अर्जुन के बाण : अफसर मदमस्त, अव्यवस्थाओं से जनता दु:खी, हालात बदलिये मोहन जी..

श्वान

अर्जुन सिंह चंदेल

बाबा महाकाल की नगरी मेरी उज्जैयिनी पर शायद किसी की नजर लग गयी है? महाकाल लोक में स्थापित सप्तऋषियों की मूर्तियों के धराशायी होने के बाद लगातार अपशकुनी घटनाएं हो रही है। होली के दौरान ही मंदिर के गर्भगृह में हुए अग्निकांड में प्रभु के एक सेवक की जान चली गयी। बीते सप्ताह ही मंदिर के समीप दीवार गिरने से दो निरीह नागरिक काल कवलित हो गये।

4 अक्टूबर को सेंटपाल स्कूल में अध्ययनरत कक्षा दूसरी की छात्रा बोहरा परिवार के घर को रोशन करने वाली बिटिया नगर सरकार के कर्ताधर्ता जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की अकर्मण्यता के कारण हादसे का शिकार हो गयी है। लगातार हो रही असामायिक मौतों के कारण उज्जैनवासी दु:खी और आक्रोशित हैं।

मुख्यमंत्री का गृह नगर होने के बावजूद शहर में फैली अव्यवस्थाएं तमाम सवाल उठा रही हैं। बेतरतीब यातायात, निरंकुश वाहन चालक, जाम होते चौराहे, असहाय यातायात पुलिस, सडक़ों पर शराबियों का जमघट यह सब कुछ उज्जैन में पदस्थ प्रशासनिक अधिकारियों की योग्यता और कार्य क्षमता दर्शाने के लिये पर्याप्त है।

यातायात पुलिस के अधिकारियों की कारगुजारी की एक छोटी सी बानगी देखिये नृसिंह घाट के नजदीक बने पुल पर वाहन पार्किंग नहीं है पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को आप 1500 रुपये प्रतिमाह दीजिये और पूरे माह अपना वाहन खड़ा कीजिये, कोई आपको नहीं बोलेगा। प्रतिमाह डेढ़ से दो लाख की अवैध वसूली।

बात करें नगर निगम की तो वहाँ का तो आलम ही ऐसा है कि न भूतो न भविष्यति। अधिकारियों को चरण वंदना-चाटुकारिता से ही फुर्सत नहीं है। सुबह से शाम तक नक्का-दुआ के खेल में लगकर अपने कत्र्तव्यों की इतिश्री कर रहे हैं। प्रभावहीन नगर सरकार के नुमाइन्दे (मेयर-इन-कौंसिल के सदस्य) और महापौर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और जैसे-तैसे अपनी इज्जत बचाने का यत्न कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री जी की मूँछ के बाल अधिकारी उनकी सुनते ही नहीं है। सुनना न सुनना तो दूर की बात है उनके मोबाइल फोन तक नहीं उठाते। उज्जैन नगर निगम के इतिहास में जन प्रतिनिधियों की ऐसी दुर्दशा कभी नहीं देखी गयी।

इस वर्ष जनवरी से लेकर अभी तक दर्जनों लोग आवारा कुत्तों का शिकार हुए हैं जिनमें कुछ की मौत भी हो गयी है। आवारा पशुओं से सारा शहर परेशान है यहाँ तक कि हमारी अद्भुत स्मार्ट सिटी के कोठी रोड स्थित कार्यालय के सामने की सडक़ जिस पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के बरखुरदारों और न्याय पालिका के न्यायाधिपतियों के बंगले हैं, उस मार्ग पर सुबह-सुबह का दृश्य देखने लायक रहता है, ऐसा लगता है मथुरा-वृंदावन का सारा गौ-धन महाकाल की नगरी में ही आ गया है ‘मोहन की बाँसुरी की तान सुनकर’। शर्म आना चाहिये प्रशासन में बैठे कर्मचारी-अधिकारियों को। यहाँ का हर अधिकारी मदमस्त है ‘सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का’ को चरितार्थ कर रहा है।

हर जवाबदार अधिकारी मुख्यमंत्री जी का खास है। कोई नंदू भैय्या का कोई नारायण भाई का, कोई दीदी का तो कोई बबलू भैय्या का। नागरिकों की परवाह कौन करे? निरीह मीडिया वाले चीख-चीख कर समरयाए उठाते हैं पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है। खैर, यह बुरा वक्त भी निकल जायेगा परंतु शहर विकास के नित नये आयाम खोज रहे लाडले मुख्यमंत्री माननीय मोहन यादव जी की छवि को जरूर नुकसान हो रहा है। समय रहते उन्हें इन बातों पर ध्यान देना ही चाहिये।
जय महाकाल

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