मजबूत जेसीबी की बजाए खिलौनों जैसी बाबकेट ले ली
उज्जैन। ऐतिहासिक आर्थिक संकट से जूझ रही नगर पालिक निगम उज्जैन में कर्मचारियों के वेतन के लाले पड़ रहे हैं। पिछले दो तीन माहों से निगम आयुक्त निगम की बैंकों में जमा फिक्स डिपाजिट (एफ.डी.) तुड़वाकर कर्मचारियों की वेतन व्यवस्था कर रहे हैं।
निगम आयुक्त द्वारा लागू आर्थिक आपातकाल के कारण आऊटसोर्स कर्मचारियों की संख्या कम की गयी है। निगम द्वारा शहर में किये जाने वाले निर्माण कार्य बंद जैसे ही हैं। अन्य खर्चों में कटौती की गयी है। परंतु निगम के वर्कशाप (कार्यशाला) में चल रहे नक्का दुवा के खेल को देखकर ऐसा नहीं लगता है कि नगर निगम में किसी प्रकार का आर्थिक संकट है या फिर वर्कशाप निगम आयुक्त के अधीन नहीं है।
हाल ही में वर्कशाप मद में बचे रुपयों को ठिकाने लगाने के लिये वर्कशाप में कार्यरत गैंग ने एक करोड़ छत्तीस लाख की लागत के 4 बाबकेट वाहन खरीद लिये हैं। खिलौने की तरह दिखने वाले यह वाहन किस उद्देश्य से खरीदे गये हैं यह समझ से परे है। इ
न बाबकेट से कहीं अधित मजबूत जेसीबी मशीन है। जिसकी कीमत मात्र 28 लाख है और इन खिलौनों की कीमत 34 लाख है। दूसरी ओर 40 एच.पी. के 14 सोनालिका ट्रैक्टर और 45 एच.पी. के सात फार्मटेक की भी खरीदी गयी है। वर्तमान में वर्कशाप के सर्वेसर्वा मेकेनिकल उपयंत्री विजय मुन्नालाल गोयल के शातिर दिमाग ने यह पूरी खरीदी की योजना को अंजाम दिया हैं। चूंकि 31 मार्च को यदि वर्कशाप मद में रुपये बच जाते तो वह लेप्स हो जाते। इस कारण मद में बची हुई रकम को रस्ते लगाने के लिये यह खरीदी की गयी है।
विजय गोयल ने 5 टै्रक्टर ट्राली भी खरीदी है। निविदा शर्तों के अनुसार इनका वजन 1900 से 2000 किलो वजन होना चाहिए, परन्तु खरीदी गयी ट्रैक्टर ट्रालियां मात्र 900 से 1000 किलो की हैं।
ईमानदार निगम आयुक्त की नाक के नीचे चल रहे इस गौरखधंधे में अपर आयुक्त, सहायक आयुक्त, कार्यपालन यंत्री, सहायक यंत्री और वाहन प्रभारी भी शामिल है। आश्चर्य वाली बात यह है कि आर्थिक संकट से जूझ रहे उज्जैन नगर निगम में अनावश्यक वाहनों की खरीदी क्या किसी राजनैतिक दबाव में की गयी या कमीशनबाजी के खेल में यह यक्ष प्रश्न उज्जैनवासियों के जहन में आना लाजमी है।