11 मिट्टी के कलश वैशाख व जेठ माह में भगवान पर बरसायेंगे सतत जलधारा
उज्जैन, अग्निपथ। श्री महाकालेश्वर मंदिर में परंपरानुसार 24 अप्रैल (वैशाख कृष्ण प्रतिपदा) से 22 जून (ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा) तक श्री महाकालेश्वर भगवान पर 11 मिट्टी के कलशों से सतत जलधारा हेतु गलंतिका बांधी जावेगी। कलशों पर प्रतीकात्मक रूप में नदियों के नाम गंगा, सिंधु, सरस्वती, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी, सरयु, शिप्रा, गण्डकी आदि नामों को अंकित किया जाता है।
भगवान श्री महाकालेश्वर पर सतत शीतल जलधारा प्रवाहित की जावेगी, जो प्रतिदिन प्रात: भस्मार्ती के पश्चात से सायंकाल पूजन तक रहेगी। उल्लेखनीय है कि, श्री महाकालेश्वर मंदिर में परंपरा अनुसार प्रतिवर्ष वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तक (दो माह) श्री महाकालेश्वर भगवान जी को शीतलता प्रदान करने के लिए प्रतिदिन लगने वाले अभिषेक पात्र (रजत कलश) के साथ मिट्टी के 11 कलशों से सतत जलधारा प्रवाहित करने हेतु गलंतिका बांधी जाती है। वैशाख व ज्येष्ठ माह में अत्यधिक गर्मी होती है। भीषण गर्मी में भगवान श्री महाकालेश्वर जी को दो माह तक प्रतिदिन भस्मार्ती के बाद प्रात: 6 बजे से सायं 5 बजे संध्या पूजन तक गलंतिका बधेगी।
धार्मिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने गरल (विष) पान किया था। गरल अग्नि शमन करने के लिए ही आदिदेव सदाशिव का जलाभिषेक किया जाता है। गर्मी के दिनों में विष की उष्णता (गर्मी) और भी बढ़ जाती है। इसलिए वैशाख व ज्येष्ठ मास में भगवान को शीतलता प्रदान करने के लिए मिट्टी के कलश से ठंडे पानी की जलधारा प्रवाहित की जाती है। जिसको गलंतिका कहते हैं।
धर्म-सिंन्धु पुस्तक के अनुसार अत्र मासे प्रपादान देवे गलंतिका बंधन व्यजनच्छत्रोपान वंदनादिदान महाफलम अर्थात इस मास में जलदान पशु-पक्षी, देवताओं, ऋषियों, मनुष्यों को जलसेवा करनी चाहिए, देव के गलंतिका (कंठी) बांधना और बीजना (बोवाई) छत्र, चन्दन, धान्य आदि के दान का महान फल होता है।
वैशाख एवं ज्येष्ठ माह तपन के माह होते है। भगवान शिव के रूद्र एवं नीलकंठ स्वरूप को देखते हुए सतत शीतल जल के माध्यम से जलधारा प्रवाहित करने से भगवान शिव प्रसन्न एवं तृप्त होते है तथा प्रजा एवं राष्ट्र को भी सुख समृद्धि प्रदान करते है। गलंतिका केवल श्री महाकालेश्वर मंदिर में ही नही अपितु 84 महादेव एवं संपूर्ण भारतवर्ष में भी लगायी जाती है।