भारत के पंत प्रधान नरेन्द्र मोदी जी ने गुरुनानक जयंती पर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर पूरे किसानों के साथ 138 करोड़ भारतीयों को भी उपहार दिया है। भारत कृषि प्रधान देश है देश की आबादी ग्रामों में बसती है और देश में ग्रामों की संख्या 593731 है। भारत के कृषि प्रधान देश होने के साथ ही, कृषि दुनिया की आबादी के एक तिहाई से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध कराती है। सारी दुनिया में अर्थव्यवस्था में मंदी के दौरान भी भारत कृषि के बलबूते पर ही अडिग खड़ा रहा था और विचलित नहीं हुआ था।
भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 51 फीसदी भाग पर कृषि, 4 फीसदी पर चारागाह, 21 फीसदी पर वन, 24 फीसदी बंजर और बिना उपयोग की भूमि है। देश की कुल श्रम शक्ति का लगभग 52 फीसदी भाग कृषि और उससे संबंधित उद्योग धंधों से अपनी अजीविका चलाता है। संसार में चावल उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है।
गेहूँ उत्पादन में भी चीन के बाद हम दूसरे स्थान पर हैं। भारत की कुल कृषि योग्य जमीन के लगभग 15 फीसदी भाग पर गेहूं की खेती की जाती है। आम, केला, चीकू, खट्टे नींबू, काजू, नारियल, काली मिर्च, हल्दी के उत्पादन में भारत दुनिया में सिरमौर है। फलों और सब्जियों के उत्पादन में हम दुनिया में दूसरे स्थान पर हैं। कुल मिलाकर कृषि हमारी भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। और बकौल राजनीति किसान हमारा अन्नदाता है।
भारत के इतिहास का किसानों द्वारा किया जा रहा यह आंदोलन शायद सबसे लंबा आन्दोलन था। ऐसा नहीं है कि इसके पहले भारत के किसानों ने कोई आन्दोलन नहीं किये हो। देश में समय-समय पर होने वाली सामाजिक उथल-पुथल में किसानों की भूमिका भले ही गौण रही हो, परंतु यदि भारत के इतिहास पर दृष्टिपात करेंगे तो आजादी के पहले और आजादी के बाद समय-समय पर किसानों ने अपनी समस्याओं के समाधान हेतु आन्दोलन किये हैं।
बिहार के चंपारण जिले में नील की खेती करने वाले नील्हा किसानों द्वारा किया गया अंग्रेजी हुकुमत के विरुद्ध प्रदर्शन जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था और इसी किसानों के आंदोलन को महात्मा गांधी का भारत की आजादी की लड़ाई में पदार्पण माना गया है।
गुजरात के खेड़ा के किसानों का आंदोलन, बारडोली का किसान आंदोलन जिसका नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया था। ऐसे अन्य आन्दोलन जिनमें पाबना विनेह, संभागा आन्दोलन, मोपला आंदोलन, एका आन्दोलन, कूका आन्दोलन, झारखंड का टाना भगत किसान आन्दोलन प्रमुख है।
आजादी के पहले हुए आन्दोलनों में हिंसा और बर्बादी का कोई स्थान नहीं होता था परंतु आजादी के बाद हुए आंदोलन हिंसा और राजनीति से प्रेरित दिखायी देते हैं।
465 दिन लंबे चले इस किसान आन्दोलन की शुरुआत 9 अगस्त 2020 को हुयी थी, जिसमें पंजाब, उत्तरप्रदेश राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश के किसान साथ थे।
आंदोलनरत किसान केन्द्र सरकार द्वारा 20-22 सितंबर का भारतीय संसद द्वारा कृषि संबंधी तीनों विधेयकों को पारित किये जाने का विरोध कर रहे थे। जिसे 27 सितंबर 2020 को महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने मंजूरी दे दी थी। आंदोलनकारी किसानों का नेतृत्व कर रही अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने 26 नवम्बर 2020 को राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल का आहवान किया था, जिसे लगभग 25 करोड़ भारतीयों का समर्थन प्राप्त हुआ था।
देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर एक अनुमान के अनुसार 2 से 3 लाख किसान जमा हो गये थे। 1 करोड़ से अधिक ट्रक ड्राइवरों, बस ड्राइवरों टेक्सी ड्राइवरों का प्रतिनिधित्व करने वाली परिवहन यूनियन ने किसानों को अपना समर्थन दे दिया था, आन्दोलनरत किसान तीन कृषि कानूनों को समाप्त करने के साथ ही फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने एवं समर्थन मूल्य को भारित लागत का 50 प्रतिशत अधिक करने की मांग, कृषि गतिविधियों में उपयोग किये जाने वाले डीजल का मूल्य आधा किये जाने की भी मांग कर रहे थे।
देश के प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के निर्णय की घोषणा करके अपनी सह्रदयता और उदारमना होने का परिचय दिया है। साथ ही यह संदेश भी दिया है कि गलतियां उन्हीं से होती जो काम करने में विश्वास रखते हैं।
पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के पूर्व पंत प्रधान की इस घोषणा ने विरोधी राजनैतिक दलों के हाथ से एक मुद्दा छीनकर किसानों की खोयी हुयी सहानुभूति प्राप्त करने का प्रयास किया है। आधिकारिक तौर पर 159 और अनाधिकारिक तौर पर 700 से अधिक किसानों की मौत के बाद प्रधानमंत्री जी द्वारा लिया गया यह फैसला भारतीय जनता पार्टी को कितना लाभ पहुंचायेगा यह तो उत्तरप्रदेश के सन्निकट विधानसभा चुनाव में पडऩे वाले वोटों की गिनती से ही पता चलेगा। परंतु इतना जरूर है कि किसान आंदोलन के मद्देनजर सुरक्षा के नाम पर भारतीय नागरिकों के गाढ़े खून-पसीने की कमायी निरर्थक जा रही थी वह बंद होगी।