जब बागड़ ही खेत खाने लग जाय तो फिर उस खेत का भगवान ही मालिक है, यही हाल मध्यप्रदेश के आबकारी विभाग का है। प्रदेश को लगभग 13 हजार करोड़ का राजस्व देने वाला यह विभाग शराब माफियाओं का जर खरीद गुलाम है। प्रदेश में अवैध शराब में सक्रिय माफिया 6-7 हजार करोड़ का दो नंबर का कारोबार भी करते हैं, जिसमें राजनेताओं, पुलिस और आबकारी विभाग का हिस्सा शामिल होता है।
मध्यप्रदेश का राज्य आबकारी विभाग, प्रदेश सरकार के वाणिज्यिक कर विभाग (सी.टी.डी.) का हिस्सा है, जिसका मुखिया प्रधान सचिव स्तर का अधिकारी होता है। आबकारी विभाग राज्य के शराब व्यापार के प्रशासन और निगरानी के लिये जिम्मेदार है, शराब बनाने, उसकी बिक्री, आयात, निर्यात परिवहन, मादक पदार्थों के सेवन और आबकारी राजस्व के संग्रह से सम्बन्धित कानून और निर्धारित नियम बनाने का कार्य करता है, शराब के प्रवेश कर और उसके संग्रह के अलावा अवैध शराब निर्माण, विक्रय और उत्पाद व मनोरंजन शुल्क की चोरी रोकने की जिम्मेदारी भी इसी की है।
आबकारी विभाग का मुख्यालय ग्वालियर में है और आबकारी आयुक्त इसका मुखिया होता है। ग्वालियर के बाद 7 संभागीय कार्यालय भी है जहां आबकारी उपायुक्त एवं सहायक आबकारी आयुक्त होते हैं।
इस समय कम से कम उज्जैन के आबकारी विभाग के अधिकारियों के लिये तो कोरोना का लॉकडाउन आपदा में अवसर बनकर आया है। जनता के गाढ़े खून पसीने की कमाई से मोटी मोटी तनख्वाह लेने वाले इस विभाग के अधिकारी, कर्मचारी शराब माफियाओं के साथ पुलिस की मदद से इस शहर की गली-गली, चौराहों-चौराहों इस पर अवैध शराब बिकवा रहे हैं।
उज्जैन में आबकारी विभाग के पास लगभग 50 लोगों का अमला है जिमसें 17 आरक्षक, 5 प्रधान आरक्षक, 8 उप निरीक्षक एवं अन्य है। शराब ठेकेदार खुद अवैध शराब का विक्रय अपराधियों के हाथों करवा रहे हैं। शराब की बंद दुकानों के तालों पर सील नहीं लगायी गयी है, पीछे दरवाजों से सब चालू है।
नीलगंगा की कलाली से जब्त शराब, माकडोन में चोरी, निनौरा की शराब दुकान से खुलेआम शराब का विक्रय किया जाना गोरखधंधे के प्रमाण हैं। थाना प्रभारियों और संबंधित थानों को साधकर अपराधी, ठेकेदार से शराब लाकर दो गुने दामों पर बेच रहे हैं।
मेकडावल की बोटल जो पहले 600 में मिलती थी वह 1500 में, रॉयल चैलेंज/रॉयल स्टेज 1000 की जगह 1800, सिग्नेचर 900 की जगह 2100, ब्लैण्डर प्राइड 1000 की 2000, आल सीजन 1100 की 1900, स्टेरलीन 1000 की जगह 2000 में एवं देशी शराब की बोतल 300 रुपये की थी वह ब्लैक में 600 रुपये में बेची जा रही है। कालाबाजारी के इस खेल में नेता, पुलिस, आबकारी विभाग और शराब माफिया शामिल हैं, जिसके कारण सुरा प्रेमियों को लगभग दुगनी कीमत चुकानी पड़ रही है।
मुरैना, रतलाम और हमारा शहर उज्जैन भी नकली शराब से हुई मौतों के ढेर को देख चुका है। मध्यप्रदेश सरकार की आमदनी का प्रमुख स्रोत होने के कारण शराब माफियाओं के संगठित गिरोह के सरगनाओं के गले तक कभी भी शासन-प्रशासन के हाथ नहीं पहुंचते। इसी को देखते हुए भविष्य में उज्जैन में एक और जहरीली शराब कांड होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।