केरल यात्रा वृत्तांत-2 : सहनशीलता, सहयोग, धार्मिक सजावट के लिये जानी जाती है केरल की भूमि

केरल यात्रा वृत्तांत

अर्जुन सिंह चंदेल

हैदराबाद से दूसरा एयरक्राफ्ट बदलकर हम लगभग 11:30 बजे केरल की धरती पर उतर गये। ‘केरल’ का नाम ‘केरा’ से पड़ा, केरा का मतलब नारियल का पेड़ होता है, हमारी पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने जब इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया तब उन्हें अपने किये पर बहुत पछतावा हुआ और वह तपस्या करने पहाड़ पर चले गये। भगवान परशुराम जी ने अपना ‘परशु’ फरसा भी समुद्र की ओर फेंक दिया। ‘परशु’ ने जैसे ही समुद्र में प्रवेश किया तभी समुद्र के अंदर से परशु के आकार ही भूमि का टुकड़ा बाहर निकला वही धरती का टुकड़ा केरल कहलाया। केरल का एक और शाब्दिक अर्थ होता है जिसे समुद्र और पर्वत का संगम भी कहा जाता है।

3 करोड़ 60 लाख जनसंख्या वाले केरल को भारत का सबसे ज्यादा साक्षर प्रदेश माना जाता है। यहाँ की साक्षरता दर 94 प्रतिशत है इसी कारण यहाँ भ्रूण हत्या जैसे पाप नहीं होते हैं। इस वजह से 1000 पुरुषों पर 1058 महिलाएं हैं। खूबसूरत प्रदेश केरल को भगवान का देश भी कहा जाता है। केरल की कुल आबादी में 54.73 प्रतिशत हिंदु, 26.56 प्रतिशत मुस्लिम, 18.38 प्रतिशत ईसाई और 0.33 प्रतिशत अन्य धर्मों के धर्मावलम्बी है।

विश्व के सबसे बड़े तीर्थ स्थलों में से एक सबरिमलय मंदिर यहीं पर है, भगवान अय्यप्पन को समर्पित इस मंदिर में प्रतिवर्ष 4 से 5 करोड़ श्रद्धालु भगवान अय्यप्पन के दर्शनों को आते हैं। क्षत्रियों के रूप में यहाँ की जातियों को नायर, नैयर, मल्याला के रूप में जाना जाता है। जिस केरल की धरती पर हम कदम रखने वाले थे वह केरल सहनशीलता, सहयोग, धार्मिक सजावट के लिये जाना जाता है। पूरे हिंदुस्तान में केरल ही एकमात्र ऐसा प्रदेश है जहाँ ओणम, क्रिसमस, रमजान को सभी समुदाय के लोग मिलकर मनाते हैं।

ऐसे पवित्र प्रदेश की ‘रज’ को हमने प्रणाम किया। भोपाल से आने वाले मित्र की फ्लाइट एक घंटे लेट हो गयी थी इसलिये हमने एयरपोर्ट पर ही इंतजार करना उचित समझा क्योंकि केरल में मानसून के मौसम में भी एयरपोर्ट के बाहर का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस था अंदर वातानुकूलित होने के कारण आराम मिल रहा था।

1 बजे तक भी भोपाल से आने वाले साथी की फ्लाइट नहीं आयी थी हम लोग बाहर निकले जहाँ केसरी की ओर से एक स्मार्ट नवयुवक केसरी की टीशर्ट पहने और हाथ में केसरी का झंडा लिये हमारा इंतजार कर रहा था। हालाँकि चलायमान फोन के माध्यम से वह निरंतर हम सभी के संपर्क में था।

संकल्प नाम के उस ग्रुप लीडर ने गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया 6 में से 5 लोग हम आ चुके थे 2 लोग बैंगलोर से 2 पूना से और 1 लडक़ी औरंगाबाद से भी आयी हुयी थी। संकल्प ने हमें बताया कि कुल 11 लोगों का ग्रुप है। समय डेढ़ बजे का हो चला था पेट में चूहे कूद रहे थे। हमारे भारत के गरीब एयरवेज वालों ने पानी के अलावा न चाय का पूछा और ना ही नाश्ते का। भोपाल से आने वाले साथी को आने में देर थी अत: हम 10 लोग और संकल्प ग्रुप लीडर के साथ हम एयरपोर्ट के नजदीक कोचिन के प्रसिद्ध सरवण रेस्टोरेंट पहुँच गये जहाँ हमने केरल के पारम्परिक भोजन का आनंद लिया। रेस्टोरेंट संचालक ने हमारे लिये चपाती की विशेष व्यवस्था की थी।

भोजन के उपरांत हमें तत्काल मुन्नार के लिये प्रस्थान करना था जो कोचिन से 127 किलोमीटर दूर था और रास्ता पहाड़ी था। भोपाल से आने वाले साथी का खाना पैक करवा कर हम लोग 14 सीटर वातानुकूलित टेम्पो टे्रवल्स पर सवार होकर एयरपोर्ट से भोपाल से आ चुके साथी को लेकर निकल पड़े मुन्नार की ओर…।
शेष कल

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