अर्जुन सिंह चंदेल
आज सुबह की शिफ्ट में हम लोगों को होटल से 14 किलोमीटर दूर मट्टुपेट्टी बाँध देखने जाना था और बाँध से 1 किलोमीटर दूर पहाडिय़ों के बीच, चाय बागानों और पहाडिय़ों, जंगलों से घिरी खूबसूरत झील में मुन्नार जिला पर्यटन संवर्धन परिषद द्वारा संचालित की जाने वाली स्पीड बोर्ड का भी आनंद लेना था। निकल पड़े हम सब जय गजानंद का उद्घोष करके।
सचमुच आँखों को सकून देने वाली हरियाली का अंतहीन सिलसिला था। जैसे ही मुन्नार से थोड़ी ही दूर निकले होंगे सडक़ के दोनों और चाय-बागानों की श्रृंखला चालू हो गयी। हम सब की इच्छा थी चाय बागानों के बीच जाकर कुछ खूबसूरत दृश्यों को अपने चलायमान फोनों में कैद करने की, ग्रुप लीडर संकल्प ने दल के सदस्यों की इच्छा पूरी की।
मुन्नार से लगभग 7 किलोमीटर दूर टे्रवलर रोक दी गयी। फोटो प्रेमियों का सेशन चालू हो गया विभिन्न मुद्राओं में छाया चित्रों को अपने-अपने चलायमान फोनों में कैद किया। दल के सभी साथियों का भी सामूहिक फोटो लिया। अपने राम तो और कुछ खोज रहे थे वहाँ कार्यरत महिला श्रमिकों से उनके बारे में जानने की इच्छा हो रही थी। सौभाग्य से वहाँ चाय बागानों में से पत्ती तोडऩे का कार्य कर रही एक श्रमिक महिला हिंदी भाषी निकल आयी।
हिंदी भाषियों को देखकर उसके चेहरे पर भी प्रसन्नता का भाव स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था। सारे लोग फोटो खींचने-खिंचवाने में व्यस्त थे हम पत्रकारिता धर्म निभा रहे थे झारखंड की रहने वाली मनीबाई बहुत स्पष्ट हिंदी बोल और समझ रही थी। उसने हमें बताया कि वह झारखंड से केरल चाय-बगानों में कार्य करने आयी है उसके और भी परिजन आये हैं। सुबह 8 से शाम 5 बजे तक काम के एवज में 500/- रुपये प्रतिदिन पारिश्रमिक मिलता है।
बागान के मालिक द्वारा नजदीक ही श्रमिकों के लिये आवास की व्यवस्था की गयी है। बागान में एक सुपरवायजर कार्य करने वाली श्रमिक महिलाओं पर निगरानी रखता है। बीच में एक घंट भोजनावकाश रहता है। हमने उससे कार्य कर रही सारी महिला श्रमिकों के साथ फोटो खिंचवाने की इच्छा व्यक्त की तो उसने मना कर दिया बताया कि सुपरवायजर इसकी इजाजत नहीं देगा क्योंकि इससे कार्य प्रभावित होगा। खैर, हमने उसके साथ अपनी फोटो खिंचवायी और आगे निकल पड़े मट्टुपेट्टी झील की ओर।
रास्ते में संकल्प ने बताया कि केरल के अधिकांश चाय बागान ‘टाटा’ के पास है और ‘टाटा’ चाय बगानों से कमाया अधिकांश धन केरलवासियों पर खर्च करते हैं। मुनाफे के धन से स्कूल, अस्पताल, सडक़ों का निर्माण करवाते हैं। हजारों की संख्या में इन चाय बागानों से लोगों को रोजगार मिला है इस कारण वहाँ के लोग ‘टाटा’ को भगवान का दूत मानते हैं।
झील आ चुकी थी संकल्प जी ने स्पीड बोट का टिकट ले लिया था एक बोट में 3-3 लोगों को ही सवार होना था। लाईफ जैकेट पहना दिये गये एक बोट में तीन इंदौरी मित्र, दूसरी में हम दो उज्जैनी और एक भोपाली बाकी दो बोटों में दल के बचे हुए साथी सवार हो गये विशालकाय झील में स्पीड बोट के चालकों ने जबरदस्त तरीके से काफी स्पीड से बोट चलायी लहराते हुए, काफी दाँये झुकायी, कभी बाँये मजा आ गया। विशाल मट्टेपेट्टी झील में लगभग 45 मिनट तक बोट का आनंद लिया।
स्पीड बोट चालक हमारे आनंद को भाँप चुके थे उन्होंने हमें ईशारा किया कि यदि 200/- रुपये अतिरिक्त दोगे तो 15 मिनट अतिरिक्त। भारत के सारे शासकीय कार्यालयों की तरफ गाँधीजी की आत्मा यहाँ भी हमारी मदद को तैयार थी। दो सौ का नोट उसकी जेब में फंसाते ही स्पीड बोट ने स्पीड पकड़ ली फिर तो बोट को झील के जिस कोने में नहीं जाना था वहाँ भी गयी।
भरपूर आनंद लिया, इंदौरी-मित्रों ने बहुत धमाल किया बोट में। 60 मिनट के अविस्मरणीय मौज-मस्ती के बाद किनारे आ गये। ऊपर आकर मिर्ची के भजिये खाये जो बकवास थे और बैठ गये गाड़ी में अगले पड़ाव की ओर…।
शेष कल