नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के कानपुर के आयकर विभाग द्वारा किए गए एक चौंकाने वाले खुलासे में सड़क किनारे पान, नाश्ता, समोसा और चाट जैसे खाने-पीने की चीजें बेचने वाले लगभग 256 लोग करोड़पति पाए गए हैं। इसके अलावा कूड़ा बीनने वाले के रूप में काम करने वाले कई लोगों के पास तीन से अधिक कारें हैं। यहां तक कि कुछ फल विक्रेता भी करोड़पति और सैकड़ों एकड़ अच्छी कृषि योग्य भूमि के मालिक पाए गए हैं।
करोड़पति सफाई कर्मचारी पिछले कुछ वर्षों से करों का भुगतान करने से बचते हुए पाए गए हैं। आयकर विभाग की एक टीम और जीएसटी रजिस्ट्रेशन की जांच बिग डेटा सॉफ्टवेयर की मदद से की गई।
देखने में ‘गरीब’ दिखने वाले छुपे धन्नासेठों पर आयकर विभाग की लंबे समय से खुफिया नजरें थीं। केवल इनकम टैक्स देने वाले और रिटर्न भरने वाले करदाताओं की मानीटरिंग के अलावा गली मोहल्लों में धड़ल्ले से मोटी कमाई कर रहे ऐसे व्यापारियों का डेटा भी विभाग लगातार जुटा रहा है। अत्याधुनिक टेक्नोलाजी ने खुफिया करोड़पतियों को पकड़ना शुरू कर दिया है।
चार साल में खरीद ली 375 करोड़ की प्रापर्टी
जीएसटी रजिस्ट्रेशन से बाहर इन व्यापारियों ने एक पैसा टैक्स का नहीं दिया लेकिन चार साल में 375 करोड़ रुपए की प्रापर्टी खरीद ली। ये संपत्तियां आर्यनगर, स्वरूप नगर, बिरहाना रोड, हूलागंज, पीरोड, गुमटी जैसे बेहद महंगे कामर्शियल इलाकों में खरीदी गईं। दक्षिण कानपुर में रिहायशी जमीनें भी खरीदीं। 30 करोड़ से ज्यादा के केवीपी खरीद डाले। 650 बीघा कृषि जमीन के मालिक भी ये बन गए। ये जमीनें कानपुर देहात, कानपुर नगर के ग्रामीण इलाकों, बिठूर, नारामऊ, मंधना, बिल्हौर, ककवन, सरसौल से लेकर फरुखाबाद तक खरीदी गईं हैं। आर्यनगर की दो, स्वरूप नगर की एक और बिरहाना रोड की दो पान दुकानों के मालिकों ने कोरोना काल में पांच करोड़ की प्रापर्टी खरीदी है। मालरोड का खस्ते वाला अलग-अलग ठेलों पर हर महीने सवा लाख रुपए किराया दे रहा है। स्वरूप नगर, हूलागंज के दो खस्ते वालों ने दो इमारतें खरीद लीं। लालबंगला का एक और बेकनगंज के दो कबाड़ियों ने तीन संपत्तियां दो साल में खरीदी हैं, जिनकी बाजार कीमत दस करोड़ से ज्यादा है। बिरहाना रोड, मालरोड, पी रोड के चाट व्यापारियों ने जमीनों पर खासा निवेश किया। जीएसटी रजिस्ट्रेशन से बाहर छोटे किराना व्यापारियों और दवा व्यापारियों की संख्या 65 से ज्यादा है जिन्होंने करोड़ों रुपए कमाए हैं।
चालाकी के बावजूद खा गए गच्चा
आयकर विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक जब अकूत कमाई हो रही हो तो निवेश के रास्ते हर व्यक्ति तलाशता है। चूंकि ठेले-खोमचे वालों का लाइफस्टाइल बेहद सादा होता है इसलिए उनके खर्च सीमित और बचत ज्यादा होती है। पैसा किसी विभाग के नजरों में न आ पाए इसके लिए उन्होंने चालाकी तो दिखाई लेकिन गच्चा खा गए। नज़र से बचने के लिए सहकारी बैंकों और स्माल फाइनेंस में खाते खुलवाए। प्रापर्टी में ज्यादातर निवेश भाई, भाभी, चाचा, मामा और बहन के नाम किया गया है लेकिन पैन कार्ड अपना लगा दिया। केवल एक प्रापर्टी में पैन कार्ड और आधार आते ही पूरा कच्चा चिट्ठा खुल गया।