्जैन पर धन की वर्षा होने लगी और भोलेनाथ आपका आंगन (महाकाल लोक) तो चकाचक हो गया, साथ ही स्मार्ट सिटी मिशन में पदस्थ होने वाले अधिकारियों की सात पीढिय़ां भी तर गयी।
ऐतिहाासिक कोठी रोड पर वैभवशाली भवन में स्मार्ट सिटी कार्यालय की चारदीवारी के बीच में ही फैसले हो गये। राजनैतिक चेतना शून्य यह शहर अधिकारियों की चारागाह बन गया। रुपयों का खूब खेला हुआ। यहाँ के बाशिंदों की राय लिये बिना ही अफसरों ने पैसों में आग लगा दी। कंबल ओढक़र घी पीने वाले अधिकारियों ने सीधे भोपाल श्यामला हिल्स से संपर्क होने के कारण यहाँ के जन प्रतिनिधियों को तवज्जों ही नहीं दी।
प्रभु तेरी कृपा भी उन अधिकारियों के पूर्वजन्मों में किये गये पुण्य कार्यों के कारण बरस रही थी सो देश के प्रधानमंत्री के हाथों महाकाल लोक का लोकर्पण करवाकर सारे पाप धुलवा लिये। मामला चूँकि 140 करोड़ देश के पंत प्रधान से जुड़ गया था इस कारण अधिकारियों के पाप को दबाना अब राज्य शासन के कत्र्तव्यों में शामिल हो गया था, फिर वह मामला चाहे मूर्तियों के उडऩे का हो या पार्किंग शेड में मटेरियल बदलने का। अब तो सारे खून माफ ही होना था क्योंकि लोकार्पण जो प्रधानमंत्री ने किया था।
(शेष व्यथा कल)