कानूनी डंडा राज की नहीं जन जागृति जरूरी जिले में

आजादी के बाद से ही आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले आज भी स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक रूढ़ीवादिता को लेकर अगड़ा नहीं हो सका। यह हम नहीं अपितु सरकारी आंकड़े ही उजागर करते हंै। इसका जिम्मेदार है तो सरकार और उसका सरकारी तंत्र। वैश्विक महामारी ने जिले के ग्रामीण अंचलों में भी पैर पसार लिए। सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं रामभरोसे होने, चिकित्सकों का अस्पतालों से ज्यादा घरों पर प्रेक्टिस करना तथा शिक्षा के साथ ही स्वास्थ्य के प्रति जनजागरूकता नहीं ला पाना ही सबसे बड़ा कारण है।

आजादी के बाद से जिले को स्वस्थ्य, शिक्षा और सामाजिक जनजागरूकता के लिए करोड़ों नहीं वरन अरबों रुपये इस जिले को मिले होंगे। परन्तु जिले की शिक्षा, स्वास्थ्य और सामजिक उत्थान हेतु आयी राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती रही। फलत: जिला आज भी स्वास्थ्य और शिक्षा में पिछड़ा हुआ है। आज भी सर्पदंश की घटना होने पर बजाय इलाज करवाने के ग्रामीण ओझाओं के पास झाड़ फूंक करवाने, तांतिया बंधवाने पहुंचते हंै। जब इसमें सफलता नहीं मिलती तो अंत समय में उपचार हेतु सरकारी दवाखानों के दरवाजे पर दस्तक देते हैं। ऐसे में समय पर उपचार नहीं होने से कई ग्रामीण जान तक गंवाते हंै।

वर्तमान वैश्विक महामारी के दौर में भी यही कुछ नजारे खूब देखने को मिले। निमोनिया, टायफायड के नाम कुछेक ओझा टाइप लोग जड़ी बूटियों की मालाएं बेचते हंै। महामारी से पूर्व यह मालाएं मात्र 10 रुपये में बिकती थी। वह 50 से 100 रुपये में बिकने लगी। यही नहीं पहले एक दो लोग ही मालाएं बेचते नजर आते थे, किन्तु कोरोना काल में जिले के हर नगर, कस्बों में इन लोगों की बाढ़ सी आ गयी। तब भी प्रशासन आंखे मूंदे रहा।

जिले में स्वास्थ्य के प्रति आज भी जनजागृति की कमी है। यह सोशल मीडिया से लेकर आम चर्चा के सुना जा रहा कि ग्रामीण अपना स्वास्थ्य चैकिंग नहीं करवा रहे तो वैक्सीन लगवाने से भी कतरा रहे। ऐसे में सरकारी मुलाजिम जिन्हें कानूनी अधिकार मिले हैं वो बजाय अपना कानूनी डंडा चलाने के ग्रामीणों जनजागरूकता पैदा करे तो संभव है जिले में शिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता जागेगी। किन्तु डण्डा राज चलाने वाले अपनी कानूनी दादागिरी दिखाने से बाज नहीं आ रहे।

मामला जिले की थांदला तहसील के परवलिया के पास ग्राम रूपगढ़ का है। जहां शासकीय उचित मूल्य की दुकान से आज राशन वितरित किया जा रहा था। कोरोना कफ्र्यू के चलते अभी तक घरों में कैद होकर रखा सूखा फाके मार रहे थे। अचानक राशन वितरण की खबर सुन दुकान पर दौड़ पड़े। इधर अनुभाग की अनुविभागीय अधिकारी भी क्षेत्र भ्रमण के दौरान ग्राम रूपगढ़ दल बल सहित पहुंच गयी। राशन दुकान पर भीड़ देख मेडम ने फरमान जारी कर दिया कि जो भी राशन लेने आ रहा उनकी जांच करवा कर ही खाद्यान्न दिया जावे। इस बात की ग्रामीणों में अंदर ही अंदर विरोध की ज्वाला भडक़ने लगी।

तभी एक बुजुर्ग ने हिम्मत कर यहां जांच करवाने से मना कर दिया। बस फिर क्या था मेडम को बुजुर्ग ग्रामीण की बात नागवार गुजरी और तुरन्त ग्रामीण पर एफआईआर करवाने के आदेश जारी कर दिए। हालांकि ग्रामीण जो कि अनाज लेने आया था ने मरता क्या न करता तर्ज पर सार्वजनिक रूप से माफी भी मांग ली। किन्तु मातहत पटवारी जो मेडम की चाकरी में लगा था ने पुलिस की सहायता से बुजुर्ग ग्रामीण को वाहन में बैठा दिया। घटना की जानकारी सोशल मीडिया से उजागर हुई तो प्रशासनिक अमले की इस कार्रवाई की निंदा होने लगी।

अच्छा तो यह होता कि प्रशासनिक अमला अनाज लेने आये ग्रामीणों को कोरोना के सम्बंध में जानकारी देते, इससे बचाव के उपाय के साथ ही वैक्सीनेशन करवाने की समझाइश देते तो ग्रामीणों को भी कुछ समझ आती। जिला सामाजिक रूढ़ीवादी परमपराओं से आज भी जकड़ा हुआ है। प्रशासनिक तंत्र को चाहिए कि ऐसे विकट समय में बजाय अपना कानूनी डंडा राज चलाने के जनजागृति लाने के कार्य करें जिससे ग्रामीण जागरूक हो और स्वास्थ्य परीक्षण के साथ वैक्सीनेशन में भी आगे आए।

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