केंद्र ने अपने हलफनामें में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि 18 से 44 साल के लोगों को वैक्सीन लगवाने की मंजूरी सिर्फ इसलिए दी गई है क्योंकि कई राज्य इसकी मांग कर रहे थे और केंद्र सरकार ने वैक्सीन उत्पादकों से राज्यों को एक कीमत पर वैक्सीन सप्लाई करने को कहा है।
बता दें कि जहां केंद्र सरकार को वैक्सीन की एक खुराक के लिए 150 रुपये चुकाने पड़ रहे हैं तो वहीं वैक्सीन निर्माता कंपनियां राज्यों से इसके लिए 300 और 400 रुपये प्रति डोज ले रही हैं। केंद्र सरकार ने हालांकि, यह कहा है कि उसे वैक्सीन की कीमत इसलिए कम चुकानी पड़ रही है क्योंकि उसने बड़ी मात्रा में टीके का ऑर्डर दिया है।
अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा, ‘इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि केंद्र सरकार ने अपने व्यापक टीकाकरण अभियान के लिए वैक्सीन के बड़े-बड़े ऑर्डर दिए। राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों की तुलना में ऑर्डर काफी बड़े हैं। इसलिए इसका असर कीमत पर भी दिखा।’ हलफनामे के मुताबिक, अलग-अलग कीमतों से प्राइवेट वैक्सीन निर्माताओं के लिए एक प्रतिस्पर्धी बाजार होगा जिसके परिणामस्वरूप वैक्सीन का उत्पादन बढ़ेगा और उसकी कीमतें भी ज्यादा नहीं होंगी। इससे विदेश वैक्सीन उत्पादक भी देश में वैक्सीन बनाने को प्रोत्साहित होंगे।
केंद्र ने यह भी कहा कि कीमतों में यह अंतर जनता पर असर नहीं डालेगा क्योंकि सभी राज्यों ने घोषणा कर दी है कि वे मुफ्त वैक्सीन मुहैया कराएंगे।
केंद्र सरकार ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में यह भी कहा कि वह कोरोना को लेकर जरूरी दवा और अन्य सामग्रियों की सप्लाई से जुड़े स्वतः संज्ञान वाले केस में किसी भी तरह का आदेश पारित न करे। सरकार ने कहा है कि इस महामारी को लेकर सभी नीतियां मेडिकल एक्सपर्टस और वैज्ञानिक सलाहों से तय हो रही हैं, ऐसे में न्यायिक हस्तक्षेप की गुंजाइश न के बराबर है।
सुप्रीम कोर्ट ने चार बिंदुओं पर केंद्र से जवाब मांगा था
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया था। बीती 27 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने चारों मुद्दों पर केंद्र से जवाब मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने ऑक्सीजन की आपूर्ति, कोविड बेड समेत महत्वपूर्ण चिकित्सा आवश्यकताओं में वृद्धि, रेमडेसिविर, फेविपिविर सहित आवश्यक दवाओं की उचित उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदम और टीकाकरण को लेकर सवाल किए गए थे।