रात्रि में जगमग हुए शिप्रा के घाट, रात तो ठीक दिन में भी किया लोगों ने दीपदान
उज्जैन। देव दिवाली कार्तिक पूर्णिमा पर शुक्रवार को क्षिप्रा के घाटों पर सुबह 4 बजे से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ स्नान दान के लिए उमड़ पड़ी। इसे इस तरह से कहें तो अल सुबह से यहां घाटों पर श्रद्धालुओं का मेला लगने लगा था।
कोरोना महामारी के कारण गत वर्ष शिप्रा नदी में स्नान प्रतिबंधित था, लेकिन गुरुवार से शासन ने कोरोना के प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया। इस कारण भी मोक्षदायिनी नदी में स्नान के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचे। स्नान दान के बाद श्रद्धालु भगवान महाकाल के दर्शन के लिए पहुंचे। मंदिर में सुबह से ही भारी भीड़ उमड़ी दिखाई दी।
मान्यता के मुताबिक, कार्तिक पूर्णिमा पर क्षिप्रा नदी में नहान करने का अपना अलग महत्व है। लोग मानते हैं कि कार्तिक की पूर्णिमा पर क्षिप्रा में नहान करने से घर में सुख शान्ति और समृद्धि प्राप्त होती है। दरसल एक महीने तक महिलाएं और युवतियां कृष्ण भगवान का पूजन करती हैं। एक माह के पूजन के बाद कार्तिक पूर्णिमा पर क्षिप्रा नदी में स्नान के बाद पूजन पूरा माना जाता है। लोग नदी में दीपदान करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि दीपदान से पितरों के लिए बैकुंठ के द्वार खुल जाते हैं। इस दिन को दीप उत्सव के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन न सिर्फ कृष्ण बल्कि विष्णु और शिव की पूजन का भी विधान है। यही वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा पर लाखों श्रद्धालु क्षिप्रा में स्नान के लिए पहुंचते हैं और भगवान महाकाल के दर्शन करते हैं। तीन-चार दिन तक पूरा शहर बाहर से आए श्रद्धालुओं से पटा रहता है।
इतनी भीड़ के सिर दिखाई दे रहे थे
रामघाट पर शुक्रवार की सुबह से ही श्रद्धालुओं ने स्नान करना शुरू कर दिया था। इसी को देखते हुए जिला प्रशासन ने भी बड़ी संख्या में शिप्रा के तट पर तहसीलदारों की नियुक्ति की थी। पूरा घाट सुबह से लेकर शाम तक श्रद्धालुओं की आवाजाही से रोशन था। ग्रामीण से लेकर शहरी श्रद्धालु तक कार्तिक पूर्णिमा पर अपने पितरों के निमित्त स्नान दान करने की परंपरा का निर्वहन कर रहे थे।
भारी भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन ने राणोजी की छतरी में खोया पाया केंद्र खोल दिया था। लोग स्नान कर वहां बैठे भिक्षुकों को दान की परंपरा का निर्वहन कर रहे थे। कुल मिलाकर 2 साल में यह पहली बार है कि जब इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु रामघाट पर कार्तिक स्नान के लिए आए हों। इसको देखते हुए यहां पर मिनी कुंभ सा नजारा पैदा हो गया था।
सोने की चेन गिरी, तो किसी का मोबाइल
महाकालेश्वर मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा पर इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान महाकाल के दर्शन को आए थे कि उनको अपनी वस्तु गुम होने का आभास ही नहीं हो रहा था। सुबह 10.30 बजे की आरती के दौरान दिल्ली निवासी सुनीता शर्मा का मोबाइल नंदीहाल में गुम हो गया था। जोकि क्यूआरटी टीम के सुरक्षाकर्मी सुनील कुशवाहा को मिला।
उन्होंने मोबाइल पहचान बताने के बाद उनको लौटा दिया। इस तरह से व्हीलचेयर कर्मी ओम जोगी को एक श्रद्धालु दंपति की सोने की चेन 4 नंबर गेट पर मिली थी। जिसको उन्होंने कंट्रोल रूम पर जमा करवा कर ईमानदारी का परिचय दिया।
दिन हो या रात किया दीपदान
शहरी सहित ग्रामीण क्षेत्र के श्रद्धालु बड़ी संख्या में रामघाट पहुंचे थे और उन्होंने स्नान दान की परंपरा का निर्वहन तो किया ही, इसके साथ ही कार्तिक पूर्णिमा पर अपने पितरों के निमित्त किया जाने वाला दीपदान दिन में ही कर दिया। वहीं रात्रि में रामघाट का नजारा कुछ अलग ही दिखाई दे रहा था। ऐसा लग रहा था मानो वास्तव में देव दिवाली मनाई जा रही हो। पूरा रामघाट क्षेत्र दीपकों की रोशनी से जगमग हो उठा था।
महाकालेश्वर मंदिर में भीड़ उमड़ी
रामघाट से स्नान दान से निवृत्त होकर श्रद्धालु सीधे भगवान महाकाल के दर्शन को पहुंच रहे थे, जिसके चलते मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं की चहल-पहल बनी हुई थी। यहां तक की प्रोटोकॉल प्राप्त श्रद्धालुओं से लेकर आम श्रद्धालु बड़ी संख्या में भगवान महाकाल के दर्शन को पहुंचे थे।
देर रात्रि तक दर्शन का सिलसिला इसी तरह से चलता रहा। श्रद्धालुओं को संभालने का प्रयास पुलिसकर्मी, सुरक्षाकर्मी से लेकर कर्मचारी तक कर रहे थे। यह पहली बार है कि जब कोरोना पर लगाया प्रतिबंध पूरी तरह से हटाया गया हे। ऐसे में श्रद्धालु भी भगवान महाकाल के दर्शन करने का मौका छोडऩा नहीं चाहते थे।