भंजगड़ी प्रथा पर लगे लगाम बालिका, महिला अपराध हो जायेंगे खत्म

लेखकः मनोज चतुर्वेदी, झाबुआ

पश्चिमी मध्य प्रदेश का आदिवासी बाहुल्य जिला झाबुआ अभी तक के ज्ञात इतिहास में सत्ता के घोड़े पर सवार होने वालों के लिए निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। जिला आजादी के बाद से राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर से अपनी-अपनी उपलब्धियों की प्रयोगशाला बना हुआ है। जिला आज भी सामाजिक कुरीतियों, स्वास्थ्य के प्रति बेरुख और शिक्षा के क्षेत्र में भी 15 वर्षो की पूर्ण सरकार में कुछ फीसदी भी आगे नहीं आ सका। जो आंकड़े सरकार के पास जिले की सावस्थ्य, शिक्षा और सामाजिक रूढिय़ों को लेकर पहुंचते हैं।

भोपाली अधिकारियों और मंत्रालयों तक उसका भौतिक परीक्षण न तो पूर्व सरकार ने किया और न अभी हो रहा। प्रदेश सरकार के मुखिया महिलाओं के भाई तो बेटियों के मामा हैं ने सोमवार को भोपाल के मिंटो हाल में महिला अपराधों को लेकर वर्चुअल कार्यशाला आयोजित कर प्रदेश के समस्त जिलों के पुलिस अधीक्षकों को महिला अपराध रोकने और कानूनी कार्रवाई के कड़े निर्देश दिए। ऐसे निर्देश पहले भी सैकड़ों बार जारी हो चुके। फर्क आदेश जारी होने और उन पर दौड़ाए जाने वाले कागजी घोड़ों में है।

आदिवासी बाहुल्य जिले में अब भी गन्धर्व विवाह और उसके बाद भांजगड़ी अंगद के पैर की तरह खड़ी है। जिले के थानों चौकियों के इर्द गिर्द या अब महिला अपराधों को रोकने के लिए जारी पूर्व निर्देशों के पालन में थाना,चौकियों से हट कर कुछ दूरी पर भांजगड़ी परमपरा आज भी जारी है। अच्छा होता भोपाल के मिंटो हाल में मुख्यमंत्री आदिवासी अंचलों की परमपराओं, रूढि़वादिताओं का सही आंकलन कर प्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों के लिये अलग निर्देश जारी करते। जिले में सरकारों और सरकारी अधिकारियों ने सिर्फ और सिर्फ अपनी रोटियां सेंकने का माध्यम बना रखा। इसी के चलते जिले सहित प्रदेश के समस्त आदिवासी जिले आजादी के 8 वें दशक में प्रवेश करने की दहलीज पर भी स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक रूढि़वादिता में आज भी वही है जहां से चला था।

हां इतना जरूर हुआ कि अब कानूनी डंडे और अधिकारियों के रवैये के आगे अंदर से कुछ और बाहर से कुछ और तर्ज पर अंतिम पायदान का आदमी भी सियासी जुबान बोलना सीख गया समय के साथ। जिला आज भी, अंधविश्वास, सामाजिक रूढि़वादिता, स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर दो कदम ही आगे बढ़ पाया है। आवश्यकता इस बात की है कि जिले से पहुंचने वाले सरकारी उपलब्धियों के सरकारी आंकड़ों आमजन के समक्ष भौतिक सत्यापन की अन्यथा जिला अब जो ओडिएफ हो चुका है की स्थिति का ही भौतिक सत्यापन सरकार कर ले तो महिला एवं बालिका अपराधों में निश्चित सुधार होगा। कुछ इसी तरह भंजगड़ी प्रथा पर विराम लगाने से।

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