अर्जुन सिंह चंदेल
गतांक से आगे
थिम्पू की रातें सचमुच बहुत सर्द होती है रात का न्यूनतम तापमान 1 डिग्री सेल्सियस रहता होगा, यदि होटल में रूम हीटर ना हो तो बैंड बज जाये। 7 दिवसीय भूटान यात्रा में थिम्पू में हमारी दूसरी और अंतिम रात थी, सुबह थिम्पू को अलविदा कहना था। सुबह निर्धारित समय पर ब्रेकफास्ट के लिये एकत्र हो गये थे आज पोहे की जगह उपमा था वह भी भारत की टक्कर का, साथ में छोले भटूरे, तरबूज, कार्न चार्य कॉफी दूध खूबसूरत नाश्ते का आनंद लेने के बाद निर्धारित समय पर हम निकल पड़े हमारी भूटान यात्रा के दूसरे पड़ाव पुनाखा के लिये जो थिम्पू से मात्र 70 किलोमीटर दूर है।
गूगल यात्रा समय ढ़ाई घंटे का बता रहा था। हमारे निर्धारित कार्यक्रम में मार्ग में दोचूला पास (दर्रा) हमें देखना था लगभग 30 किलोमीटर बाद दोचूला दर्रा आ गया। आप में से कई के मन में दर्रा शब्द को लेकर ज्ञिज्ञासा जाग सकती है तो मैं आपको बता दूँ कि दो या दो से ज्यादा पहाड़ों के बीच दबा हुआ स्थान जिसके जरिये पहाड़ी सीमा को पार किया जाता है दर्रा कहलाता है या और अधिक सरल शब्दों में पहाड़ों के बीच में से पहाड़ों को पार करने के लिये जो प्राकृतिक मार्ग होता है उसे दर्रा कहा जाता है।
गंगसर पर्वत माला
लगभग एक घंटे बाद दो चूला दर्रा आ ही गया 3100 मीटर अप्रतिम है। अद्भुत दृश्य है यहाँ से आप हिमालय पर्वत श्रृंखला की सुंदरता को घंटों निहार सकते हो और ईश्वर द्वारा निर्मित प्राकृतिक सौन्दर्य को अपने कैमरों में कैद कर सकते हो बर्फ से ढकी गंगसर पर्वत माला बहुत ही सुंदर लग रही थी। यहाँ पर ऊँचाई पर 108 स्मारक (चोर्टन) बने हुए हैं।
हमारे मार्गदर्शक टेकराज ने बताया कि सन् 2003 में हिंदुस्तान के असमिया विद्रोहियों ने इस दर्रा पर कब्जा जमा लिया था और यहाँ से भारत विरोधी गतिविधियां संचालित की जा रही थी। तब भूटान के चतुर्थ राजा ने अपने सैनिकों के साथ युद्ध करके इन विद्रोहियों से ढोचूला दर्रे को मुक्त कराया था इस युद्ध में भूटान के कुछ सैनिकों की मौत भी हुयी थी।
भूटान सरकार ने अपने सैनिकों की शहादत को चिर स्थायी रखने हेतु 108 स्मारकों का निर्माण करवाया था जिसमें तात्कालीन राजमाता आशी दोरजी वांगमों वांगचुक का सराहनीय योगदान रहा। इन स्मारकों के अंदर अवशेष, प्रसाद और धार्मिक ग्रंथ रखे हुए हैं। दो चूला दर्रा पर बौद्ध धर्म के रंगीन 5 रंगों के ध्वज भी लगे हुए हैं जिनमें नीला कलर- आकाश, सफेद रंग- बादलों का, लाल रंग- अग्नि, हरा रंग- पानी और पीला रंग- पृथ्वी के लिये है इन झंडों पर प्रार्थनाएं भी अंकित है।
समृद्धि और शांति के प्रतीक यह झंडे दो चूला दर्रे की खूबसूरती में चार चाँद लगा रहे थे। 108 स्मारकों के सामने ही राजशाही के सौ वर्ष पूर्ण होने की खुशी में एक मंदिर भी निर्मित किया गया है। प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक महत्व का अनूठा मिश्रण यहाँ मौजूद है। बर्फ से ढक़ी हुयी पहाड़ों की चोटियां और हरियाली का मिश्रण आँखों को बहुत भा रहा था इतनी सुंदर जगह छोडऩे का मन ही नहीं कर रहा था परंतु पुनाखा भी तो पहुँचना था। यहीं पर हमारी मुलाकात हमारे टूर आपरेटर चंद्रेश जी से हुयी बहुत ही सौम्य चंद्रेश जी मूल रूप से गाईड है वह भी मेहमानों के साथ टूर पर थे उनसे 15 मिनट चर्चा हुयी अच्छी व्यवस्थाओं के लिये हम सभी ने उन्हें धन्यवाद किया।
शेष कल