कच्चे मकान हटाकर प्रशासन ने नाले को कराया अतिक्रमण मुक्त, रसूखदारों को क्यों दी छूट?

रामकुल्ला नाले पर अतिक्रमण को नजरअंदाज कर रहे हैं प्रशासन के अधिकारी।

झाबुआ, अग्निपथ। शहर के चैतन्य मार्ग पर (उदयपुरिया) क्षेत्र में कुछ लोगों द्वारा अवैध रूप से कच्चे मकान बनाकर किए अतिक्रमण को प्रशासन ने शुक्रवार को ढहा दिया। वहीं इस कार्रवाई को पक्षपातपूर्ण बताते हुए कुछ लोगों ने आक्रोश भी जताया और कुछ लोगों ने विरोध भी किया।

वहीं शहर के ही रामकूल्ला नाला के एक हिस्से में भी रसूखदारों के मकान अतिक्रमण की श्रेणी में आते हैं। क्या प्रशासन इन रसूखदारों के मकान को तोड़ पाएगा? यह विचारणीय हैं।

उदयपुरिया क्षेत्र में शुक्रवार को दोपहर प्रशासनिक अमला पहुंचा और यहां कुछ लोगों द्वारा नाले पर अवैध निर्माण कर बनाए कच्चे और पक्के मकान के नाले की जमीन के हिस्से का पूरा अतिक्रमण तोडक़र नाले की सफाई करवाई गई। वहीं इस दौरान कुछ लोगों ने आपत्ति ली और कहा कि पूरे शहर में स्थाई के साथ अस्थाई अतिक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है लेकिन प्रशासन और पुलिस केवल कागजी खानापूर्ति के लिए चुनिंदा स्थानों पर ही गरीबों के आशियाने के ऊपर बुलडोजर चलाकर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री कर रहा है।

जबकि शहर के रामकुल्ला नाले से सटे, इस कॉलोनी पर नजर डाली जाए तो यहां पर भी नाले के धड़ से ही कई पक्के अवैध निर्माण स्थाई रूप से नजर आ रहे हैं। इस तरह के नाले की धड़ से निर्माण को लेकर भी प्रशासन अतिक्रमण की श्रेणी मे बताकर कार्रवाई क्यों नहीं करता है? यह आमजनों ने में चर्चा का विषय बना हुआ है।

पूर्व में कांग्रेस शासन काल में भी इस रामकुल्ला नाले से सटे कॉलोनी में नाले के धड़ पर किए गए अवैध अतिक्रमण को लेकर नोटिस जारी किए गए थे और 24 घंटे के अंदर मकान खाली करने की बात भी कही गई थी। लेकिन उसके बाद कोई कार्रवाई नहीं है। विगत दिनों ही शहर के मारुति नगर में भी अतिक्रमण को लेकर अमला पहुंचा था और बिना कोई कार्यवाही के बैरंग लौटा था।

इस तरह शहर में जगह-जगह नाले के धड़ पर बसावटे बढ़ रही हैं लेकिन प्रशासन हर बार गरीब और निर्धन व्यक्तियों के बने अवैध कच्चे मकान को अतिक्रमण की श्रेणी में बताकर कार्रवाई करता है। वहीं दूसरी और रामकुल्ला नाले के धड़ से बनी हुई कॉलोनी आज भी प्रशासन को मुंह चिढ़ाते हुई नजर आ रही है।

यदि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के नियमों को ध्यान में रखा जाए, तो रामकुल्ले नाले के धड़ से बनी इस कॉलोनी को अतिक्रमण की श्रेणी में लाकर कार्रवाई की जा सकती है लेकिन प्रशासन आज भी रसूखदारों को छोडक़र सिर्फ अवैध कच्चे मकान अतिक्रमण की श्रेणी में बताकर कार्रवाई कर रहा है। आमजनों का कहना है कि प्रशासन बार-बार गरीबों पर ही अतिक्रमण की गाज गिराता है जबकि प्रभावशाली लोगों ने बड़े पैमाने पर एनजीटी के नियम विरुद्ध अवैध अतिक्रमण कर रखे हैं। उन पर क्यों कार्रवाई नहीं की जा रही है? क्यों बार-बार गरीबों को ही अतिक्रमण का निशाना बनाया जाता है?

शहर में अनेक नालों पर और राजवाड़ा से सटे बड़े तालाब के आसपास भी अनेक पक्के निर्माण अतिक्रमण की श्रेणी में है। शहर के बड़े तालाब के आसपास पक्के निर्माण इतने हो चुके हैं कि प्रशासन उन पर भी कार्रवाई करे तो कई रसूखदार के पक्के निर्माण पर बुलडोजर चलाना पड़ेगा।

पक्के निर्माण के कारण ही बड़े तालाब का अस्तित्व धीरे-धीरे सिकुड़ रहा है और उनके घरों का गंदा पानी भी संभवत: तालाब में जा रहा है लेकिन प्रशासन को वह नजर नहीं आ रहा है।

वनवासी कल्याण परिषद अध्यक्ष मनोज अरोरा ने आरोप लगाते हुए कहा कि प्रशासनिक अमला एकतरफा कार्रवाई कर रहा है शहर में अनेक नालों की धड़ से अवैध पक्के निर्माण आमजन को तो नजर आ रहे हैं लेकिन प्रशासनिक अमले को यह क्यों नजर नहीं आ रहे हैं? यह जांच का विषय है।

वहीं अरोरा का यह भी कहना है कि प्रशासन को जहां अतिक्रमण हटाना चाहिए वहां पर तो ध्यान है ही नहीं। अतिक्रमण के नाम पर प्रशासन हर बार गरीब वर्ग पर ही कार्रवाई करता है। शहर में बड़े पैमाने पर अवैध रूप से अतिक्रमणकारियों ने कब्जा कर रखा है उन्हें हटाना चाहिए। शहर को स्वच्छ व सुंदर रखना है तो अतिक्रमण को लेकर कार्रवाई की जाना आवश्यक है।

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