धार, अग्निपथ। अब इसे निम्न तबके के लिये दुर्भाग्य ही समझें क्योंकि उनके समाज में वैक्सीन को केम्प में बुलाया नहीं जा सका। और वे सभी मुंह ताकते रह गए। जबकि वैक्सीन लगवाने की तो मारा मारी चल रही है। फिर इस तरह के समाजवादी केम्पों की क्या आवश्यकता हो गई।
क्या समाज के लोग गली मोहल्लों में लगे केम्प में जाना अपनी तौहिन समझते हैं या इस तरह के समाजवादी केम्पों से कुछ लोग यह बताना चाहते हैं कि शहर में हमारा रसूख सबसे ज्यादा है। जबकि अभी समय है एक समाज का दूसरे के लिये समरसता दिखाना। निम्न तबके के लिये सेहतमंद आयोजन करना। जिससे उस समाज के लोगों को दूसरे लोग हमेशा याद रखें। पर नहीं। शायद यहां भी राजनीतिक और आपसी प्रतिस्पर्धा ने जन्म ले लिया है। जो अपनी कॉलर ऊंची रखने के लिये इस प्रकार से वैक्सीन को परोस रहे हैं।
बदकीस्मती हमारी यह भी है कि ऐसे संजीदा माहौल में जिले के प्रशासकीय अधिकारी और वरिष्ठजन ऐसी अनुमतियां दे कैसे देते हैं जो निम्न तबके के लिये समरसता नहीं नीचा दिखाने का कार्य करे। हालांकि ऐसे माहौल में कुछ एक ऐसे संगठन भी हैं जो अपनी सेवा से शहर में नाम भी कमा रहे है। क्योंकि उन संगठनों का उद्देश्य राजनीति नहीं केवल सेवा ही है।
अब सवाल यह उठता है कि शासकीय मशीनरी क्या इतनी कमजोर हो चुकी है कि उन्हें इस तरह से अभियान को प्रचारित और प्रसारित करना पड़ेगा। क्या टीकाकरण के लिये लोग प्रेरित नहीं हो रहे हैं। क्या आम जनता में वैक्सीन लगाने को लेकर कोई भ्रम है। जी नहीं। तो फिर इस तरह के समाजवादी आयोजनों पर तुरंत ही रोक लगनी चाहिये जिससे समाज का ऐसा तबका जो इसे केम्प में आयोजित नहीं कर सकता उनमें हीन भावना जन्म न ले।